Friday, May 25, 2012

खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के विरोध में सोशलिस्ट पार्टी का धरना

डॉ. प्रेम सिंह ( महासचिव व प्रवक्ता, सोशलिस्ट पार्टी)  


धरना-- 28 मई---पूर्वाह्न 11 बजे -----शाम 5 बजे--जंतर मंतर


देश की अर्थव्यवस्था राजनीति शिक्षा और संस्कृति पर नवसाम्राज्यवादी ताकतों का शिकंजा तेजी से कसता जा रहा है। लंबे संघर्ष और अनेक भारतवासियों की कुर्बानियों के बाद हासिल की गई आजादी खतरे में पड़ चुकी है। एक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को अढ़ाई सौ सालों तक लूटा और गुलाम बनाए रखा। अब सैंकड़ों बहुराष्ट्रीय कंपनियां देश में घुस आई हैं और कीमती संसाधनों को लूट रही हैं। भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, जातिवाद, परिवारवाद, वंशवाद से ग्रस्त देश की प्रचलित राजनीति नवसाम्रााज्यवादी हमले का मुकाबला करने के बजाय उन ताकतों की एजेंट बन गई है। नतीजा सामने है : लाखों किसानों की आत्महत्याएं, बड़े पैमाने पर विस्थापन, भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी, बीमारी, अशिक्षा, अपराध और देश की आंतरिक व बाह्य सुरक्षा पर भारी पड़ता कट्‌टरतावाद। ऐसे माहौल में एक नया एवं प्रतिबद्ध समाजवादी भारत बनाने और देश की आजादी को बचाने के संकल्प के साथ 28 मई 2011 को हैदराबाद में सोशलिस्ट पार्टी की पुनर्स्थापना की गई। सोशलिस्ट पार्टी आचार्य नरेंद्रदेव जयप्रकाश नारायण डॉ. राममनोहर लोहिया अच्युत पटवर्द्धन  एसएम जोशी कमलादेवी चट्‌टोपाध्याय अरुणा आसफ अली और युसुफ मेहरअली जैसे स्वतंत्रता सेनानियों समाजवादी विचारकों और नेताओं की विरासत से प्रेरणा लेकर देश में वैकल्पिक राजनीति और व्यवस्था के लिए संकल्पबद्ध है। सोशलिस्ट पार्टी (सोपा) के स्थापना दिवस के अवसर पर पार्टी की दिल्ली इकाई ने खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के फैसले के विरोध में एक दिन के धरने का आयोजन किया है। धरना 28 मई को पूर्वाह्न 11 बजे शाम 5 बजे तक जंतर मंतर पर होगा। नवउदारवादी नीतियों की जड़मूल से विरोधी सोपा का मानना है अमेरिका के आदेश पर वालमार्ट जैसी विशाल कंपनियों का हित साधन करने वाला सरकार का यह फैसला भारत के विशाल खुदरा क्षेत्र के लिए विनाशकारी है। इससे छोटे व्यपारियों और किसानों की बदहाली और तेज होगी।
धरने को सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रेम सिंह, पार्टी की दिल्ली प्रदेश इकाई की अध्यक्ष रेणु गंभीर व सदस्य प्रोफेसर द्विजेंद्र कालिया, डॉ, हेमलता, डॉ, अश्वनी कुमार, केदारनाथ, शऊर खान, रवींद्र मिश्रा, सतेंद्र यादव सोशलिस्ट युवजन सभा (एसवाईएस) दिल्ली के अध्यक्ष योगेश पासवान व महासचिव राजीव कुमार, पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य अनिल नौरिया व शिवा त्रिपाठी, पूर्व न्यायधीश राजेंद्र सच्चर, पूर्व सांसद एवं वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, कामरेड हरभजन सिंह (वरिष्ठ मजदूर नेता, हिन्द मजदूर सभा), डॉ हरीश खन्ना (उपाध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ), मंजू मोहन (अध्यक्ष, सोशलिस्ट जनता पार्टी), डॉ. राजकुमार जैन (पूर्व विधायक), अशोक सिंह (पूर्व उपाध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ), प्रो. आनन्द कुमार (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय), अरुण कुमार त्रिपाठी (वरिष्ठ पत्रकार), डॉ. ए. के. अरूण (संपादक, युवा संवाद), आत्मप्रकाश खुराना (वरिष्ठ समाजवादी नेता), रामगोपाल सिसौदिया (पूर्व विधायक), राकेश कुमार (निगम पार्षद), हंसराज (स्कूल शिक्षक नेता), श्याम गंभीर (समाजवादी नेता), कुर्बान अली (वरिष्ठ पत्रकार) समेत कई राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता संबोधित करेंगे।
डॉ. प्रेम सिंह ( महासचिव व प्रवक्ता)

