क्या
है ‘कासा’?
‘कासा’
हिन्दी का कोई शब्द नहीं और न ही हिन्दी भाषा में इसका कोई अर्थ होता है बल्कि ये
तो अंग्रेजी वर्णमाला के चार अक्षर क्रमश सी, ए, एस, ए से मिलकर बना एक शब्द है
जिसे समेकित तौर पर ‘कासा’ के
नाम से बैंकिंग जगत में जाना जाता है। करंट अकाउंट, सेविंग अकाउंट के पहले अक्षर
को लेकर गढ़े गए इस शब्द की बैंकिंग दुनिया में ख़ासी अहमियत है। करंट अकाउंट यानी
चालू खाता और सेविंग अकाउंट यानी बचत खाता, ये दो ऐसे अकाउंट होते हैं जिनके ज़रिए
बैंकों को नियमित और ख़ासी आमदनी होती है। वज़ह ये कि करंट अकाउंट यानी चालू खाते
में जहां खाताधारी को रक़म रखने के एवज में कोई ब्याज नहीं दिया जाता है। वहीं,
सेविंग अकाउंट यानी बचत खाता में दिया जाने वाला ब्याज बहुत मामूली होता है। सबसे
अहम बात तो ये है कि बैंकों के लिए पूंजी का प्रवाह नियमित बना रहता है अर्थात एक
निश्चित अवधि में निश्चित रक़म बैंक को को पूंजी के तौर पर मिलती रहती है।
ब्याज न दिए
जाने की सूरत में बैंक जमा रक़म का इस्तेमाल अपने व्यापार के लिए करके ज़्यादा
मुनाफ़ा कमाते हैं। वहीं कम ब्याज या नहीं ब्याज मिलने के बदले में खाताधारियों को
बैंक की ओर से कई तरह की दूसरी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। मसलन न्यूनतम रक़म
को शून्य तक ले जाने की छूट से लेकर तमाम दूसरी सुविधाएं ताकि बैंक में ग्राहकों
की रूचि व भरोसा बना रहे। यही वज़ह है कि बैंक कासा पर ख़ासा ज़ोर देते हैं। कासा
अर्थात् चालू खाता और बचत खाता की महत्ता बैंक में क्या है और इसके कितने फायदे ये
जानने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि चालू और बचत खाता किस तरह के अकाउंट होते हैं? इसे किस तरह के ग्राहक खोल सकते है? और इन दोनों तरह के अकाउंट में बैंकों की ओर
से ग्राहकों को किस-किस तरह की सुविधाएं और फायदे दिए जाते हैं?
‘का’
अर्थात् करंट अकाउंट अर्थात्
चालू खाता
के फायदे
चालू खाता मुख्यत: कारोबारियों,
फर्मों,
कंपनियों,
सार्वजनिक उद्यमों आदि के लिए
होता है जिनको हर दिन कई बार बैंकिंग लेन-देन की जरूरत पड़ती है। चालू खाते में
बिना कोई नोटिस दिए कभी भी रकम की जमा या निकासी की जा सकती है। यह उधार चुकाने के
लिए चेक से भुगतान करने के लिए भी अच्छा होता है। चालू खाता धारकों को सबसे
महत्वपूर्ण फायदा होता है ओवरड्राफ्ट का। कारोबारियों को उनके टर्नओवर,
मुनाफे आदि के हिसाब से ओवर
ड्राफ्ट यानि खाते में जमा रकम से ज्यादा निकासी की सुविधा दी जाती है,
लेकिन इसके लिए कारोबारी से
कुछ जमानत जरूर ली जाती है। इस खाते में ग्राहक जितनी चाहे राशि जमा कर सकते हैं
या निकाल सकते हैं। कोई भी प्रमुख व्यक्ति सिंगल या ज्वाइंट रूप में,
सोल प्रोपराइटरीशिप फर्म,
पार्टनरशिप फर्म,
हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली,
लिमिटेड कंपनी,
क्लब,
सोसाइटी,
ट्रस्ट,
एक्जीक्यूटर्स और एडमिनिस्ट्रेटर,
अन्य सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी
संस्थाएं, स्थानीय
प्राधिकरण आदि चालू खाता खोल सकते हैं। लेकिन इस खाते पर कोई ब्याज नहीं मिलता। इसमें
आप चाहे जितनी बार लेन-देन कर सकते हैं, किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है।
