Tuesday, December 17, 2013

जनता सावधान... हज़ार राहुलों की फौज तैयार हो रही है

जनता अब बेचारी नहीं रही... जनता अब वक़्त की मारी भी नहीं रही... लेकिन फिर भी अक़्ल की मारी जनता को बार-बार शह-बचो की चेतावनी देना ज़रूरी है... हर बार उसे सावधान करना ज़रूरी है... कि आगे ख़तरा है... हालांकि ख़तरों के लिए जनता का रवैया बेहद ढुल-मुल होता है... और ख़तरों से निपटने के लिए... हर बार उसे एक आंदोलन के लिए तैयार करना पड़ता है... मानिए या न मानिए... एक ख़तरे की सुगबुगाहट फिर सुनाई दे रही है... पता नहीं कि जनता इस सुगबुगाहट को सुन-देख पा रही है या नहीं लेकिन... अगर आज इस सुगबुगाहट की अनदेखी कर दी गई तो... आने वाले वक़्त में इसकी बहुत बड़ी क़ीमत उसी जनता को चुकानी पड़ेगी जो ख़ुद के फटेहाली पर भी जश्न मनाने का माद्दा रखती है।

जो राहुल गांधी को शहज़ादा या राजकुमार या राजनेता या अभिनेता या कुछ और की उपाधि देने से नहीं चूकते ... वो ग़लत हैं... वो सरासर ग़लत हैं और उनकी ग़लती क्षम्य नहीं है। वज़ूहातों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसकी चर्चा यहां संभव नहीं है। वर्तमान परिपेक्ष्य में राहुल गांधी एक रूपक हैं... एक संस्कृति के वाहक हैं जिस संस्कृति का नाम राहुल संस्कृति दिया जाना ग़लत नहीं होगा...क्योंकि देश की राजनीति में दखल रखने वालों के लिए राहुल गांधी एक नज़ीर हैं ... दल और पार्टी के दंगल से परे... एक अनुकरणीय उदाहरण हैं... और सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि आने वाले दिनों में भारत वर्ष को हज़ार राहुलों की फौज मिलने जा रही है... चाहे-अनचाहे इसकी अच्छी शुरूआत हो चुकी है...

चूंकि राहुल देश की सवा सौ साल पुरानी पार्टी से ताल्लुक रखते हैं.. ऐसे में लाज़िमी है... शुरूआती बढ़त उनके घरवालों की उस पार्टी को ही मिलनी थी.. वो मिली भी... लेकिन यहां ये जान लेना ज़रूरी है कि कांग्रेस पार्टी के अंदर वो बढ़त एक हद तक ग्राह्य रही है... फिर चाहे मामला ज्योर्तिआदित्य सिंधिया का हो या सचिन पायलट का या फिर जितिन प्रसाद का... इन सबों को भारतीय इतिहास और संस्कृति की जानकारी जैसी और जितनी हो... इसकी चर्चा नहीं होती... इसलिए इनकी विरासत महफूज़ रही और इस तरह के तमाम नौसिखिए राहुल संस्कृति के वाहक बनते चले गए और गुज़रते वक़्त ने इनकी मौज़ूदगी को सहज़ बना दिया...

वहीं राहुल संस्कृति एक संक्रामक रोग के मानिन्द भाजपा समेत तमाम पार्टियों और दलों को भी अपने लपेटे में लिया... प्रवेश सिंह वर्मा... अजय कुमार मल्होत्रा... विनय मिश्रा... भाजपा के अंदर राहुल रूपक है... लेकिन ठहरिए... हर पार्टी में गिनती सिर्फ तीन तक ही है ऐसा नहीं है... पार्टी और उनके अंदर राहुल रूपकों की फेहरिस्त लंबी है... चिराग पासवान... तेजस्वी यादव... तेज प्रताप यादव और न जाने ऐसे कितने ?

राजनीति गलियारे की ये वो पौध हैं जो देश के इतिहास-भूगोल से अनजान हैं... ज्ञान के नाम पर जिनके पास पिता का नाम है... साथ में है बेशुमार पैसा... और एक चाह... चाह अपने पिता की ही तरह सियासी अखाड़े का नामचीन बनना ... लेकिन अफसोस इन रूपकों को इनके पिता के अतीत और संघर्ष की हक़ीक़त नहीं मालूम ... इन्होंने तो अपनी अब तक की ज़िन्दगी में ज़्यादा किंवदन्तियां ही सुन रखी हैं ... जबकि राहुल संस्कृति के तमाम फौज़ियों के वालिदों को अपने मुल्क़ का अतीत.. वर्तमान.. ताना-बाना... अहमियत... सबकुछ पता था.. पता है... वहीं इन लोगों को चाहिए जल्द से जल्द शोहरत सत्ता और ताक़त... इसलिए ये हर वो चीज़ करने को तैयार है, जिससे पिता की विरासत संभाली जा सके...

रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने तो पहले अदाकारी में हाथ आजमाया लेकिन पहली नाक़ामी के बाद ही जान गए कि वो जनसेवा के लिए ही बने हैं... ठीक इसी तरह लालू के पुत्र तेजस्वी यादव क्रिकेट में भाग्य आजमाने गए.. लेकिन जब जान गए कि क्रिकेट भाग्य भरोसे नहीं खेला जा सकता तो पिता की विरासत संभालने चले आए.. काश इन लोगों ने विरासत संभालने से पहले कुछ तैयारी कर ली होती और ज़्यादा नहीं तो उतनी ही कर ली होती... जितनी अपनी इकलौती फिल्म से पहले चिराग पासवान ने की थी...या क्रिकेटर बनने के लिए तेजस्वी यादव ने... लेकिन किसी तरह की तैयारी में राहुल संस्कृति के ये वाहक अपना वक़्त ख़राब नहीं करना चाहते... क्योंकि उनको पता है कि उनके देश की जनता पत्थर रख कर पूजने की आदी हो चुकी है... और राजनीति में उनके वालिद वो मील का पत्थर बन चुके हैं...

ख़ैर आने वाले संसद की रूप-रेखा तैयार हो रही है... जनता को तब तक बेख़बर बने रहने की आज़ादी है जब तक उनका आशियाना जलने न लगे... उसके बाद एक आंदोलन की शुरुआत तो हो ही जाएगी... क्यों?