Friday, January 14, 2011

India Marches Against Corruption


Thousands of people will take to streets to demand effective anti-corruption law

J M Lyngdoh, Swami Agnivesh, Kiran Bedi, Anna Hazare, Prashant Bhushan, Most Reverend Vincent M Concessao Archbishop of Delhi and others will march from Ramlila Grounds to Jantar Mantar on 30th January, the day Mahatma Gandhi was assassinated, at 1 pm to demand enactment of a law to set up an effective anti-corruption body called Lokpal at the Centre and Lokayukta in each state (the existing Lokayukta Acts are weak and ineffective).

Kiran Bedi, Justice Santosh Hegde, Prashant Bhushan, J M Lyngdoh and others have drafted this Bill. Please visit our site for full text of this Bill. A nation wide movement called “India Against Corruption” has been started by Sri Sri Ravi Shankar, Swami Ramdev, Swami Agnivesh, Most Reverend Vincent M Concessao Archbishop of Delhi, Kiran Bedi, Arvind Kejriwal, Anna Hazare, Devinder Sharma, Sunita Godara, Mallika Sarabhai and many others to persuade government to enact this Bill.

Mrs Sonia Gandhi recently announced that Lokpal would be set up. However, the Lokpal suggested by the government is only a showpiece. It will have jurisdiction over politicians but not bureaucrats, as if politicians and bureaucrats indulge in corruption separately. And the most interesting part is that like other anti-corruption bodies in our country, the government is making Lokpal also an advisory body. So, Lokpal will recommend to the government to prosecute its ministers. Will any prime minister have the political courage to do that?

Please participate in large numbers in this march to persuade the government to enact the Bill drafted by the people. Please turn overleaf to read how this Bill will help in effectively checking corruption.

Can India turn around?

There was much worse corruption in Hong Kong in 1970s than we have in India today. Collusion between police and mafia increased and crime rate went up. Lakhs of people came on the streets. As a result, the government had to set up an Independent Commission Against Corruption (ICAC), which was given complete powers. In the first instance, ICAC sacked 119 out of 180 police officers. This sent a strong message to the bureaucracy that corruption would not be tolerated. Today, Hong Kong has one of the most honest governance machinery.

India can also turn around if we also had similar anti-corruption body. Hong Kong government enacted ICAC Bill because lakhs of people came on streets.

Join the march on 30th January (Assembly at 1 pm at Ramlila Ground)

If you plan to join or volunteer with us, do call us 9717460029

Thursday, January 13, 2011

सीवीसी पी जे थॉमस को कैरेक्टर सर्टिफिकेट!


थॉमस साहब की नियुक्ति पर सवाल उठाने वालों....उनसे कैरेक्टर सर्टिफिकेट मांगने वालों...उनकी ईमानदारी और सादगी पर उंगली उठाने वालों...अरे उंगुली उठाने से पहले देख तो लिया होता कि किसकी तरफ उंगली उठा रहे हो...कमबख्त...ऐसे शख्स की ईमानदारी पर सवाल उठा रहे हो...जिसकी कर्तव्यनिष्ठता के लिए...एक के बाद एक इनाम मिलते रहे हैं...

पामोलिन घोटाले में पहली बार जब...पी जे थॉमस पर इल्जाम लगा तो...एक तरफ उनपर चलने वाले मुकदमे पर याचिका के जरिए रोक लगा दिया गया...और बतौर इनाम दूरसंचार मंत्रालय की कमान सौंप दी गई...जी हां...वही अपने अन्ना ए राजा वाला मंत्रालय...आपको तो पता ही होगा...कि 2-जी स्पेक्ट्रम में हुआ 1,76,000 करोड़ का घोटाला हाल-फिलहाल में हुआ घोटाला नहीं है...भाई साहब अन्ना राजा की करतूत यूपीए के पिछले कार्यकाल के दौरान की है...इसके साथ-साथ एक और हकीकत आपको बताते चलें कि इस दौरान पी जे थॉमस ही...दूरसंचार मंत्रालय के सचिव के पद पर काबिज थें...यकीन मानिए....कर्तव्यपरायण थॉमस को उनकी वफादारी का इनाम मिला है...वरना इतने विवादों के बाद सीवीसी जैसे अहम पद पर थॉमस की तैनाती का जोखिम भला कोई क्यों और कैसे ले सकता था...उस पर भी तब...जब कांग्रेस के युवराज महंगाई डायन के सुरसा की मुंह की तरह बढ़ते आकार के लिए गठबंधन को जिम्मेदार बता रहे हों...कहने का मतलब ये है कि इल्जाम लगाने से पहले...आप अपने गिरेबां में झांके न झांके...जिसपर इल्जाम लगा रहे हैं...उसकी हैसियत ज़रूर नाप लें...नहीं तो कहीं लेने के देने न पड़ जाए...बहरहाल....पामोलिन मामले पर अदालती कार्यवाही एक बार फिर शुरू होने के आसार हैं...लेकिन इससे इनाम देने दिलाने का सिलसिला थम जाएगा...इस मुगालते में मत आइएगा...

