Friday, September 30, 2011

सजप का सैद्धांतिक दिवालियापन


(यह टिप्पणी जनसत्ता में छपे एक लेख पर डॉ. अश्वनी कुमार, हिंदी विभाग, मोतीलाल नेहरू कॉलेज (सांध्य), दिल्ली यूनिवर्सिटी ने की है.)

जनसत्ता, 27 सितंबर 2011 में छपी न्यूज स्टोरी समाजवादी जन परिषद करेगी सिद्धांत आधारित राजनीति का शीर्षक पढ़ कर जहां खुशी हुई वहीं पूरा समाचार पढ़ कर भारी धक्का लगा। अगले महीने बिहार के सासाराम में होने जा रहे समाजवादी जन परिषद(सजप) के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्‌घाटन अन्ना हजारे करेंगे, यह समाचार किसी भी तरह नहीं पच पा रहा है। इसीलिए यह टिप्पणी लिख रहा हूं। सजप का गठन नवउदारवादी व्यवस्था की जगह समाजवादी व्यवस्था कायम करने के लिए हुआ था। उसने एक नई राजनीतिक संस्कृति के निर्माण की बात की थी। लेकिन किशन जी की मृत्यु के कुछ समय पहले से ही सजप में अजीब तरह की स्थिति बनने लगी थी। कुछ लोग विदेशी धन लेने एनजीओ के साथ काम करने, कांग्रेस का साथ देने आदि की वकालत पार्टी मंच से करने लगे थे। जनसत्ता का समाचार पढ़ कर लगता है वे लोग कामयाब हो गए हैं। मेरे जैसे साधारण कार्यकर्ता की समझ से यह बाहर है कि जिन अन्ना हजारे का बड़े उद्योगपतियों के सभी संगठन, कारपोरेट लॉबी, अमरीकी सरकार, आरएसएस और एनजीओ समर्थन कर रहे हैं, उन्हें सजप के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्‌घाटन करने के लिए किस समाजवादी सिद्धांत के तहत बुलाया जा रहा है. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के निर्माताओं और सदस्यों में तरह-तरह के सांप्रदायिक, जातिवादी आरक्षण विरोधी और धर्म का व्यापार करने वाले लोग शामिल हैं। गांधीवादी अन्ना हजारे भ्रष्टाचारियों को बात-बात पर फांसी पर लटकाने और उनका मांस गिद्धों और कुत्तों को खिलाने का आह्नान करते रहते हैं। अप्रैल में जंतर-मंतर पर मिली कामयाबी के बाद उन्होंने सबसे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की प्रशंसा की थी। वे महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों को पीटने वाले ठाकरे बंधुओं और बाबरी मस्जिद ढहाने वाले कारसेवकों के भी प्रशंसक हैं। उनकी टीम में सबसे प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने खुलेआम आरक्षण के विरुद्ध यूथ फॉर इक्वेलिटी संस्था, जो रातों-रात बन गई थी, को धन सहित सभी तरह की मदद की थी। समाचार में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की कड़ी आलोचना की गई है। लेकिन नितीश अन्ना हजारे के प्रिय मुख्यमंत्री हैं। अगर सजप के मंच से वे नितीश कुमार की प्रशंसा करेंगे तो सजप की आलोचना का क्या होगा. समाचार में सम्मेलन में योगेंद्र यादव के शामिल होने की सूचना खास तौर पर दी गई है। योगेंद्र यादव लंबे समय से राहुल गांधी और सोनिया गांधी के सलाहकार हैं और कांग्रेस के लिए काम करते हैं। सजप की बैठकों में मैंने अनेक बार उनके फोर्ड फाउंडेशन जैसी बदनाम संस्थाओं से संबद्ध होने की चर्चा सुनी है। डॉ. प्रेम सिंह ने तीन लेखों -भ्रष्टाचार : विभ्रम और यथार्थ, नवउदारवाद की प्रयोगशाला में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार के घाट पर,- में यह अच्छी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि अन्ना हजारे का आंदोलन नवउदारवाद को मजबूत करने के लिए हुआ है। मैं उनके विचार से पूरी तरह से सहमत हूं। दलित विमर्श और दलित अस्मिता की राजनीति के दौर में एक दलित कार्यकर्ता के लिए दलित संगठन से अलग संगठन में सामाजिक या राजनीतिक काम करना आसान नहीं होता है। जो दलित कांग्रेस और भाजपा में शामिल होते हैं वे अपने स्वार्थ को आगे रखते हैं। उनका स्वार्थ वहां पूरा भी होता है। मैं सजप में रहा तो कुछ मूल्यों के चलते रहा। मैं किशन पटनायक, सच्चिदानंद सिन्हा और अपने गुरु डॉ. प्रेम सिंह के विचारों से प्रेरणा पाकर समाजवादी आंदोलन और सजप में शामिल हुआ था। सुनील भाई के सादगीपूर्ण जीवन और शमीम मोदी के जुझारू व्यक्तित्व का भी मेरे ऊपर काफी प्रभाव पड़ा।अब सजप नवउदारवादी सिद्धांत की राजनीति करने जा रही है। सजप को नवउदारवाद के सिद्धांत से जोड़ने वाले लोग सोचते होंगे कि अन्ना हजारे के सहारे वे कोई पद-प्रतिष्ठा पा लेंगे। एक-दो लोगों के लिए यह संभव हो भी सकता है। लेकिन साधारण समाजवादी कार्यकर्ताओं के साथ यह एक और छल होगा।

