Tuesday, March 18, 2014

बदल रहा है गुनहगार होने के मायने

 

पिछले कुछ महीनों की घटनाएं देखकर कहा जा सकता है कि देश में जिसके पास अकूत पैसा है, वो कुछ भी कर पाने में सक्षम है। पिछले साल के आख़िर में मुकेश अंबानी के बेटे ने अपनी महंगी गाड़ी के नीचे दो लोगों को कुचलकर मार दिया। क़ायदे से तो मुकेश अंबानी के बेटे पर भी हिट-एंड-रन के तहत केस दर्ज़ करके ग़ैर-इरादतन हत्या का मामला चलाना चाहिए था लेकिन नहीं, पूरे मामले को इतनी जल्दी और इतने बेहतरीन तरीक़े से मैनेज किया गया कि देश में बहुत कम लोगों को ही इस बात की जानकारी भी हुई। क्या पैसे से किए गए गुनाह को मुआफ़ करवाया जा सकता है? अगर हां, तो फिर ये सुविधा सबको दीजिए ना। यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की मांग यहां भी जायज़ नहीं बनती क्या? अदालत से बाहर समझौते की सुविधा के नाम पर हत्या जैसे संगीन मामले में छूट कैसे दी जा सकती है? ये बात समझ से परे है। हरदिल अज़ीज़ सलमान ख़ान के मामले में अब यक़ीनन ऐसा ही कुछ किया जा रहा है। मामला एक दशक से ज़्यादा लंबा खिंच गया है। इस दौरान अदालती कार्यवायी क्या हुई इससे कहीं अहम हो जाता है कि अब अदालत के बाहर क्या कुछ करने की तैयारी चल रही है। सलमान की कार से कुचल कर मरने वालों के परिजन के ज़ख़्म वक़्त ने एक हद तक भर दिए हैं वहीं बाक़ी की कसर, सलमान के परिवारवाले मुंहमांगी क़ीमत चुका कर, पूरी करने को तैयार हैं। और सबसे अहम इस मुहिम को देश के तमाम नामचीन हस्तियों का समर्थन मिल रहा है। यदि अदालत के बाहर पैसे देकर समझौता होता है तो यक़ीन मानिए देश की दुर्दशा दूर नहीं है...अराजकता दूर नहीं है...सिविल वार दूर नहीं है। सहाराश्री सुब्रत रॉय के लिए देश के तमाम वर्गों में सहानुभूति देखी जा रही है। सबसे ज़्यादा तक़लीफ़ सुप्रसिद्ध लोगों को है। कपिलदेव ने सहाराश्री को देशभक्त बताया अरे हुज़ूर बताने वाले नाथूराम गोडसे को भी देशभक्त बताते हैं। बॉलीवुड के नामचीन लोगों ने बक़ायदा प्रेस कॉन्फ्रेन्स के ज़रिए अपना समर्थन सुब्रत रॉय को दिया। जबकि प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर रहे लोगों में एक भी शख़्स ऐसा नहीं था जिसे सुब्रत रॉय के गुनाह की भनक भी हो। तमाम लोग इसलिए उनके समर्थन में सामने आने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उनके लिए सुब्रत रॉय का व्यवहार बेहद मीठा रहा है। क्या व्यवहार कुशल लोग अपराधी नहीं होते? क्या मीठा बोलने वाले गुनाह नहीं करते? अमीर होने का मतलब अपराध करने की आज़ादी मिलना है क्या? किस क़ानून में लिखा है कि मक़बूलियत का मतलब है गुनाह करने की आज़ादी है? किस संविधान में लिखा है पढ़े-लिखे अमीर अपराधी नहीं होते? हक़ीक़त तो ये है जो जितना बड़ा जानकार है वो उतने शातिराना अंदाज़ से गुनाह को अंजाम देता/दे रहा है। क्या है सहाराश्री से जुड़ा मामला? सहारा समूह पर निवेशकों के 20 हजार करोड़ रूपए बकाया हैं। यह मामला निवेशकों को उनके 20 हजार करोड़ रूपए नहीं लौटाए जाने का है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले की सुनवाई में सेबी को निवेशकों के पैसों की वसूली के लिए कंपनी की संपत्ति की बिक्री करने की इजाज़त दे दी थी। न्यायमुर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमुर्ति जेएस खेहर की खंडपीठ ने सेबी को पिछली