चालू खाता वे कारोबारी खोलते हैं जिन्हें नियमित रूप से
बैंकों में जमा और निकासी करनी होती है। चालू खाता खोलने का उद्देश्य यह होता है
कि कारोबारी अपने लेन-देन आसानी से कर सकें। आमतौर पर बैंक चालू खाते पर कोई ब्याज
नहीं देते। लेकिन अब कुछ बैंक चालू खाते पर कुछ ब्याज भी देने लगे हैं। चालू खाता
भी लगातार चलने वाला खाता है और इसके लिए कोई निश्चित अवधि नहीं होती। चालू खाता
रखने वाला कारोबारी चाहे तो अपने महाजनों को चेक की मदद से सीधा भुगतान कर सकता
है।
इंटरबैंक कनेक्शन के द्वारा ऐसे खाताधारकों को उधार देने
वाले महाजन यह भी पता कर सकते हैं कि कर्ज चुकाने के मामले में उसका रिकॉर्ड यानि इतिहास
कैसा रहा है, यानि
उस पर कितना भरोसा किया जा सकता है। चालू खाते का बढऩा,
देश में औद्योगिक प्रगति की
निशानी मानी जाती है। यह खाता नहीं होता तो कारोबारियों को अपने कामकाज में काफी
दिक्कत आती।
चालू खाते सुविधा और कारोबारियों के स्तर के लिहाज से कई तरह
के हैं, जैसे
प्रीमियम करेंट अकाउंट, रेगुलर करेंट अकाउंट, फ्लेक्सी करेंट अकाउंट आदि। इनमें लोकल चेक कलेक्शन और इन पर
भुगतान की फ्री सुविधा, 24 घंटे फोन बैंकिंग, डोर स्टेप यानि आपके दरवाजे तक बैंकिंग,
मुफ्त कैश डिपॉजिट,
बड़ी रकम पर डीडी/पीओ जारी
करने की फ्री सुविधा, एनईएफटी कलेक्शन और पेमेंट की फ्री सुविधा आदि दी जाती है।
‘सा’ अर्थात् सेविंग अकाउंट अर्थात् बचत खाता के फायदे
बचत खाता (सेविंग अकाउंट) बैंकों द्वारा चलाया जाने वाला ऐसा
खाता होता है, जिसमें
रखी गई रकम पर वे ब्याज देते हैं। आमतौर पर इस खाते से कारोबारी लेन-देन नहीं किया
जाता। कोई भी व्यक्ति सिंगल या ज्वाइंट तरीके से यह खाता खोल सकता है। आमतौर पर इस
अकाउंट के लिए कोई मेंटेनेंस चार्ज भी नहीं देना होता। इस बात का ध्यान रखें कि
बचत खाते में 10 लाख से ऊपर के किसी भी लेन-देन की जानकारी आयकर विभाग को दी
जाती है। आमतौर पर व्यक्ति अपनी बचत राशि का एक हिस्सा जमा करने के लिए बचत खाता
खोलता है। बचत खाता आमतौर पर छोटे बचत कर्ता, छोटे कारोबारी, वेतनभोगी या नियमित आय वाले लोग खोलते हैं। इसी तरह छात्र,
पेंशनर और वरिष्ठ नागरिकों को
इस तरह के खाते खोलने की जरूरत होती है।
बचत खाते पर भी ब्याज मामूली ही मिलता है। हालांकि बचत खाते
पर ब्याज दरों को रिजर्व बैंक ने नियंत्रणमुक्त कर दिया है,
फिर भी कुछ बैंकों द्वारा
बड़े जमा पर मिलने वाले 6 फीसदी ब्याज को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर बैंक 4 से 5 फीसदी
सालाना ब्याज ही देते हैं। बचत खाते को चलाते रहने के लिए उसमें बहुत कम राशि रखने
की जरूरत होती है। कमर्शियल बैंक और सहकारी बैंक अपने यहां बचत खाते के माध्यम से
लोगों की जमा राशि स्वीकार करते हैं। भारत में बचत खाता 100 रु. से लेकर 5000 रुपए
तक के जमा के साथ खोला जा सकता है। बचत खाते में खाताधारक जब चाहे अपने खाते से
पैसा निकाल सकता है। इसमें कितनी भी बार और कितनी भी राशि जमा की जा सकती है,
लेकिन रुपए 50,000 से ऊपर
के जमा पर पैन (परमानेंट अकाउंट नंबर) देना अनिवार्य होता है और अगर आपकी आमदनी के
हिसाब से रकम ज्यादा लग रहा है, तो बैंक मैनेजर आपसे इस रकम के स्रोत के बारे में
पूछ सकता है। इसी तरह एक माह में अधिकतम लेन-देन की भी एक सीमा तय की जाती है।