Thursday, September 8, 2011

टीम अन्‍नाः मिलिए पर्दे के पीछे के नायकों से


अगस्त 2011 का यानी अन्ना की क्रांति का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, तब शायद ही इस क्रांति के उन गुमनाम नायकों का उसमें ज़िक्र होगा, जिन्होंने दिन-रात एक करके अन्ना हजारे के लिए इस महाक्रांति की ज़मीन तैयार की. ये परदे के पीछे के वे नायक हैं, जो पिछले एक साल से इस आंदोलन की ज़मीन और जनमत तैयार कर रहे हैं. मीडिया की नज़रों में ये भले न आएं, लेकिन आज जिस महाक्रांति को जनता देख रही है, उसमें इनका सबसे बड़ा योगदान है. चौथी दुनिया ने टीम अन्ना के कुछ ऐसे सहयोगियों और उनके योगदान को आपके सामने लाने की कोशिश की है.....पूरी खबर के लिए इस लिँक पर क्लिल करेँ..... http://www.chauthiduniya.com/2011/09/team-anna-meet-the-heroes-behind-the-scenes.html

Thursday, June 23, 2011

लोकपाल: अन्ना टीम की दस गलतियां


आखिर क्या वजह रही कि अन्ना हजारे और उनकी टीम लोकपाल के मुद्दे पर अपनी बात सरकार से मनवा पाने में असफल रही. क्यों सरकार जनलोकपाल के महत्वपूर्ण प्रावधानों से सहमत नहीं हुई? अन्ना टीम की किस गलती ने महीनों की मेहनत पर पानी फेर दिया?

गलती नंबर 1.

ज्वायंट ड्राफट कमेटी की मांग बेवकूफी. सरकार को मिला जनता को बरगलाने का समय

गलती नंबर 2.

सिविलसोसायटी के सदस्यों के चयन में पारदर्शिता नहीं, नहीं लिया जनता का मत.

गलती नंबर 3.

भूषण पिता-पुत्र को कमेटी में लाना. नतीजतन, विवाद पैदा करने का मिला मौका.

गलती नंबर 4.

ज्वायंट कमेटी में नहीं शामिल किया विपक्ष के किसी नेता को

गलती नंबर 5.

पहले नेताओं से मांगा समर्थन, फिर मंच पर आने से किया मना, किया नेताओं से दुर्व्यवहार

गलती नंबर 6.

कमेटी की बैठक में सरकार लगातार इनकी मांग ठुकराती रही, फिर भी ये बैठक में जाते रहे

गलती नंबर 7.

संगठन को मजबूत नहीं बनाया. महज कुछ शहरों में कुछ स्थानीय कार्यकर्ता जुडे.

गलती नंबर 8.

छोटे शहर और ग्रामीण भारत को इस आंदोलन से जोड पाने की नही हुई कोशिश

गलती नंबर 9.

सडक से ज्यादा इंटरनेट, फेसबुक और एसएमएस पर ज्यादा छाया रहा यह आंदोलन

गलती नंबर 10.

