Thursday, January 29, 2015
सही मायने में मिस्टर भारत लगे अक्षय
अमूमन देशभक्ति
फिल्म का ख़्याल ज़ेहन में आते ही श्री मनोज कुमार और उनकी ‘मिस्टर भारत’ की छवि उभरती है। लेकिन
बेबी’ देखने के बाद देशभक्ति फिल्मों को लेकर तमाम मिथकीय धारणाएं दिलो-दिमाग से
जाती रहीं। अब लगता है कि मनोज
कुमार जी की फिल्में देशभक्ति से कहीं ज़्यादा देश की संस्कृति से सराबोर हुआ करती
थीं। ‘ ‘बेबी’ एक यथार्थवादी फिल्म होने के बावजूद अपने पहले फ्रेम से आख़िरी फ्रेम तक
दर्शकों को कुर्सी से बांधे रखती है। बिना किसी देशभक्ति से लिपटे गीत-संगीत और
गाने के ये फिल्म एक आम भारतीय को देश के लिए सोचने पर मजबूर करती है, देश के
प्रति उनके कर्तव्य की याद दिलाती है। एक वाक्य में कहें तो देशभक्ति का जज़्बा
जगाती है।
विषम परिस्थितियों
में, साज़िशों के बीच अपनों में छिपे दुश्मनों की पहचान कर अपने देश और देशवासियों
की रक्षा करता नायक कहीं भी हिन्दी फिल्म का औसत नायक नहीं लगता। बतौर नायक अक्षय
कुमार ने अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है। वहीं श्री नीरज पांडे अपनी तीसरी
फिल्म के ज़रिए समकक्षों को ये दिखा पाने में कामयाब हुए हैं कि निर्देशन क्या
होती है? इस फिल्म के लिए यदि श्री अक्षय कुमार को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का और श्री
नीरज पांडे को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिले तो इसमें कोई
आश्चर्य की बात नहीं होगी।
महामहिम राष्ट्रपति
और माननीय प्रधानमंत्री से अनुरोध है कि श्री नीरज पांडे की फिल्म ‘बेबी’ ज़रूर देखें। देशभर में इस
फिल्म को टैक्स-फ्री करने के साथ ही इस बात की गारंटी तय करें कि देश का हर नागरिक
इस फिल्म को कम-से-कम एक बार ज़रूर देखे। (दुःख के साथ स्वीकार करता हूं)
भौतिकवादी परिवेश में देश के लिए संवेदनशीलता कम हुई है, हो रही है, ऐसे में फिल्म
बेबी दिलो-दिमाग पर बेहद गहरा असर छोड़ती है। बेबी एक ऐसी फिल्म है जो शास्त्रीय
पारिवारिक फिल्म की कसौटी पर सटीक बैठती है। यह एक मनोरंजक फिल्म है, पूरे परिवार
के साथ बैठकर देखने लायक फिल्म है, देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत बेहद गंभीर
फिल्म है।
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