चाय दुकान से एक आम भारतीय

Wednesday, January 12, 2011

बदल दीजिए सरकार क्योंकि राहुल के मुताबिक महंगाई के लिए गठबंधन है जिम्मेदार



इसे महज इत्तेफाक़ ही कहिए...कि जब-जब राहुल गांधी यूनिवर्सिटीज के दौरे पर होते हैं...केन्द्र की यूपीए सरकार के सामने एक नई समस्या सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी रहती है...और इस बार तो कहर ढा रही है...महंगाई डायन...चलिए राहुल बाबा ऐसे परिवार और क्षेत्र (करियर के लिहाज से) से ताल्लुक रखते हैं कि उन्हें किसी डायन का कोई ख़तरा नहीं....लेकिन इस बार कॉलेज दौरों के दौरान उनसे पूछे जाने वाले सवालों में सबसे ज्यादा....इसी डायन से जुड़े रहे...राहुल बिल्कुल नहीं डरे...डरे भी काहे...कोई डायन दिख थोड़े रही है...अरे भाई डायन से जुड़ा सवाल ही है...सो हांक दिए...एक और बयान...राहुल बाबा ने खुले लफ़्जो में गठबंधन को महंगाई का जिम्मेदार बताते हुए...कांग्रेस की छवि को उज्ज्वल बनाए रखने की पूरी कोशिश की....ठीक वैसे ही जैसे कभी कवि हृदय अटल बिहारी वाजपेयी साहब हर नाकामयाबी का ठीकरा गठबंधन पर फोड़ा करते थे...

क्या राहुल राजनीति की ये अहम सीख कांग्रेस की धुर विरोधी पार्टी के एकमात्र प्रधानमंत्री से सीखी है...लेकिन बयान देने से पहले राहुल और उनकी टीम को थोड़ा बहुत तो तथ्यों को परखना ही चाहिए था...मसलन...देश के वित्त मंत्रालय की कमान किसके हाथ में है...प्रणब मुखर्जी साहब से पहले...पी. चिदंबरम भी कांग्रेस के ही थे...और मनमोहन सरकार वाली ये गठबंधन कोई पहली बार देश नहीं संभाल रही है...गत 22 मई को यूपीए की इस सरकार को देश ने इसके परफॉर्मेंस के आधार पर ही दोबारा कमान सौंपी है...पूरे मामले का सबसे अहम पहलू तो ये है कि देश की आज़ादी के बाद से अब तक आर्थिक नीतियों पर सबसे ज्यादा पकड़ किसी पार्टी की रही...है तो वो कांग्रेस ही है....और इस वक्त देश के प्रधानमंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे मनमोहन सिंह...एक प्रशासक बाद में हैं...एक अर्थशास्त्री पहले हैं...इतने के बावजूद महंगाई के लिए राहुल बाबा गठबंधन को जिम्मेदार बता रहे हैं...तो यकीनन वो ये बताना चाह रहे हैं कि...देश की जनता ने 2010 के आम चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन को जनादेश देकर गलती की है...