राजनीति को गंदा बताया, लेकिन उसका कोई विकल्प प्रस्तुत कर पाने में असफल रहे

Monday, April 11, 2011

अन्ना भूखे थे, शाहरूख नाच रहा था


अन्‍ना, अनुपम और एक भांड. लोकपाल बिल के समर्थन में अन्ना हजारे हजारे के आमरण अनशन ने कम से कम इतना तो तय कर ही दिया कि अगर एक बुजुर्ग चंद दिनों भूखा रहकर सरकार पर भारी पड सकता है तो युवा चाहें तो क्‍या नहीं कर सकता. अन्‍ना की इस लडाई में अनुपम खेर, शबाना आजमी और पीयूष मिश्रा, यहां तक कि उर्मिला और दिया मिर्जा जैसे सितारे भी साथ देते दिखाई दिए. जब अनुपम खेर अन्‍ना के समर्थन में अपने विचार रख रहे थे तब उन्‍होंने अपनी जीवन की शुरूआती और क्‍लासिक फिल्‍म सारांश के एक दृश्‍य का जिक्र किया, जिसमें एक हताश बुजुर्ग अन्‍ना की तरह ए‍क मंत्री के सामने भ्रष्‍टाचार की बात कर रहा होता है. अनुपम ने इस मुहिम में अमिताभ बच्‍चन और शाहरुख खान को शामिल होने का निवेदन किया. अमिताभ ने तो समर्थन में अपना बयान जारी कर दिया लेकिन आपको पता है उस वक्‍त शाहरुख खान क्‍या कर रहा था. तब शाहरुख चेन्नई में आईपीएल 4 के ओपनिंग इवेंट की डांस रिहर्सल कर रहा था. जाहिर है जब भी शाहरुख को कहीं से मोटी रकम का ऑफर मिलता है, वह दुनियादारी छोडकर पैसा कमाने कि लिए निकल जाते हैं. फिर चाहे किसी की शादी में भांड बनाना हो या फिर किसी की मातमपुर्सी के माहौल को हाईक्‍लास बनाना हो. लेकिन जनहित से जुडी किसी भी मुहिम में यह स्‍टार हमेशा गायब रहता है. ऐसा नहीं है कि शाहरुख के आ जाने से अन्‍ना को कोई विशेष सहयोग मिल जाता या फिर अनुपम उन्‍हें कोई समाज सुधारक समझते हैं. अन्‍ना ने अपना अनशन सफल कर ही दिया, लेकिन अनुपम ने उन्‍हें तो इसलिए आने के लिए कहा गया था कि जब इस जन आंदोनन में आमिर समेत कई सितारे अपना मुनाफा छोडकर कुछ वक्‍त निकालकर जनता के बीच आ सकते हैं तो फिर जनता के पैसे से रोटी खाने वाला यह सितारा क्‍यों नहीं. यह बात सिर्फ शाहरुख के लिए ही नहीं है बल्कि ही उस स्‍टार के लिए है जो इस मुहिम में शामिल नहीं हुआ है. जैसे अक्षय अपनी फिल्‍म के प्रोमोशन में बिजी थे. शाहरुख अगर आईपीएल का तमाशा और अक्षय प्रोमोशन छोडकर इस मुहिम में शामिल होते तो उनका कद और बढता, लेकिन शाहरुख समेत कई अभिनेताओं को उस जनता की कोई फिक्र नहीं है जिसके पैसे और प्‍यार से वह आज स्‍टारडम का रुतबे के साथ ऐशो आराम की जिंदगी बसर कर रहे हैं. इस बात से इतना तो अंदाजा लग ही जाता है कि जो प्‍यार और जनता से इन सितारों को मिलता है, उसकी कीमत इन सितारों के लिए क्‍या है.

Wednesday, April 6, 2011

सरकारी लोकपाल विधेयकः भ्रष्‍टाचार के खिलाफ कमजोर सरकारी हथियार

http://www.chauthiduniya.com/2011/01/lockpal-vidheyak-bharastachar-ke-khilaf-kamjor-sarkari-hathiyar.html

एक मंत्री की वजह से देश की जनता को एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपये का चूना लग जाता है और वही जनता अगर उस भ्रष्ट मंत्री के ख़िला़फ आवाज़ उठाए तो बहुत संभव है कि उसे देशद्रोही बताकर सलाखों के पीछे कैद कर दिया जाए. यह भी संभव है कि उक्त भ्रष्ट मंत्री को अपने किए की कोई सज़ा भी न मिले. आज़ादी के बाद अब तक ऐसा कम ही सुनने को मिला कि किसी मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में सज़ा मिली हो.

Tuesday, March 8, 2011

MUST READ/SEE NAME


MUST READ/SEE NAME. IF U WANT TO KNOW ABOUT SWISS ACCOUNT

Friday, February 18, 2011

मोदी-ठाकुर आमने-सामने

भाजपा के बागियों या मुख्यमंत्री की मुखालफत करनेवालों पर कार्रवाई के मुद्दे पर उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ सीपी ठाकुर आमने-सामने हो गये हैं. मोदी बागियों पर कार्रवाई करने की बात कर रहे हैं, तो डॉ ठाकुर उन्हें मुक्त करने की बात कर रहे हैं. गुरुवार सुबह सहयोग कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत में मोदी ने साफ-साफ़ कहा कि भाजपा या सीएम विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों पर कार्रवाई तय है. बशर्ते कि उन पर मामला साबित हो जाये. पत्रकारों के लगातार सवाल किये जाने पर उन्होंने कहा कि इस मामले में अंतिम फै सला अनुशासन समिति ही लेगी. बताते चलें कि दो दिन पहले डॉ ठाकुर ने कहा था कि चुनाव में मिली रिकॉर्ड जीत को देखते हुए बागियों पर कार्रवाई नहीं होगी: (साभार: प्रभात खबर)