इसमें निकासी के मामले में भी कुछ सीमाएं होती हैं। इसमें से
पैसा या तो चेक, या
संबंधित बैंक के विद्ड्रॉल स्लिप या एटीएम से ही निकाला जा सकता है। बचत खाता
लगातार चलने वाला होता है और इसको रखने के लिए कोई अधिकतम अवधि नहीं होती। बचत
खाते में रखी रकम के बदले किसी तरह का लोन नहीं मिलता। बिजली का बिल,
टेलीफोन बिल और अन्य दैनिक
खर्चों के लिए इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम (ईसीएस) या ई-बैंकिंग की सुविधा इस
खाते पर मिलती है। आमतौर पर लोग हाउसिंग लोन, पर्सनल लोन, कार लोन इत्यादि के ईएमआई का भुगतान बचत खाते से ही करते
हैं।
बैंक बचत खाता धारकों को कई तरह की सुविधा देते हैं। इस खाते
को रखने वाला कोई जमाकर्ता चेक से किसी को पेमेंट कर सकता है। इसका वेतनभोगी या
अन्य लोगों को यह फायदा होता है कि वे साल के अंत में अपनी पूरी जमा और निकासी का
विवरण देख सकते हैं। बचत खाते का पासबुक किसी व्यक्ति की पहचान और एडे्रस प्रूफ के
रूप में भी मान्य होता है। इस खाते को रखने वाला व्यक्ति किसी दूसरे के खाते में
इलेक्ट्रॉनिक तरीके से फंड ट्रांसफर (ईएफटी) भी कर सकता है। बचत खाता रखने वाले
ग्राहक इंटरनेट बैंकिंग सुविधा का लाभ उठाते हुए ऑनलाइन शॉपिंग भी कर सकते हैं। इस
खाते में अकाउंट धारक द्वारा किए जाने वाले सभी तरह के लेन-देन का रिकॉर्ड रखा
जाता है। इस खाते को रखने वाले लोग जरूरत पडऩे पर तत्काल एटीएम के द्वारा पैसा
निकाल सकते हैं।
सुविधाओं के लिहाज से अब बैंकों ने अपने बचत खाते को कई
हिस्सों में बांट दिया है।
सुविधा के स्तर से ही इन्हें बेसिक,
रेगुलर,
सेविंग प्लस आदि नाम दे दिए
जाते हैं। बुनियादी बचत खातों की बात करें तो एटीएम कार्ड,
आईवीआर आधारित बैंकिंग,
माह में एक निश्चित बार मुफ्त
रकम निकासी की सुविधा मिलती है। इससे ऊपर के बचत खातों में इंटरनेशनल डेबिट कार्ड,
एनईएफटी से फंड ट्रांसफर,
सेफ डिपॉजिट लॉकर,
स्वीप इन सुविधा,
मोबाइल बैंकिंग,
बिल भुगतान आदि की सुविधा दी
जाती है। और उच्च स्तर के बचत खातों में इंटरनेशनल डेबिट कार्ड के अलावा,
पर्सनलाइज्ड चेक,
पेएबल ऐट पार चेकबुक,
इंटरसिटी और मल्टी सिटी
बैंकिंग, लॉकर
रेंटल पर छूट, गोल्ड
बार आदि खरीदने में विशेष छूट की सुविधा दी जाती है।
‘कासा’ से बैंकों को होनेवाले फायदे
करंट अकाउंट और सेविंग अकाउंट से ग्राहकों को कई तरह के फायदे
हैं तो कहीं ज़्यादा फायदा बैंक को होता है फिर चाहे शुद्ध मुनाफे की बात हो या
नियमित पूंजी की या फिर कारोबार में बढ़ोतरी की या बैंक के ब्रांडिंग की, कासा के
ज़रिए बैंक को अनेकोनेक फायदे हैं। दूसरे शब्दों कहें तो ‘कासा’ मतलब फायदे-ही-फायदे। कैसे
और कितना फायदा है बैंकों को –
शुद्ध
बड़ा मुनाफा – चूंकि बैंकों का
मुख्य काम है कम ब्याज पर पैसा जमा करना और ज़्यादा ब्याज पर क़र्ज़ देना ऐसे में ‘कासा’
यानि चालू और बचत खाते की रक़म बैंकों के मुनाफे को कई गुना तक बढ़ा देती है। वज़ह
ये कि करंट अकाउंट अर्थात् चालू खाता में जहां जमा रक़म पर बैंक कोई ब्याज नहीं
देता वहीं सेविंग अकाउंट अर्थात् बचत खाता पर दिए जाने वाला ब्याज़ बहुत ही कम
होता है। दोनों ही स्थिति में बैंक को बेहद सस्ते में पूंजी हासिल होती है। जिससे
