Wednesday, March 6, 2013

धोनी ने भी देखे हैं स्याह दिन.... (01)

इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चैनल देखने के बाद इस बात का तो यक़ीन आपको भी पक्का हो ही जाता होगा कि इस मीडिया में किसी की शख़्सियत को बनाने-संवारने की पूरी कुव्वत है। लगातार दो टेस्ट मैचों में मेज़बान भारतीय टीम की ऑस्ट्रेलिया पर हुई जीत के बाद तो मीडिया ने टीम इंडिया और इसके कप्तान की शान में ऐसे-ऐसे कसीदे गढ़े/गढ़ रहे हैं, मानों अगला महानायक क्रिकेट की दुनिया से ही आनेवाला है, जो पूरी दुनिया को उबारने की राह दिखाएगा। ख़ैर, मुद्दा ये कतई नहीं है, मुद्दा है इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चैनल्स की मानसिकता, या फिर यूं कहें  उनका एकतरफा न्यूज़ पेश करने का सलीका।
व्यक्ति विशेष कार्यक्रम में अपने तमाम एंकरों-स्पोर्टस एडीटर्स और कॉरेस्पोंडेंट्स के ज़रिए एबीपी न्यूज़ ने कुछ ऐसे ही पेश किया धोनी की पूरी कहानी। शाज़ी ज़मां वैसे तो बेहद संज़ीदा संपादक है और कभी-कभार अपनी टीम से अच्छी रिसर्च भी करवा लेते हैं। लेकिन धोनी की पूरी कहानी में धोनी के संघर्ष के दिनों में उनकी कड़वी यादों को कार्यक्रम में जगह ही नहीं दी गई। अब इसकी दो वजहें हो सकती हैं, एक या तो वो उस दौर की जानकारी अपने दर्शकों को देना ही नहीं चाहते हों, और दूसरा ये कि किसी स्पोर्ट्स एडीटर या रिपोर्टर को उनसे जुड़ी स्याह बातों की जानकारी ही न हो (इस बात की गुंजाइश कहीं ज़्यादा है)।
धोनी पर बने कार्यक्रम व्यक्ति विशेष को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिहाज़ से बेहतरीन कहा जा सकता है लेकिन जानकारी की भूख रखनेवालों की नज़र से देखने पर आधे घंटे के उस प्रोग्राम में कोई जान नहीं थी। कार्यक्रम में वही धोनी से जुड़ी घिसी-पिटी बातें और वही अपने चैनल के माध्यम से पूरी दुनिया को बदल देने का माद्दा रखनेवाले रिपोर्टरों के जमघट के सिवाए कुछ नहीं था। मजे की बात तो ये कि कार्यक्रम की कई-कई बार रिपीट टेलीकास्ट भी की गई। यक़ीनन रिपीट टेलीकास्ट चैनल के (अति) आत्मविश्वास का सूचक है।
इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चैनल्स के इसी (अति) आत्मविश्वास की ही वजह से न्यूज़ चैनल्स के रिपोर्टर्स को न तो वो इज्ज़त मिलती है और न ही उनके रिपोर्ट्स को तवज्जो दी जाती है। कहने का मतलब ये कि दिनों-दिन बढ़ते न्यूज़ चैनल्स के बावज़ूद उनकी प्रमाणिकता नहीं बढ़ रही है। वहीं विडम्बना देखिए कि अख़बारों और पत्रिकाओं पर लोगों का भरोसा तुलनात्मक रूप से बढ़ता ही जा रहा है। उम्मीद है कि शाज़ी ज़मां साहब इस आलेख को पढ़ेंगे और टीआरपी रेस से ऊपर उठकर कुछ ठोस कार्यक्रम बनाएंगे और दिखाएंगे। ख़ासतौर पर जब ‘‘धोनी की पूरी कहानी’’ जैसे कार्यक्रम हो तब तो दर्शकों का भी पूरा हक़ बनता है धोनी की पूरी कहानी जानने की। ये जानने की कि 18 साल की उम्र में रणजी खेलने के लिए जिस धोनी का चयन हुआ था उसे साल 2000 मोहम्मद कैफ़ के नेतृत्ववाली अंडर-19 वर्ल्ड कप टीम में जगह क्यों नहीं मिली...