अब ज़रा इस लिंक को भी पढ़े...नवम्बर में बिहार चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद चाय दूकान पर प्रकाशित हुआ था:

http://chaydukan.blogspot.com/2010/11/blog-post_26.html

Tuesday, February 8, 2011

सरकारी लोकपाल बिल: एक धोखा


एक मंत्री की वजह से देश की जनता को एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपये का चूना लग जाता है और वही जनता अगर उस भ्रष्ट मंत्री के ख़िला़फ आवाज़ उठाए तो बहुत संभव है कि उसे देशद्रोही बताकर सलाखों के पीछे कैद कर दिया जाए. यह भी संभव है कि उक्त भ्रष्ट मंत्री को अपने किए की कोई सज़ा भी न मिले. आज़ादी के बाद अब तक ऐसा कम ही सुनने को मिला कि किसी मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में सज़ा मिली हो. अब सवाल उठता है कि आख़िर हमारी व्यवस्था में ऐसी क्या खामियां हैं, जो एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद भी आरोपियों की गर्दन तक क़ानून के लंबे हाथ नहीं पहुंच पाते. दरअसल, सीबीआई और केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी संस्थाएं बनाई तो इसलिए गई थीं कि वे निष्पक्ष रूप से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर सकें, लेकिन समस्या यह है कि इन दोनों संस्थाओं को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर सरकारी नियंत्रण में काम करना पड़ता है. फिर सीवीसी के पास सिवाय अनुशंसा देने के और कोई अधिकार है भी नहीं. सीबीआई की हालत भी किसी से छुपी नहीं है. केंद्र की सरकारें पिछले 40 सालों से लोकपाल विधेयक पारित कराने में असफल रही हैं. राज्यों में लोकायुक्त तो हैं, लेकिन उनकी स्थिति भी सफेद हाथी बनकर रह गई है. दूसरी ओर लोकपाल विधेयक अब तक लोकसभा में आठ बार पेश करने के बाद भी पारित नहीं कराया जा सका है.

बहरहाल, यूपीए-2 ने अभी लोकपाल विधेयक का प्रारूप तैयार किया है, जिसे जल्द ही पारित कराने की बात कही जा रही है. इस विधेयक की एक प्रति चौथी दुनिया के पास भी उपलब्ध है. लेकिन समाज का एक बड़ा एवं प्रबुद्ध वर्ग इस विधेयक से ख़ुश नहीं है और भ्रष्टाचार के ख़िला़फ इस सरकारी कवायद को महज खानापूर्ति मान रहा है. ऐसा मानने के पीछे लोगों के पास कुछ ठोस वजहें भी हैं. उनका कहना है कि सरकार द्वारा तैयार किए गए विधेयक की जद में केवल राजनेता ही आ रहे हैं, अधिकारियों और न्यायाधीशों के ख़िला़फ जांच करने का अधिकार लोकपाल को नहीं दिया गया है. ज़ाहिर है, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े पोषक यानी अफसरों के लिए यह किसी राहत से कम नहीं है. इसके अलावा इस विधेयक के अनुसार लोकपाल किसी के ख़िला़फ मुक़दमा चलाने की सलाह तो सरकार को दे सकता है, लेकिन ख़ुद किसी भ्रष्ट नेता के ख़िला़फ मुक़दमा नहीं चला सकता. लोकपाल को महज एक सलाह देने वाली संस्था बनाने की कोशिश की जा रही है. सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल इस विधेयक की खामियों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस तरह का लोकपाल अगर 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में प्रधानमंत्री से कहता कि ए राजा के ख़िला़फ मुक़दमा चलाना चाहिए तो क्या प्रधानमंत्री ऐसा करते? अभी 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में जो कुछ भी हुआ, उसे देखते हुए तो ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता. केजरीवाल लोकपाल विधेयक को महज एक शोपीस मान रहे हैं.