बैंक ऊंचे दरों पर क़र्ज़ देकर ज़्यादा बड़ा और शुद्ध मुनाफा कमाते हैं।
नियमित
पूंजी का प्रवाह – करंट अकाउंट और
सेविंग अकाउंट में रक़म के आने और जाने का वक़्त ज्ञात रहता है। इसके ज़रिए बैंकों
को निश्चित वक़्त पर निश्चित राशि मिलती रहती है, इस वज़ह से पूंजी का प्रवाह बना
रहता है। जिस पूंजी का इस्तेमाल बैंक अपने व्यापार बढ़ाने में बख़ूबी करते हैं।
कारोबारी
जटिलता में कमी – तकनीक के तेज़ी
से बदलते स्वरूप ने लोगों की ज़िन्दगी और ज़रूरतों को भी बहुत प्रभावित किया है
जिसके असर से बैंकिंग उद्योग नहीं बचा है। बैंकिंग का वर्तमान स्वरूप हर गुज़रते
दिन के साथ जटिल से जटिलतर होता जा रहा है। ऐसे में पारंपरिक बैंकिंग की श्रृंखला
में ‘कासा’ की
भूमिका सबसे अहम है क्योंकि ये आज भी रक़म जमा करने और रक़म निकालने के सीधे
समीकरण पर आधारित। इन दो तरह के अकाउंट का प्रबंधन भी तुलनात्मक रूप में आसान होता
है।
कारोबार
में बढ़ोतरी – जैसा ऊपर उल्लेख
किया जा चुका है कि बैंकिंग आज अपने पारंपरिक स्वरूप से काफी आगे निकल चुकी है।
बैंक अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए तमाम दूसरे तरह के प्रयोग कर रहे हैं। ऋण और जमा के
खेल के साथ बीमा और दूसरे तरह के तमाम योजनाओं को बैंक प्रोडक्ट की तरह लॉन्च कर
रहे हैं और बेच रहे हैं। ऐसे में ‘कासा’ के ज़रिए मिले ग्राहकों की संख्या और संपर्क बैंकों
के कारोबार बढ़ाने में कारगर साबित हो रहे हैं।
एनपीए
का ख़तरा कम – ‘कासा’ के
ज़रिए होने वाले व्यापार में आर्थिक ख़तरे (फिनान्शियल रिस्क) की गुंजाइश न्यूनतम
होती है। एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) अर्थात ग़ैर-उत्पादक आस्थियां आज बैंकों
को सिरदर्द बनते जा रहे हैं। पारंपरिक बैंकिंग का आधार होने के बावजूद कासा एनपीए
पर नियंत्रण रख पाने में बैंकों के लिए मददगार साबित होता है।
बिना
ख़र्च प्रचार-प्रसार और ब्रांडिंग – ‘कासा’ के ज़रिए बैंकों की पहुंच लोगों के बीच गहरी
पहुंचती है। अच्छी सेवा की गारंटी तय कर देने मात्र से बैंकों की साख बढ़ती है और
बैंक के कारोबार के साथ-साथ प्रचार-प्रसार का काम होता रहता है। बिना ख़र्च बैंक
की ब्रांडिंग होती है।
बैंकों
में ‘कासा’ की स्थिति
‘कासा’ से
बैंकों को फ़ायदा ज़्यादा है इस वज़ह से ‘कासा’ की स्थिति बहुत अच्छी या सुदृढ़ है, ऐसा
बिल्कुल भी नहीं है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को छोड़ दें तो 19 राष्ट्रीयकृत बैंकों
में महज तीन बैंक क्रमशः पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र और युनाइटेड बैंक
में ‘कासा’
अनुपात लगभग 40 फीसदी है। सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, यूको बैंक, यूनियन बैंक,
इलाहाबाद बैंक और देना बैंक में ‘कासा’ का
अनुपात प्रतिशत लगभग तीस है। और बाकी बचे बैंकों में ये अनुपात प्रतिशत 20 से 28
के बीच है। हालात ये हैं कि नियंत्रक की भूमिका निभा
रहे रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को समय-समय पर बैंकों से ‘कासा’
अनुपात प्रतिशत बढ़ाने की अपील करनी पड़ती है। बैंक भी ग्राहकों को लुभाने में कोई
कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इन सबके बावज़ूद ‘कासा’ की दर में गिरावट ज़ारी है।
क्यों
घट रहा है ‘कासा’?