पिछले कुछ महीनों से महंगाई ने जिस तरह पूरे देश का ज़ायका बिगाड़ रखा है...उससे निपटने का राहुल का ये तरीका...कितना सही है...इसका फैसला तो जनता करेगी ही...लेकिन राहुल बाबा को बढ़ती महंगाई के पीछे गठबंधन की भूमिका के बारे में जनता को क्या बताएंगे...कि गठबंधन का कितना और क्या दोष है...अगर वाकई गठबंधन में खामियां हैं...तो यूपीए की पहली सरकार के दौरान ऐसा कुछ क्यों नहीं हुआ...राहुल के बयान से लगता है कि उन्हें एब्सोल्युट पॉवर की ख्वाहिश कहीं ज्यादा परेशान कर रही है...तभी वो तकनीकी पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर...देशवासियों को भरमाने में जुटे हैं... लेकिन भईया राहुल...बिहार जैसे बीमारू राज्य कहे जानेवाले सूबे की जनता जब...होशियारी भरा फैसला सुनाते हुए...विकास के नाम पर नीतीश कुमार की सरकार को जनादेश दे सकती है...तो यकीन मानिए...समूचे भारत की जनता का बौद्धिक स्तर बिहार की जनता से कहीं बेहतर है...और वो राहुल बाबा के बयानों पर आंख बंद कर भरोसा करे...इसमें शक है....आगे तो हम यही कहेंगे कि....राहुल बाबा तो राहुल बाबा हैं...उनको कौन समझाए...वो जिस पर चाहे इल्जाम लगाएं...

चाय दुकान से एक आम भारतीय

ABHISHEK PATNI

बयान बहादुर राहुल


राहुल गांधी राजनीति के महारथी का खिताब लेने को अमादा दिख रहे हैं...ताबड़-तोड़...मीटिंग्स...छात्र संघों में छात्रों को संबोधित करना...उनके सवालों का जवाब देना...और सबसे अहम हर बार कुछ अलग...कुछ नया बयान देना...यूपी को अपनी राजनीति का केन्द्र में बनाने में जुटे...कांग्रेस के युवराज...युवा शक्ति के युवराज बनने की जुगत में है...वो युवाओं का इस्तेमाल कर...केन्द्र पर एकछत्र राज के ख्वाहिशमंद हैं...और इसके लिए जी-जान से जुटे हैं...मेहनत कर रहे हैं...कड़कड़ाती ठंढ में वो इन दिनों यूपी के तमाम कॉलेजों का चक्कर लगा रहे हैं...छात्रों को राजनीति में आने का न्यौता दे रहे हैं...(कांग्रेसियों की जनसंख्या बढ़ाने की मुहिम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं)...इस मुहिम में हर बार वो एक नया बयान जरूर देते हैं...वजह ये कि उनके हर दौरे से पहले केन्द्र की यूपीए सरकार किसी न किसी तरह के नए विवाद में जरूर आ जाती है...खैर...राजनीति में तो ये लगा ही रहता है...इस बात से आप सभी इत्तेफाक़ रखेंगे....

राहुल ने युवाओं को राजनीति से जोड़ने के लिए...या यूं कहे कि कांग्रेस में शामिल करवाने के मकसद से उन्हें उकसाने वाला बयान दिया है...राहुल के मुताबिक...वो राहुल गांधी नहीं होते तो भी राजनीति में ही होते...और राजनीति से रोजी-रोटी कमाते...है न हैरानी भरा बयान...बेहद व्यवहारिक राजनेता बनने की कोशिश में जुटे राहुल का गैर-व्यवहारिक बयान...अरे कोई राहुल सर को समझाए...कि राजनीति की राह उतनी आसान नहीं है....जितनी वो बता रहे हैं...चालीस की उम्र में उनके पिता कहां थे...और वो कहां ये तो एक बड़ा फर्क है ही...लेकिन अगर राहुल गांधी नहीं होते...तो यकीनन आज जहां हैं...वहां क्या...उससे दूर-दूर तक कहीं नहीं होते...न जाने किस मुगालते में राहुल जी ने ये बयान दिया है...

राजनीति की राह में कितने तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं...ये आज के युवाओं को राहुल से समझने की तो कतई जरूरत नहीं...अभी भारतीय राजनीति के मौजूदा दौर में किसी पार्टी के अहम नेताओं की फेहरिस्त पर नज़र डालें...तो हकीक़त ख़ुद-ब-ख़ुद सामने आ जाएगी...राहुल गांधी के मुहिम में आम युवा कितना शामिल होते हैं...और कितने कांग्रेस में शामिल होने वाले आम युवाओं को कांग्रेस पार्टी तरजीह देगी...जगह देगी...ये तो आने वाले वक्त में देखने वाली बात होगी....हां...इतना जरूर है कि राहुल के इस मुहिम में...हर उस शहर के रईसजादे जरूर शामिल होंगे...जिस शहर का दौरा कांग्रेस के युवराज करेंगे....और शामिल होने वाले यकीनन वो ही होंगे जो अब तक अपना करियर तय नहीं कर पा रहे हों...और बिना किसी खास मिहनत के पॉवरफुल करियर बनाना चाहते हों...वहीं राहुल जी के इस मुहिम को दोहरा फायदा होगा...एक तो पार्टी की जनसंख्या बढ़ेगी...वहीं पार्टी फंड में भी इजाफा होगा...जय हो !!!