यही वजह है कि सिविल सोसायटी की तऱफ से भी एक नया लोकपाल विधेयक तैयार किया गया है. स्वामी रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, किरण बेदी, अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, सुनीता गोधरा, देवेंद्र शर्मा, कमल जायसवाल, प्रदीप गुप्ता, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े एवं पूर्व सीवीसी प्रत्यूष सिन्हा जैसे लोगों के सामूहिक प्रयासों से यह नया विधेयक तैयार किया गया है. इस नए मसौदे को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेजा गया है. सिविल सोसायटी द्वारा तैयार यह विधेयक कई मायनों में सरकारी विधेयक से ज़्यादा सक्षम है. इसमें लोकपाल को पूर्ण रूप से सरकारी नियंत्रण से बाहर रखने की बात है. किसी मामले में अगर लोकपाल चाहे तो ख़ुद मुक़दमा चला सकता है. साथ ही सरकारी धन की लूट या नुक़सान को वसूलने का अधिकार भी लोकपाल को दिया गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ बुलंद करने वाले सच के सिपाहियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी लोकपाल को देने की बात कही गई है. दरअसल, भ्रष्टाचार का कैंसर इतना फैल चुका है कि उसे मौजूदा सरकारी लोकपाल विधेयक के सहारे ख़त्म नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा सीबीआई के पास अधिकार तो हैं, लेकिन वह स्वतंत्र नहीं है और सीवीसी कहने को तो स्वतंत्र है, पर उसके पास अधिकार नहीं हैं. कुछ यही हाल सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल विधेयक का भी हो सकता है. यही कारण है कि सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि चाहते हैं कि एक स्वतंत्र लोकपाल का गठन हो, साथ ही सीबीआई, एंटी करप्शन ब्यूरो और सीवीसी जैसी संस्थाओं का विलय भी इसके साथ कर दिया जाए. इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि लोकपाल संस्था में विलय के बाद सीबीआई, एंटी करप्शन ब्यूरो और सीवीसी जैसी संस्थाएं ज़्यादा कारगर, निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम कर पाएंगी.

बहरहाल, सरकार जनता के इन सुझावों को माने या न माने, लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आम आदमी चुपचाप नहीं बैठने वाला है. बाकायदा इंडिया अगेंस्ट करप्शन नाम से एक संस्था बनाकर इसकी शुरुआत हो चुकी है और 30 जनवरी को बापू के शहीद दिवस पर दिल्ली के रामलीला मैदान में हज़ारों लोग जमा हो रहे हैं. भ्रष्टाचार के ख़िला़फअपनी आवाज़ बुलंद करने, जानबूझ कर आंख-कान बंद किए बैठी सरकार को नींद से जगाने के लिए. व़क्त रहते केंद्र सरकार को जनता का इशारा समझ लेना चाहिए.

  • सरकारी लोकपाल विधेयक में स़िर्फ राजनेता शामिल
  • भ्रष्ट अफसरों-जजों के ख़िला़फ नहीं हो पाएगी कार्रवाई
  • सिविल सोसायटी नाख़ुश, दिए कुछ सुझाव
  • कहा, लोकपाल के दायरे में अफसर-जज भी हों शामिल
  • सीबीआई, एसीबी, सीवीसी का हो लोकपाल में विलय

Thursday, February 3, 2011

Flop Combination for a Hit!


Do you remember in which film Big B and Saif Ali worked together earlier? It was Vidhu Vinod Chopra’s dream film “Eklavya The Royal Guard”. It was a fantastic movie in all respects. The film has great star casts, very strong screenplay, good music, songs and above all one of the greatest film makers of B’town was made it. But, nothing worked at box office. Neither the director’s name nor the Big B’s charisma pulled the viewers to the cinema. Nobody knew what went wrong and what the lacunae were. Anyway, the filmy pandits referred the main leads of the film as bad combination.

Would Jha get reward?

Once again a great film maker has casting Amitabh Bachchan and Saif Ali Khan in his dream project. And, Shooting of his film is in full swing. Yeah, you are quite right we’re talking about Prakash Jha’s ‘Aarakshan’, he’s shooting this film in Bhopal. Like his earlier films this film is also addressing social issue and a huge star-cast. But, this time Prakash has dreaming bigger than ever, probably that’s why he has chosen Mr. Bachchan for the Lead. Besides, Big B there is Saif Ali Khan, Deepika Padukone and off course his new ‘Muse’ Manoj Vajpai would also share screen together. Here, question arises whether Big B and Saif Ali’s combination would work for Jha? And, would people come to the ticket counters like earlier for his another issue based cinema?

Dream Project means failure?

Before going further let’s do some talk about Vidhu’s dream film ‘Eklavya – The Royal Guard’. Though this film had been represented India in Oscar (in foreign film category) for the year 2007 but, in India this had been remained utter failure to allure crowd. No doubt all the actors have performed well. Being the director of the film Vidhu was so impressed with Big B’s performance that he had gifted a Luxury SUV to the veteran. Here, we would like to tell you one more interesting fact that Vidhu had written the film for casting Mr Bachchan only and waited for 3 years for his dates for the film, which he could get in 2006. Anyway, he made the film released but could not make it a success like Parinda and 1942 A Love Story.