Saturday, May 5, 2012

राष्ट्रपति चुनाव : एक नाम ये भी



                  प्रेम सिँह  (लेखक जाने-माने राजनीति समीक्षक है, सोशलिस्ट पार्टी इँडिया के महासचिव है और डीयू मेँ प्राध्यापक है)  
सत्तारूढ़ यूपीए, मुख्य विपक्ष एनडीए और इन दोनों से अलग पार्टियों मंें पिछले करीब एक महीने से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए कई नामों की चर्चा चल रही है। लेकिन आम सहमति की बात तो दूर, पूरे मामले में अभी तक स्पष्टता भी नहीं बन पाई है। सबके अपने-अपने राष्ट्रपति हैं; भारतीय गणराज्य के संवैधानिक प्रमुख के पद पर सब अपना आदमी देखना चाहते हैं, लेकिन खुल कर कोई नहीं बता रहा है।
यूपी में विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व बहुमत से जीती समाजवादी पार्टी की राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका बन गई है। सपा की तरफ से संकेत आया है कि वह मुस्लिम उम्मीदवार का समर्थन करेगी। वह मुसलमान कौन होगा इसका संकेत अभी सपा ने नहीं दिया है। अलबत्ता पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का इस बार समर्थन न करने की बात उसने कही है। जिन नामों की चर्चा है उनमें बचे मौजूदा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी और राज्यसभा के पूर्व उपसभापति रहमान खान। जाहिर है, उनका आशान्वित होना स्वाभाविक है।
मुसलमानों के लिए और कुछ होता हो या नहीं, उन्हें लेकर राजनीति खूब होती है। राजनीति के चलते कुछ मुसलमानों को पद-प्रतिष्ठा भी अच्छी मिलती है। लेकिन उससे आम मुसलमान के हालात नहीं बदलते। बल्कि कांग्रेस और गैर-भाजपा दलों द्वारा उनका तुष्टिकरण करने की आम धारणा प्रचलित रही है। मुसलमानों के तुष्टिकरण की धारणा कितनी गलत है, इसका पहली बार पता जस्टिस राजिंदर सच्चर कमेटी की रपट से चलता है जो उन्होंने कुछ साल पहले दी थी। रपट पर काफी हो-हल्ला हुआ। भाजपा ने विरोध किया तो अन्य दलों ने रपट को लागू करने के बढ़-चढ़ कर दावे किए। लेकिन मुसलमान होने के नाते बड़े पदों पर बैठे किसी मुस्लिम नेता या बुद्धिजीवी ने रपट को लागू करने के लिए जोरदार संघर्ष नहीं छेड़ा।
जस्टिस सच्चर यह रपट दे पाए क्योंकि भारत के संविधान और उसमें निहित मूल्यों में उनकी दिखावे की नहीं, सच्ची निष्ठा है। उन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही डॉ. राममनोहर लोहिया और जेपी के साथ समाजवादी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई है। वे आज भी नागरिक अधिकारों, विशेषकर वंचित तबकों - स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, पिछड़ों - के हकों के लिए दिन-रात चिंतित और सक्रिय रहते हैं।
राजनैतिक पार्टियों को अगर अगले राष्ट्रपति पद के लिए वाकई वंचित तबकों की भलाई चाहने वाले किसी शख्स की तलाश है तो जस्टिस सच्चर से बेहतर नाम शायद ही कोई हो। उनके नाम पर सभी दलों में आम सहमति बनने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। अगर वे भारत के अगले राष्ट्रपति बनते हैं तो इससे उन संवैधानिक और सांस्थानिक मूल्यों को मजबूती मिलेगी जिन पर कई तरह की ताकतों के हमले हो रहे हैं।