चाय दुकान से एक आम भारतीय

अभिषेक पाटनी

दिल्ली विश्वविद्यालय: शिकारियों के बीच घिरी एक लड़की



(डीयू में हुए यौन उत्पीडन मामले की सच्चाई बता रहे हैं दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉक्टर प्रेम सिंह. डॉक्टर सिंह समाजवादी जन परिषद से जुडे है और सामाजिक मुद्दों पर उनकी बेलाग टिप्पणी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं औरअखबारों में छपती रहती है. चाय दुकान पर उनके विचार से हम लगातार अवगत होते रहेंगे)

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा देश और दुनिया में है। राजधनी में स्थित होने के चलते आशा की जाती है कि वहां यौन उत्पीड़न का मामला होने पर समयबद्ध कार्रवाई होगी। अगर शिक्षकों द्वारा छात्रा के यौन उत्पीड़न का मामला हो तो विश्वविद्यालय प्रशासन जल्दी से जल्दी जांच और न्याय सुनिश्चित करेगा ताकि छात्रा की पढ़ाई और छवि पर असर न पड़े। आरोपियों को जांच पूरी होने तक सभी जिम्मेदारी के पदों से हटा दिया जाएगा ताकि वे अपनी हैसियत का दृरुपयोग करके जांच को प्रभावित न कर सकें। लेकिन अपफसोस की बात है कि हिंदी विभाग में दो साल पहले प्रकाश में आए तीन शिक्षकों द्वारा अपनी एक छात्रा के यौन-उत्पीड़न के मामले में छात्राा को अभी तक न्याय नहीं मिला है। विश्वविद्यालय प्रशासन से निराश होकर पीड़िता दिल्ली उच्च न्यायालय में न्याय पाने की आस में गई है। यह लेख लिखने का हमारा आशय उस मानसिकता को रेखांकित करना है जो आधुनिकता और प्रगतिशीलता के बावजूद हमें स्त्राी-विरोध्ी बनाए रखती है। यह सच्चाई स्वीकार करके ही हम स्त्राी-उत्पीड़न के मामलों में कुछ सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं। हम पहली बार इस मामले पर अपनी बात रख रहे हैं।

पीड़िता ने सितंबर 2008 को हिंदी विभाग के तीन शिक्षकों प्रोफेसर अजय तिवारी, प्रोफेसर सुधीश पचौरी और प्रोफेसर रमेश गौतम के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। वह विश्वविद्यालय प्रशासन का होस्टाइल रुख देख कर महिला आयोग और तत्कालीन मानव संसाधन मंत्राी अर्जुन सिंह के पास भी गई। विश्वविद्यालय की सर्वोच्च एपेक्स समिति से जांच कराने की लड़ाई लड़ी। धमकियों के बीच सुरक्षित वातावरण प्रदान करने और जांच पूरी होने तक तीनों आरोपियों को जिम्मेदारी के पदों से मुक्त रखने की बार-बार लिखित अपील कुलपति से की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। तब से करीब अढ़ाई साल बीत चुके हैं और पीड़िता कोर्ट की शरण में गई है। कोर्ट ने उसका मामला स्वीकार कर लिया है। इसके पहले वह पीएच.डी. के दाखिले में की गई अनियमितता के खिलाफ भी कोर्ट में जा चुकी है। वह मामला भी कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था और उस पर सुनवाई चल रही है।