Reservation for ‘Aarakshan’!

Every film maker wants to cast Mr. Bachchan in his films and in the same fashion every director dreams to direct him. After all how long could Prakash Jha have resisted him that’s too just to be different from others? So, after a series of success he decided to materialize his dream of directing Big B. For his dream project he has chosen the same stars combination as Vidhu Vinod did around 5 years ago. Here, question arises whether Big B and Saif Ali’s combination would work for Jha? Would Jha’s charisma be able to break the jinx? These are few questions whose answers we would get only after the release of the ‘Arakshan’. Otherwise Jha has tried to “reserve” his success in advance!

RESTLESS For ‘RAJNEETI’

If a renowned figure of Art and Culture fights MP election and does not succeeds in saving his security deposited to the Election Commission then what would you suggest him to do. We know what would be your answer but ‘He’ is too desperate for ‘RAAJNEETI’ to listen anyone. You won’t believe but you would be amazed to know what kind of efforts he’s putting in order to achieve his goal. Though he makes films (well known for his own style of films) but, he started a regional news channel in the State he has chosen for his political career.

News Channel Is Next Weapon !

Through his cinema he used to attack on whomever he wanted to and now to make his attack more penetrating he launched his regional news channel. He tried hard to affect recent assembly election but remain utter failure. If somebody asks him where his plans go wrong? He doesn’t have a fair answer for sure but, ironically he thinks that he knows the conditions of the State much better than his other counterparts. He ought to ponder when he never ever serve the state how could he dream even to win parliamentary election. He ought to ponder when he never ever serve the state how could he dream even to win parliamentary election.

Born to Rule?

Yeah it is very true that he never served the interest of the populace of State he claims his and wanted to rule over them. The best example can be quote here that in the name of real cinema he portrayed the region negatively in his recently made films. He never did a single film to rectify the image of State. The most ironic part of his film making career that he hardly gives chance to newcomers artists of Home State.

Muse for Political Mileage !

This veteran director fought election from the western region of the State and when he lost election he made a strategy to cast a renowned actor of this particular region who made a distinct place in Hindi Cinema of his own. Why did not he cast this actor in his earlier films? He tried to build image among populace of the particular region but here he did mistake again as people started asking among themselves that whether he’s doing this sort of kind act to win parliamentary election? And, his media planners are hunting answer of this ‘Yaksh Prashna’ (difficult question).

Bizarre Connections

What had been mentioned earlier is just a glimpse of what efforts the film maker is putting. Besides handling things so tactfully this film maker is indulge in making repo with different leaders of various political parties and helping some veterans of politics to achieve their goals. Though he’s a self proclaimed secular and alleges that he’s above caste, creed and racism but his actions reflect contrary what he claims. For instance the State he has chosen as his political playground, he hardly shoots his films in its region while State Government is ready to provide all sorts of amenities required to any film maker. And, if film maker like him would ask for facilities what not would he get. Here, we are force to tell you a fact about Government initiatives that 200 Acre of land has been already acquired for film city.

Caste Ke Liye Kuchh Bhi Karega !

Anyway, the film maker chooses to shoot his films in another State where environment and culture is almost same. In this State ruling party’s State Chief is a Member of Parliament and belongs to his community. He is accountable for the performance of party in the State probably that’s why this director is shooting back to back second film in the State with leading actors of the industry. Here, don’t forget that film shooting not only attracts people but generates opportunities for the local people. It is very much obvious that the film making process must be en-cashed in coming assembly election by that political party in order to retain power and State Party’s Chief would earn all sorts of credits. Shooting for the new film is in full swing.

One Thousand Tricks for The Goal !

Unfortunately, the populace of State is not being benefitted but they would be asked to make him win. Like his last film this film is also based on social issue and he once again cast the same actor of his expected constituency to allure the voters. Hopefully this time also he would organize success party on the success of his film. May God give the reward he deserves but, the people must be aware in order to choose their representative (especially in his case) and must not send him to the parliament because he could not do justice to it.

Friday, January 14, 2011

India Marches Against Corruption


Thousands of people will take to streets to demand effective anti-corruption law

J M Lyngdoh, Swami Agnivesh, Kiran Bedi, Anna Hazare, Prashant Bhushan, Most Reverend Vincent M Concessao Archbishop of Delhi and others will march from Ramlila Grounds to Jantar Mantar on 30th January, the day Mahatma Gandhi was assassinated, at 1 pm to demand enactment of a law to set up an effective anti-corruption body called Lokpal at the Centre and Lokayukta in each state (the existing Lokayukta Acts are weak and ineffective).

Kiran Bedi, Justice Santosh Hegde, Prashant Bhushan, J M Lyngdoh and others have drafted this Bill. Please visit our site for full text of this Bill. A nation wide movement called “India Against Corruption” has been started by Sri Sri Ravi Shankar, Swami Ramdev, Swami Agnivesh, Most Reverend Vincent M Concessao Archbishop of Delhi, Kiran Bedi, Arvind Kejriwal, Anna Hazare, Devinder Sharma, Sunita Godara, Mallika Sarabhai and many others to persuade government to enact this Bill.

Mrs Sonia Gandhi recently announced that Lokpal would be set up. However, the Lokpal suggested by the government is only a showpiece. It will have jurisdiction over politicians but not bureaucrats, as if politicians and bureaucrats indulge in corruption separately. And the most interesting part is that like other anti-corruption bodies in our country, the government is making Lokpal also an advisory body. So, Lokpal will recommend to the government to prosecute its ministers. Will any prime minister have the political courage to do that?

Please participate in large numbers in this march to persuade the government to enact the Bill drafted by the people. Please turn overleaf to read how this Bill will help in effectively checking corruption.

Can India turn around?

There was much worse corruption in Hong Kong in 1970s than we have in India today. Collusion between police and mafia increased and crime rate went up. Lakhs of people came on the streets. As a result, the government had to set up an Independent Commission Against Corruption (ICAC), which was given complete powers. In the first instance, ICAC sacked 119 out of 180 police officers. This sent a strong message to the bureaucracy that corruption would not be tolerated. Today, Hong Kong has one of the most honest governance machinery.

India can also turn around if we also had similar anti-corruption body. Hong Kong government enacted ICAC Bill because lakhs of people came on streets.

Join the march on 30th January (Assembly at 1 pm at Ramlila Ground)

If you plan to join or volunteer with us, do call us 9717460029

Thursday, January 13, 2011

सीवीसी पी जे थॉमस को कैरेक्टर सर्टिफिकेट!


थॉमस साहब की नियुक्ति पर सवाल उठाने वालों....उनसे कैरेक्टर सर्टिफिकेट मांगने वालों...उनकी ईमानदारी और सादगी पर उंगली उठाने वालों...अरे उंगुली उठाने से पहले देख तो लिया होता कि किसकी तरफ उंगली उठा रहे हो...कमबख्त...ऐसे शख्स की ईमानदारी पर सवाल उठा रहे हो...जिसकी कर्तव्यनिष्ठता के लिए...एक के बाद एक इनाम मिलते रहे हैं...

पामोलिन घोटाले में पहली बार जब...पी जे थॉमस पर इल्जाम लगा तो...एक तरफ उनपर चलने वाले मुकदमे पर याचिका के जरिए रोक लगा दिया गया...और बतौर इनाम दूरसंचार मंत्रालय की कमान सौंप दी गई...जी हां...वही अपने अन्ना ए राजा वाला मंत्रालय...आपको तो पता ही होगा...कि 2-जी स्पेक्ट्रम में हुआ 1,76,000 करोड़ का घोटाला हाल-फिलहाल में हुआ घोटाला नहीं है...भाई साहब अन्ना राजा की करतूत यूपीए के पिछले कार्यकाल के दौरान की है...इसके साथ-साथ एक और हकीकत आपको बताते चलें कि इस दौरान पी जे थॉमस ही...दूरसंचार मंत्रालय के सचिव के पद पर काबिज थें...यकीन मानिए....कर्तव्यपरायण थॉमस को उनकी वफादारी का इनाम मिला है...वरना इतने विवादों के बाद सीवीसी जैसे अहम पद पर थॉमस की तैनाती का जोखिम भला कोई क्यों और कैसे ले सकता था...उस पर भी तब...जब कांग्रेस के युवराज महंगाई डायन के सुरसा की मुंह की तरह बढ़ते आकार के लिए गठबंधन को जिम्मेदार बता रहे हों...कहने का मतलब ये है कि इल्जाम लगाने से पहले...आप अपने गिरेबां में झांके न झांके...जिसपर इल्जाम लगा रहे हैं...उसकी हैसियत ज़रूर नाप लें...नहीं तो कहीं लेने के देने न पड़ जाए...बहरहाल....पामोलिन मामले पर अदालती कार्यवाही एक बार फिर शुरू होने के आसार हैं...लेकिन इससे इनाम देने दिलाने का सिलसिला थम जाएगा...इस मुगालते में मत आइएगा...

