कुछ दिनों पहले मेरी मुलाक़ात एक कद्दावर नेता से हुई । नेताजी फाइनेंनशियल वर्ल्ड से जुड़े व्यवहारिक और क़ामयाब इंसान हैं। एक बैंक मुलाज़िम होने के
नाते मैंने पूछना चाहा कि बैंकर्स वेतन बढ़ोतरी में कितनी उम्मीद रखें। लेकिन इस
सीधे सवाल का जवाब बहुत सीधा और सरल होता इसलिए इसे दूसरे ढंग से पूछना मुनासिब
समझा। इसके लिए मैंने नेताजी का एक छोटा-सा इंटरव्यु ले लिया
सवाल – आप कौन सा रेडियो चैनल सुनते हैं?
नेताजी – एफएम चैनल ज़्यादातर 92.7
बिग एफएम
सवाल – न्यूज़ के लिए कौन सा चैनल देखते
हैं?
नेताजी – एनडीटीवी
सवाल – मनोरंजन के लिए कौन सा चैनल देखते
हैं?
नेताजी – कलर्स
सवाल – आपके पास जो मोबाइल फोन है उसका
सर्विस प्रोवाइडर कौन है?
नेताजी – वोडाफोन
सवाल – आपके घर पर जो लैंड-लाइन नंबर है
उसका सर्विस प्रोवाइडर कौन है?
नेताजी – एयरटेल
सर आपके जवाबों से मैं ख़ासा प्रभावित हूं
इसलिए कुछ सवाल और करना चाहता हूं इजाज़त हो तो...
नेताजी (टोकते हुए) – हां हां पूछो
पूछो
सवाल - सरकारी मुलाज़िम होने के बावज़ूद
आप आकाशवाणी क्यो नहीं सुनते हैं?
अगर कोई पेशेवर पत्रकार उनसे ये सवालात कर
रहा होता तो यक़ीनन वो उसे बड़े पेशेवर तरीक़े से ही जवाब देते चूंकि किसी
प्रोफेनल ने ये सवाल नेताजी से नहीं किया था इसलिए वो चुप होकर मुझे घूरने
लगे.. शायद जानने की कोशिश कर रहे थे कि मैं कहना क्या चाहता हूं। उनके चेहरे के
भाव ऐसे थे, मानो कहना चाह रहे हों – ‘यार मैं क्या पूरा देश आकाशवाणी की जगह अब एफएम ही सुनता है।‘
लेकिन मैंने उनके भावों को नज़रअंदाज़
करते हुए अगला सवाल दाग दिया - न्यूज़ के लिए दूरदर्शन न्यूज़ क्यों नहीं देखते
हैं?
इस सवाल पर चुप्पी की जगह एक झुंझालाहट
भरा भाव चेहरे पर उभरा... मानों मैंने कोई महा बेवकूफी भरा सवाल पूछ दिया हो।
मैंने उनके ज्ञान में इज़ाफ़ा चाहता था
इसलिए एक बार फिर पूछा – आपको पता है मनोरंजन के लिए दूरदर्शन के पास आज चैनलों का
पूरा गुलदस्ता है फिर भी आप कलर्स क्यों देखते हैं?
इस बार नेताजी के चेहरे पर झुंझलाहट
की जगह एक व्यंग्यात्मक मुस्कान आई मानों कर रहे हों – ‘बेटा कॉमेडी नाइट्स
विद कपिल नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा।‘
मैं उनतक अपने दिल की आवाज़ पहुंचाना चाह
रहा था इसलिए उनके तमाम मनोभावों को नज़रअंदाज़ करते हुए... एक और सवाल किया
- फोन के लिए लैंड-लाइन और मोबाइल के लिए
आप एमटीएनएल या बीएसएनएल क्यों नहीं इस्तेमाल करते हैं?
ये सवाल नेताजी के लिए शायद इंतिहां
थी। उन्होंने खीझते हुआ कहा – ‘भई कहना क्या चाहते साफ-साफ कहो।‘
मैंने कहा - सर बहुत जल्दी प्राइवेट
बैंकों के लिए आरबीआई लाइसेंस बांटना शुरू कर देगी...और आकाशवाणी, दूरदर्शन,
बीएसएनएल-एमटीएनएल की फेहरिस्त में कम-से-कम 26 नाम और जुड़ेंगे और वो 26 नाम
होंगे तमाम सरकारी बैंकों के... अगर इस बार भी वेतन सुधार के नाम पर महज़
खानापूर्ति का काम कर दिया गया तो अपने इंडस्ट्री में टैलेंट बचाना मुश्किल हो
जाएगा। छठे वेतन आयोग के समय से बैंकिंग इंडस्ट्री का वेज रिविज़न पेंडिंग है और
वोट बैंक की राजनीति की वज़ह से ही सही लेकिन सातवें वेतन आयोग का गठन हो चुका है।
इसके बावज़ूद अगर हमें सिर्फ़ लॉलीपॉप पकड़ाया जाएगा तो आगे का अंजाम क्या होगा
आपसे बेहतर कौन समझे और जानेगा आने वाले दिनों में हमें बेस्ट ऑफ़ द टैलेंट की जगह
रेस्ट ