हर युग किसी खास
घटना,व्यक्तित्व या विचारधारा से प्रभावित होता है और उस युग का नामकरण भी उसी
अनुरूप कर दिया जाता है. सोशल मीडिया का जिस हिसाब से प्रचार-प्रसार और प्रभाव
बढ़ा है, कुछ लोग इसे सोशल मीडिया युग भी कहने लगे हैं. आज के युग में जो कोई सोशल
मीडिया पर नहीं है, उसके असितित्व पर ही कई बार शक कर लिया जाता है! सोशल मीडिया की ताकत
इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि वह कई बार मुख्यधारा की मीडिया या पारंपरिक मीडिया को भी
प्रभावित करने की स्थिति में आ जाता है.
ऐसे में सवाल यह
उठता है कि इससे आगे इसकी दिशा क्या है और इसका कितना प्रभाव बढ़ेगा. इस प्रश्न का
एक संभावित जवाब पाने से पहले आइये हम कुछ अन्य बातों पर विचार करें.
सोशल मीडिया ने आमजन
को एक आवाज दी है. यहां हर कच्चा से कच्चा विचार अपना स्थान पा जाता है, जिसका
आमतौर पर कोई दूरगामी असर नहीं होता लेकिन हर वो विचार भी जगह पा जाता है जो
सिस्टम को बदलने या किसी ठोस बदलाव की दिशा में महत्वपूर्ण हो जाता है. कई ऐसी
बातें जो कई बार निहित स्वार्थों/दबावों की वजह से मुख्यधारा की मीडिया में नहीं आ
पाती, सोशल मीडिया में आकर विमर्श को प्रभावित करने में सफल हो जाती हैं. हाल के
समय में कई ऐसे अपराध, भ्रष्टाचार या कई कुरुतियों के खिलाफ सोशल मीडिया में
अभियान चलाए गए और उसका अपेक्षित नतीजा भी निकला. सरकार और सत्तातंत्र को उसे
सुनना पड़ता है. चाहे बिहार में रॉकी यादव की गिरफ्तारी, शहाबुद्दीन को जेल या तीन
तलाक का मसला, चाहे वन रैंक वन पेंशन की बात हो या फिर हाल ही में एक बड़े मीडिया
हाऊस को सरकार द्वारा एक दिन के लिए बैन करने का मसला-सोशल मीडिया में हर विषय पर
घनघोर बहस हुई है और उन बहसों ने जनमत को प्रभावित किया है. नरेंद्र मोदी, अरविंद
केजरीवाल या अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत में सोशल मीडिया की एक प्रभावी
भूमिका से कोई इनकार नहीं करता.
अगर फेसबुक की बात
करें जिसका फलक ज्यादा व्यापक है तो दुनिया में करीब 1.6 अरब लोग फेसबुक पर हैं,
तो भारत में इसके 16.6 करोड़ मासिक यूजर हैं. भारत में प्रतिदिन करीब 8.5 करोड़
लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं और प्रति दिन करीब 55 मिनट तक इस पर व्यतीत करते
हैं. जिस हिसाब से मोबाइल फोन की संख्या और मोबाइल इंटरनेट की संख्या में इजाफा हो
रहा है, यह संख्या कई गुणा बढ़नेवाली है.
कुल मिलाकर सोशल
मीडिया संगठित सत्ता और पारंपरिक मीडिया की सत्ता को गहरे चुनौती दे रहा है. यह
सूचना का लोकतंत्रीकरण है जिसमें हर किसी का ओपनियन सामने आ रहा है भले ही कितना
ही कच्चा क्यों न हो. हां, उसमें ये खतरा जरूर है कि तथ्यों की गड़बड़ी, अफवाह और
असंपादित विचार भी सामने आ रहे हैं जो कई बार सूचना के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं
होते और जिस वजह से सोशल मीडिया की विश्वसनीयता अभी तक संदेह के घेरे में है. अभी ये बहस भी जोरों पर है कि क्या फेसबुक गलत
सूचनाओं को प्रतिबंधित करने जा रहा है? क्योंकि कुछ जानकार कह रहे हैं कि अगर फेसबुक ने 'कृत्रिम खबरों' को प्रतिबंधित किया तो उसे राजस्व का भारी
नुक्सान होगा.
जो भी हो, सोशल
मीडिया ने इसने इतना तो किया ही है कि संगठित सत्ता और संगठित मीडिया के वर्चस्व
को तगड़ी चुनौती दे दी है.
जिस तरह से फेसबुक
ने लाइव वीडियो(फेसबुक लाइव) शुरू किया है, आनेवाले समय में वीडियो कंटेंट की
महत्ता और बढ़ जाएगी और न्यूज में विविधता आएगी. अब सिर्फ एक मोबाइल और ठीकठाक
कनेक्टिविटी से कहीं से भी किसी भी घटना को लाइव दिखाना संभव हो पाएगा. यह सोशल
मीडिया की नयी ताकत है. साथ ही ये भी कि जिस तरह से फेसबुक ने वीडियो को 'मोनेटाइज' करना शुरू किया है, आनेवाले समय में यह गूगल के
लिए एक बड़ी चुनौती बनेगा और उसके बाजार में सेंधमारी करेगा.
सोशल मीडिया पर सबसे
ज्यादा हिट वीडियो के आते हैं, फिर तस्वीर और फिर टेक्स्ट पढ़ा जा रहा है. यानी
भविष्य वीडियो का है और उसमें पैसा भी आनेवाला है. इस क्षेत्र में रुचि रखनेवालों
को इन बातों का खयाल रखना चाहिए.
दूसरी तरफ सोशल
मीडिया खासकर फेसबुक अत्यधिक मोबाइल-केंद्रित होता जा रहा है और मातृभाषा-सहज है. इसका मतलब ये
है कि जनभावना को ज्यादा से ज्यादा प्रकट करने का कोई मंच है तो वो सोशल मीडिया
है. ऐसे आंकड़े सामने आ रहे हैं कि लोग ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल
मोबाइल पर करने लगे हैं और सोशल मीडिया ने भी उसके अनुरूप अपने आपको ज्यदा से
ज्यादा ढ़ालना शूरू कर दिया है. भारत में मोबाइल फोन की संख्या करीब 90 करोड़ तक
पहुंचने वाली है और ज्यादा से ज्यादा लोग उस पर इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं जो
साक्षरता और बेहतर आर्थिक स्थिति के साथ बढ़ती ही जा रही है.
सबसे बड़ी बात ये है
कि इंग्लिश की तुलना में देसी भीषाओं में लोग ज्यादा से ज्यादा फेसबुक या अन्य
सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल कर रहे हैं. एक आंकड़े के हिसाब से भारत में
अंग्रेजी में ऑनलाइन कंटेंट की बृद्धि दर करीब 45 फीसदी सालाना है तो देसी भाषाओं
में ये करीब 100 फीसदी है. ये देसी भाषाओं के लिए स्वागत की बात है हालांकि अभी
पक्के तौर पर ये नहीं कहा जा सकता कि इससे भाषाओं का विकास होगा या बाजार अपनी
सहूलियतों के लिए ऐसा कर रहा है. लेकिन जो भी हो, हिंदी या अन्य राष्ट्रीय भाषाएं
ज्यादा से ज्यादा उपयोग में लाई जा रही हैं ऐसा फेसबुक का आधिकारिक बयान है.
जहां तक मीडिया
हाऊसों का सवाल है तो हाल तो ये है कि वेबसाइट्स की ट्रैफिक का 30 से 40 फीसदी
हिस्सा तक फेसबुक से आ रहा है. यानी पारंपरिक न्यूजसाइट सिर्फ कंटेंट प्रोवाइडर
बनते जा रहे हैं और सोशल मीडिया असली करियर बनता जा रहा है. जैसा कि पहले भी लिखा
जा चुका है, फेसबुक पर फिलहाल दुनिया के 1.6 अरब लोग हैं. आप अंदाज लगाइये कि
फेसबुक कि इस दुनिया में किसी छवि को संवारने में या बिगाड़ने में क्या हैसियत हो
गई है!
अब प्रश्न ये है कि
इससे आगे का रास्ता क्या हो सकता है? फेसबुक ने जिस तरह से सोशल मीडिया में और इंटरनेट
की अन्य कंपनियों को पछाड़ या है, अब आगे का क्या रास्ता है? फिलहाल, फेसबुक ने सिर्फ वीडियो मोनेटाइजेशन किया है और फेसबुक लाइव शुरू
किया है-यह यूट्यूब को एक तगड़ी चुनौती है जो पहले से ऐसा करता आ रहा है. लेकिन कल
को अगर कोई कंपनी इससे भी एक कदम आगे बढ़कर ज्यादा समय व्यतीत करनेवाले और
विज्ञापन पर क्लिक करनेवाले यूजर्स को राजस्व में हिस्सेदारी देने लगे तो क्या
होगा?
ये अभी काल्पनिक
सवाल हैं. हो सकता है आनेवाले दिनों में ऐसा हो. क्योंकि हर कंपनी की एक लाइफ
साइकिल होती है और अगर उस दरम्यान वो कंपनी अपने आपको नए तरीके से नहीं ढालती या
नवाचार नहीं करती तो वो मौत की तरफ बढ़ जाती है. आनेवाला समय दिलचस्प होगा.