चाय दुकान से एक आम भारतीय

Wednesday, January 12, 2011

बदल दीजिए सरकार क्योंकि राहुल के मुताबिक महंगाई के लिए गठबंधन है जिम्मेदार



इसे महज इत्तेफाक़ ही कहिए...कि जब-जब राहुल गांधी यूनिवर्सिटीज के दौरे पर होते हैं...केन्द्र की यूपीए सरकार के सामने एक नई समस्या सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी रहती है...और इस बार तो कहर ढा रही है...महंगाई डायन...चलिए राहुल बाबा ऐसे परिवार और क्षेत्र (करियर के लिहाज से) से ताल्लुक रखते हैं कि उन्हें किसी डायन का कोई ख़तरा नहीं....लेकिन इस बार कॉलेज दौरों के दौरान उनसे पूछे जाने वाले सवालों में सबसे ज्यादा....इसी डायन से जुड़े रहे...राहुल बिल्कुल नहीं डरे...डरे भी काहे...कोई डायन दिख थोड़े रही है...अरे भाई डायन से जुड़ा सवाल ही है...सो हांक दिए...एक और बयान...राहुल बाबा ने खुले लफ़्जो में गठबंधन को महंगाई का जिम्मेदार बताते हुए...कांग्रेस की छवि को उज्ज्वल बनाए रखने की पूरी कोशिश की....ठीक वैसे ही जैसे कभी कवि हृदय अटल बिहारी वाजपेयी साहब हर नाकामयाबी का ठीकरा गठबंधन पर फोड़ा करते थे...

क्या राहुल राजनीति की ये अहम सीख कांग्रेस की धुर विरोधी पार्टी के एकमात्र प्रधानमंत्री से सीखी है...लेकिन बयान देने से पहले राहुल और उनकी टीम को थोड़ा बहुत तो तथ्यों को परखना ही चाहिए था...मसलन...देश के वित्त मंत्रालय की कमान किसके हाथ में है...प्रणब मुखर्जी साहब से पहले...पी. चिदंबरम भी कांग्रेस के ही थे...और मनमोहन सरकार वाली ये गठबंधन कोई पहली बार देश नहीं संभाल रही है...गत 22 मई को यूपीए की इस सरकार को देश ने इसके परफॉर्मेंस के आधार पर ही दोबारा कमान सौंपी है...पूरे मामले का सबसे अहम पहलू तो ये है कि देश की आज़ादी के बाद से अब तक आर्थिक नीतियों पर सबसे ज्यादा पकड़ किसी पार्टी की रही...है तो वो कांग्रेस ही है....और इस वक्त देश के प्रधानमंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे मनमोहन सिंह...एक प्रशासक बाद में हैं...एक अर्थशास्त्री पहले हैं...इतने के बावजूद महंगाई के लिए राहुल बाबा गठबंधन को जिम्मेदार बता रहे हैं...तो यकीनन वो ये बताना चाह रहे हैं कि...देश की जनता ने 2010 के आम चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन को जनादेश देकर गलती की है...

पिछले कुछ महीनों से महंगाई ने जिस तरह पूरे देश का ज़ायका बिगाड़ रखा है...उससे निपटने का राहुल का ये तरीका...कितना सही है...इसका फैसला तो जनता करेगी ही...लेकिन राहुल बाबा को बढ़ती महंगाई के पीछे गठबंधन की भूमिका के बारे में जनता को क्या बताएंगे...कि गठबंधन का कितना और क्या दोष है...अगर वाकई गठबंधन में खामियां हैं...तो यूपीए की पहली सरकार के दौरान ऐसा कुछ क्यों नहीं हुआ...राहुल के बयान से लगता है कि उन्हें एब्सोल्युट पॉवर की ख्वाहिश कहीं ज्यादा परेशान कर रही है...तभी वो तकनीकी पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर...देशवासियों को भरमाने में जुटे हैं... लेकिन भईया राहुल...बिहार जैसे बीमारू राज्य कहे जानेवाले सूबे की जनता जब...होशियारी भरा फैसला सुनाते हुए...विकास के नाम पर नीतीश कुमार की सरकार को जनादेश दे सकती है...तो यकीन मानिए...समूचे भारत की जनता का बौद्धिक स्तर बिहार की जनता से कहीं बेहतर है...और वो राहुल बाबा के बयानों पर आंख बंद कर भरोसा करे...इसमें शक है....आगे तो हम यही कहेंगे कि....राहुल बाबा तो राहुल बाबा हैं...उनको कौन समझाए...वो जिस पर चाहे इल्जाम लगाएं...

चाय दुकान से एक आम भारतीय

ABHISHEK PATNI