इस लंबी अवधि का पूरा ब्यौरा यहां नहीं दिया जा सकता। जिस एक आरोपी प्रोफेसर अजय तिवारी को बर्खस्त करने का निर्णय कार्यकारिणी समिति ईसी ने डेढ़ साल पहले लिया था वह भी अभी तक लागू नहीं किया गया है। उल्टे इस साल मई में एपेक्स समिति ने पीड़िता पर असहयोग करने का अरोप लगा कर मामले को बंद कर दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन, उत्पीड़कों और उनके समर्थकों ने आरोपियों को बचाने और पीड़िता को ध्वस्त करने के वे सभी हथकंडे अपनाए जिनका ऊपर जिक्र किया गया है। तीनों आरोपियों में पहले दो के विभाग में आने से पहले न दोस्ताना संबंध थे न विचारधारात्मक। तीनों में परिपक्व आयु में दांतकाटी रोटी होने का सबब स्वार्थ और भ्रष्टाचार था। उनमें किसका क्या स्वार्थ था और कौन यौन उत्पीड़क और कौन आर्थिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचारी, इससे इस सच्चाई पर फर्क नहीं पड़ता कि तीनों एकजुट होकर सब कर रहे थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के पिछले कुलपति अपराधी दिमाग के शख्स हैं। बतौर कुलपति नियुक्ति से लेकर कोबाल्ट मामले तक कितने ही ऐसे प्रकरण हैं जो उनकी आपराधिक वृत्ति का पता देते हैं। उस ब्यौरे में हम यहां नहीं जाएंगे। वह प्रैस में आ चुका है, यूनिवर्सिटी टुडे और चौथी दुनिया में विशेष स्टोरी भी आई हैं। हमने भी हिंदी विभाग में पीएच.डी. के दाखिलों में की गई अनियमितताओं के मामले में विभागाध्यक्ष के रूप में प्रोफेसर रमेश गौतम और प्रोफेसर सुध्ीश पचौरी को बचाने के कुलपति के कारनामों का खुलासा प्रैस के सामने किया

पिछले दिनों स्त्राी-विरोध्ी साक्षात्कार देने के चलते चर्चा में आए महात्मा गांध्ी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति से अजय तिवारी को रिलीव करने को कहा ताकि वे उन्हें अपने यहां रख सकें। सुना है वे स्वयं चलकर आए थे। लेकिन तब तक सुध्ीश पचौरी और रमेश गौतम से कुलपति का सौदा हो चुका था। दोनों को पूरा बचाने के लिए अजय तिवारी को पूरा पफंसाना जरूरी था। यहां बता दें, मामला प्रकाश में आने पर तीनों आरोपियों ने मिल कर बचाव की रणनीति बनाई थी। पिफर अजय तिवारी को अकेला छोड़ दिया गया। अब रमेश गौतम की बारी है। पचौरी अपने गले में पफंदा कसते देख उन्हें अकेला छोड़ देंगे। उत्तर-आध्ुनिक न्याय का यही तकाजा है!

21 तारीख को कुलपति द्वारा यौन शोषण के आरोपी सुधीश पचौरी को डीन ऑफ कॉलेजेज बनाने के विरोध में हुए हिंदी विभाग में यौन उतपीड़न के खिलाफ संघर्ष समिति के प्रतिरोध मार्च के दौरान बांटे गए पर्चे में लिखा है कि एपेक्स समिति को यौन शोषण के मामले में स्त्राी पक्ष के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। लेकिन समिति समाज से बाहर नहीं है। जो समाज इस कदर संवेदनहीन और स्वार्थी हो, उसमें कड़े से कड़े कानूनों के बावजूद यौन उत्पीड़न की शिकार स्त्रिायों को पूरा न्याय मिल पाना असंभव है। पीड़िता ने कुछ दिन पहले हमें कहा, सर मुझे तो लगता है यहां ज्यादातर शिक्षक नहीं, शिकारी हैं। एपेक्स समिति, कुलपति, महिला आयोग, मंत्राी, विजीटर सब मिल जाते हैं। मैं शिकारियों के बीच फंस गई हूं। वाकई, इन ऊंचे खेलों में एक अदना पीड़िता क्या खाकर टिकेगी? थोड़े-से आदर्शवादी और निडर नवयुवतियों और नवयुवकों, जिनमें ज्यादातर छोटे वामपंथी समूहों से हैं, ने हिंदी विभाग में यौन उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष समिति बना कर उसका साथ न दिया होता तो वह कब की हार चुकी होती!