सुनवाई में यह निर्देश दिया था कि वह निवेशकों के 20 हजार करोड़ रूपए की उगाही के लिए सहारा ग्रुप की संपत्ति को बेच दे। सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त , 2012 में दिए गए अपने फैसले में सेबी को पैसों की वसूली के लिए सहारा कंपनी की संपत्ति की कुर्की करने का आदेश दिया था। जिसके बाद से सहारा प्रमुख, अदालत और सेबी के बीच चूहे-बिल्ली-बंदर का खेल शुरू हुआ। सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय के समर्थन में तर्क देने वाले कुछ लोगों का ये भी कहना है कि उनकी वज़ह से लाखों लोगों के घरों में चूल्हा जलता है। ये बात इन पंक्तियों के लेखक को हास्यास्पद प्रतीत होती है। जिनदिनों जेसिका लाल हत्याकांड का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन था उस वक़्त मामले के मुख्य अभियुक्त सिद्धार्थ मनु शर्मा के पिता श्री विनोद शर्मा जी ने अदालत के सामने कुछ ऐसे ही तर्क प्रस्तुत किए थे। पक्षकार के वक़ील की दलील थी कि सिद्धार्थ मनु शर्मा कई कंपनियों के संचालक हैं, जिन कंपनियों में हज़ारों लोग काम करते हैं, उनकी रोज़ी-रोटी चल रही है वगैरह-वगैरह। अदालत ऐसे दलीलों से प्रभावित होती तो जेसिका को न्याय कैसे मिलता? जिन लाखों लोगों के घरों में चूल्हा सहारा प्रमुख की वज़ह से जलता है, क्या जाने-अनजाने सुब्रत रॉय के साथ-साथ वो देश की पूरी जनता के गुनहगार नहीं बन चुके हैं? सहारा प्रमुख के धंधों में बराबर के हिस्सेदार। इन्हीं लाखों लोगों के कंधों पर बंदूक रखकर सुब्रत रॉय जैसे लोग अपना निशाना लगाते रहते हैं। जनता के पैसे के ज़रिए धंधा करने वाला बंदा देश के नामचीन हस्तियों में शुमार हो जाता है, नामचीन हस्तियों से रिश्ते बनाता है, उन्हें तमाम तरह से उपकारित कर बेहद शातिराना अंदाज़ से अपने गुनाह में शामिल कर लेता है। आलम तो ये है कि बग़ैर गुनाह की पड़ताल किए कुछ नामचीन लोग प्रेस कॉन्फ्रेन्स करके न्याय-प्रक्रिया पर हावी होने की कोशिश में जुटे हैं। क्या दो लोग की जान बचाने के एवज में दुनिया का कोई क़ानून दो लोग की हत्या करने की इजाज़त देता है। अपराध करने के बाद जब तक मामला अदालत में विचाराधीन हो उस दौरान कोई कुछ सामाजिक काम करना शुरू कर दे तो क्या उसका गुनाह मुआफ़ कर दिया जाएगा। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सभी को पता है लेकिन फिर भी एक रास्ता तैयार करने की जुगत में हर पैसे वाला अपराधी जुटा है। आम आदमी की नज़र में हत्या सबसे बड़ा गुनाह हो सकता है लेकिन क़ानून की नज़र में आर्थिक गुनाह उससे कहीं ज़्यादा बड़ा और ख़तरनाक गुनाह है। हर्षद मेहता और तेलगी का मामला ऐसा ही कुछ मामला था। ऐसे मामले को केवल देश की जनता से धोखाधड़ी का मामला ही नहीं कहा जा सकता। आप अंदाज़ा तो लगाकर देखिए जितने करोड़ का घपला-घोटाला ऐसे लोग करते हैं, उतने पैसे से कितने लोगों को रोज़गार मिल सकता है? कितने लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा सकती हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि आर्थिक आज़ादी के बग़ैर आज़ादी का कोई मतलब नहीं है। आमजन के लिए हर्षद मेहता, तेलगी और सहाराश्री सुब्रत रॉय जैसे लोग ही आर्थिक आज़ादी में रोड़ा बने हुए हैं। फिलहाल जबतक कोई ठोस नतीज़े सामने नहीं आते हम इस राग का अलाप तो लगा ही सकते हैं - “समरथ को नाहीं दोष गोंसाई” ।