Monday, May 4, 2015

कहां जा रहे हैं हम...

कुछ एक साल पहले तक कहनेवाले ये कहा करते थे कि भारत ,एक ऐसा देश  है, जो एक साथ कई शताब्दियों में जीता है। किन्तु, नियंता बनकर कुछ लोगों ने इस सत्य को झूठ में बदल देने की क़ामयाब कोशिश की और कर रहे हैं। इस उपक्रम में सतह से लेकर जड़ तक प्रभावित हुए हैं। और भारत, विवश हो गया है, एक शताब्दी में जीने को। भारत के लोग खुशी-खुशी या मजबूरन एक जैसे दिखने को विवश हुए हैं। कृषि पर निर्भरता ,उतनी नहीं घटी, जितना गांव से शहर की ओर पलायन हुआ है।
और फ़ायदा! फ़ायदा पता नहीं किसे हुआ और किसे नहीं? पर वे लोग ज़रूर चुप हैं, जो भारत को एक साथ कई शताब्दियों में जीने वालों का देश बताया करते थे। उनकी खुलेआम की आलोचना ने एक बड़ा परिवर्तन ला दिया है। एक ऐसा परिवर्तन, जिसमें पिता अपने बच्चे को पढ़ाना चाहता है, बच्चा डिग्री लेना चाहता है, डिग्रीधारक अपने डिग्री के मुताबिक़ नौकरी की चाह रखता है और खेत जो सुबह जुतने का इंतज़ार करता था, इंतज़ार कर रहा है।
मंत्र पढ़ने-पढ़ानेवालों को भी हवा का रूख़ रास आया, अब तो वे आधुनिकता के साथ प्रपंचों का मणि-कांचन संयोग कर लोगों को अभिभूत कर रहे हैं। चरसी बाबा का रूपान्तरण फोर जी इंटरनेटा बाबा के रूप में हो गया। और फ़ायदा कहीं ज़्यादा बढ़ा है। इतना ज़्यादा कि असर सेंसेक्स तक दिखाई पड़ रहा है।
ख़ैर इस बदलाव ने सिर्फ़ भविष्य की दशा-दिशा बदलने का काम नहीं किया है बल्कि इस बदलाव ने हर चीज़ों पर अपना नियंत्रण बनाया है ऐर जो नियंत्रण में पहले से थे उनपर अपनी पकड़ मज़बूत की है। उच्च वर्ग और मध्यम उच्च वर्ग को हर कुछ करने की आज़ादी उनकी नज़र में भले ही दे दी गई है किन्तु शैली और आज़ादी के उपभोग का तरीक़ा फिर भी नियंता के हाथ में ही है। मध्यम वर्ग की रसोई में कब क्या और कितना पकेगा से लेकर निम्न वर्ग को किन-किन चीज़ो से वंचित रखना है हर कुछ नियंत्रित है। फिर कहने को सभी आज़ाद भारत के नागरिक हैं! भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और तेजी से उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति भी!