टैक्स बचाने के
लिए अपनाए जानेवाले तमाम नए हथकंडे की वज़ह से भी ‘कासा’ में बढ़ोतरी कर पाना बैंकों के लिए टेढ़ी खीर
साबित हो रही है। एन ई एफ टी (नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर) व आर टी जी एस (रीयल
टाइम ग्रॉस सेटेलमेंट) और पेमेंट यानि भुगतान के तमाम नए रास्ते ने ‘कासा’
अनुपात प्रतिशत वृद्धि को बुरी तरह प्रभावित किया है। इन सबके के अलावा
राष्ट्रीयकृत बैंकों को निजी बैंकों से मिल रही चुनौतियां सबसे अहम कारक बन कर
उभरी हैं। निजी बैंकों के ऊपर रिज़र्व बैंक का नियंत्रण तो होता है लेकिन सरकारी
नियंत्रण नहीं होता। जिस वज़ह से कई नियमों को ताक पर रखकर वो कारोबार करते हैं।
इतना ही नहीं निजी बैंकों पर सरकारी बैंको की तरह किसी तरह का अतिरिक्त सरकारी बोझ
या काम नहीं लादा जाता इस वज़ह से वो सिर्फ़ और सिर्फ़ कारोबार पर ध्यान केन्द्रित
रखते हैं। और यक़ीनन यही वज़ह है कि एक ओर जहां राष्ट्रीयकृत बैंकों को मौज़ूदा ‘कासा’
अनुपात प्रतिशत स्थिर रखने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ रहा है, वहीं निजी
बैंक तमाम तरह के हथकंडे अपनाकर बाज़ार में अपनी पैठ बनाने में क़ामयाब दिख रहे
हैं।
कैसे
बढ़ेगा कासा?
सरकारी
योजनाओं के ज़रिए – सरकार के सभी तरह के काम-काज में
मुख्य सहयोगी की तरह स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जुड़ा रहता है। इस कारण, अधिकतर सरकार
की आर्थिक गतिविधियां स्टेट बैंक के ज़रिए ही संपन्न होती है। और, कारोबार भी
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को ही मिलता है। वित्तीय समावेशन, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण
रोज़गार योजना, दिल्ली सरकारी की अन्न-श्री योजना जैसी तमाम ऐसी सरकारी योजनाएं
बैंकों को ‘कासा’
अनुपात प्रतिशत बढ़ाने के लिए कारगर मौक़ा मुहैया करा रही हैं। इन योजनाओं को
गंभीरता से लेकर काम करने वाले बैंकों के कारोबार में यक़ीनन इज़ाफ़ा हुआ है।
उन्नत
तकनीक के साथ करना होगा मुक़ाबला –
निजी क्षेत्र के बैंक अगर तमाम विपरीत परिस्थिति में भी ‘कासा’
अनुपात प्रतिशत बढ़ाने में क़ामयाब हो रहे हैं तो यक़ीनन राष्ट्रीयकृत बैंक
कहीं-न-कहीं किसी विसंगति का शिकार है। आज बाज़ार की ज़रूरत के मुताबिक़ स्कीम और
प्रोडक्ट लॉन्च करने की आवश्यकता है। आमलोगों के लिए बैंकिंग आज भी जटिल प्रक्रिया
है आम लोगों के लिए बैंकिंग का सरलतम रूप लाने का गुरू-दायित्व निभाना भी हमारा
काम होना चाहिए। ताकि हम आमलोगों का भरोसा जीत सकें, उन्हें समझ सकें और उनसे
कारोबार हासिल कर सकें।
अपनाना
होगा कॉरपोरेट संस्कृति –
बाज़ार का कॉरपोरेटाइज़ेशन हो चुका है। ऐसे में राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए कस्टमर
फ्रेंडली बैंकिंग का नया अध्याय शुरू करना निहायत ही ज़रूरी है। 24-ऑवर्स बैंकिंग,
बैंकिंग एट योर डोर स्टेप्स जैसे कॉन्सेप्ट्स को वास्तविकता का अमलीजामा पहनाने का
वक़्त आ चुका है। इन्हीं मानदंडों पर ख़रा उतरकर हम राष्ट्रीयकृत बैंकों में ‘कासा’
अनुपात प्रतिशत बढ़ा सकते हैं। यदि निजी बैंकों को निजी कंपनियां अपने कर्मचारियों
के वेतन के लिए सैलेरी अकाउंट बनाने की ज़िम्मेदारी दे रही हैं तो यक़ीनन हमें
आत्म-निरीक्षण करना ही होगा। हमें वो रास्ता अख़्तियार करना ही होगा, जिनकी मदद से
हम बाज़ार में मौज़ूद निजी कंपनियों के करंट अकाउंट और सेविंग अकाउंट को अपनी ओर
खींच सकें।