Saturday, May 5, 2012

राष्ट्रपति चुनाव : एक नाम ये भी



                  प्रेम सिँह  (लेखक जाने-माने राजनीति समीक्षक है, सोशलिस्ट पार्टी इँडिया के महासचिव है और डीयू मेँ प्राध्यापक है)  
सत्तारूढ़ यूपीए, मुख्य विपक्ष एनडीए और इन दोनों से अलग पार्टियों मंें पिछले करीब एक महीने से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए कई नामों की चर्चा चल रही है। लेकिन आम सहमति की बात तो दूर, पूरे मामले में अभी तक स्पष्टता भी नहीं बन पाई है। सबके अपने-अपने राष्ट्रपति हैं; भारतीय गणराज्य के संवैधानिक प्रमुख के पद पर सब अपना आदमी देखना चाहते हैं, लेकिन खुल कर कोई नहीं बता रहा है।
यूपी में विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व बहुमत से जीती समाजवादी पार्टी की राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका बन गई है। सपा की तरफ से संकेत आया है कि वह मुस्लिम उम्मीदवार का समर्थन करेगी। वह मुसलमान कौन होगा इसका संकेत अभी सपा ने नहीं दिया है। अलबत्ता पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का इस बार समर्थन न करने की बात उसने कही है। जिन नामों की चर्चा है उनमें बचे मौजूदा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी और राज्यसभा के पूर्व उपसभापति रहमान खान। जाहिर है, उनका आशान्वित होना स्वाभाविक है।
मुसलमानों के लिए और कुछ होता हो या नहीं, उन्हें लेकर राजनीति खूब होती है। राजनीति के चलते कुछ मुसलमानों को पद-प्रतिष्ठा भी अच्छी मिलती है। लेकिन उससे आम मुसलमान के हालात नहीं बदलते। बल्कि कांग्रेस और गैर-भाजपा दलों द्वारा उनका तुष्टिकरण करने की आम धारणा प्रचलित रही है। मुसलमानों के तुष्टिकरण की धारणा कितनी गलत है, इसका पहली बार पता जस्टिस राजिंदर सच्चर कमेटी की रपट से चलता है जो उन्होंने कुछ साल पहले दी थी। रपट पर काफी हो-हल्ला हुआ। भाजपा ने विरोध किया तो अन्य दलों ने रपट को लागू करने के बढ़-चढ़ कर दावे किए। लेकिन मुसलमान होने के नाते बड़े पदों पर बैठे किसी मुस्लिम नेता या बुद्धिजीवी ने रपट को लागू करने के लिए जोरदार संघर्ष नहीं छेड़ा।
जस्टिस सच्चर यह रपट दे पाए क्योंकि भारत के संविधान और उसमें निहित मूल्यों में उनकी दिखावे की नहीं, सच्ची निष्ठा है। उन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही डॉ. राममनोहर लोहिया और जेपी के साथ समाजवादी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई है। वे आज भी नागरिक अधिकारों, विशेषकर वंचित तबकों - स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, पिछड़ों - के हकों के लिए दिन-रात चिंतित और सक्रिय रहते हैं।
राजनैतिक पार्टियों को अगर अगले राष्ट्रपति पद के लिए वाकई वंचित तबकों की भलाई चाहने वाले किसी शख्स की तलाश है तो जस्टिस सच्चर से बेहतर नाम शायद ही कोई हो। उनके नाम पर सभी दलों में आम सहमति बनने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। अगर वे भारत के अगले राष्ट्रपति बनते हैं तो इससे उन संवैधानिक और सांस्थानिक मूल्यों को मजबूती मिलेगी जिन पर कई तरह की ताकतों के हमले हो रहे हैं।  


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