भला हो प्रशांत भूषण का। पीड़िता की गुहार उन तक पहुंची तो उन्होंने पीड़िता से बिना मिले, बिना उसकी जाति, इलाका, आर्थिक हैसियत जाने उसके द्वारा कोर्ट में दायर पीएच.डी. के प्रवेश में हुई अनियमितताओं का मामला देखना स्वीकार कर लिया है। यह प्रशांत भूषण ही कर सकते थे। अब विश्वविद्यालय प्रशासन और पूर्व विभागाध्यक्ष व वर्तमान डीन प्रोफेसर सुधीश पचौरी के कान खड़े हैं कि कैसे बचा जाए। अगर प्रशांत भूषण ने छात्राा के यौन उत्पीड़न के मामले को देखना भी स्वीकार कर लिया तो संभावना है पीड़िता को लंबे संघर्ष के बाद न्याय और उत्पीड़िकों को दंड मिल जाए

Monday, January 10, 2011

धनकुबेरों से सोनिया ने की अपील


सुनने में थोड़ा अजीब ज़रूर लगा...लेकिन ख़बर दुरुस्त है...कांग्रेस अध्यक्ष ने लेख पूरी शिद्दत के साथ लिखा है (हिन्दुस्तान संपादकीय 11-01-2011)...सोनिया की इस अपील में एक तरह की जागृति को साफ तौर पर देखा जा सकता है...इस लेख से ये भी साफ हो चुका है...कि भारत को वो किसी दूसरे भारतीय से कम नहीं समझती हैं....जानती हैं...चाहती हैं....और ये भी
कि...वो एक संवेदनशील महिला पहले हैं...किसी पार्टी विशेष की अध्यक्ष और दुनिया की ताकतवर महिला बाद में...अपने लेख में सोनिया गांधी ने दलील देते हुए देश के धनकुबेरों से दान की परंपरा को बनाए रखने की अपील की है...एक हद तक अपील जायज़ भी लगती है...वाकई देश में (और देश के) धनकुबेरों की तादाद पिछले दो दशकों में काफी तेजी से बढ़ी है...जिसके लिए यकीनन उदारीकरण की नीति प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर से जवाबदेह है...लेकिन देश में विप्रो के मालिक अजीम प्रेमजी के 8,846 करोड़ रुपए के दान दिए जाने से पहले...दान की अहमियत शायद कुछ और थी...भले ही बिल गेट्स और वारेन बफेट सरीखे लोग पूरी दुनिया में घूम-घूमकर इससे कई सौ गुना ज्यादा का दान हर रोज़ कर रहे हों...लेकिन अपने देश में दान की नई गाथा अब शुरू हुई है...ऐसा नहीं है कि अब से पहले हमारे देश में धनकुबेर दान नहीं देते रहे हैं...अरे भाई साहब दान देते भी रहे हैं...और लेनेवाले दान लेते भी रहे हैं...दधिचि मुनि के इस देश में दान देने की ऐसी ठोस परंपरा रही है जिसके लिए उदाहरण और नज़ीर देने की ज़रूरत तो कतई नहीं है....और आज के युग में दान की महिमा इस कदर बढ़ी है कि इंसान क्या...कंपनियां तक दान देने में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं....क्या बड़ी, क्या छोटी...और क्या सरकारी और गैर-सरकारी हर तरह की कंपनियां दान के इस खेल की माहिर खिलाड़ी थीं...वजह दान से टैक्स में मिलने वाली रियायत...और मुफ़्त की
मक़बूलियत...जो आज भी बदस्तूर जारी है...यकीन न आए तो जरा किसी प्राइवेट या पब्लिक सेक्टर यूनिट का दरवाजा खटखटाएं...दान का खाता-बही संभालने वाले अधिकारी...कैसे बिदकते हैं...फिर देखिए !...किसी सवाल का जवाब.....अरे साहब...वो बिना आरटीआई के...आपसे बात तक नहीं करेंगे...एक बार सारी जानकारी...लेने के बाद ज़रा...उन संस्थानों में भी आरटीआई दाखिल
कर जानकारी मांगिए जहां-जहां दान दिया गया...और जानने की कोशिश कीजिए कि क्या दान की जितनी रकम...भेजी गई क्या उनके खाते में भी उतनी ही रकम गई है...आपको ख़ुद-ब-ख़ुद दान से जुड़ा सारा खेल...सारा माज़रा समझ में आ जाएगा...कहने का मतलब ये कि दान के नाम पर गैर-सरकारी कंपनियां और सरकारी कंपनियों के बाबू लोग जितनी मोटी कमाई हर साल करते हैं...इसमें कोई शक नहीं कि उस रकम से देश की चालीस फीसदी अतिपिछड़ी आबादी का उद्धार किया जा सकता है...
सोनिया जी सुन रहीं हैं आप...
चाय की दुकान से एक आम भारतीय

अभिषेक पाटनी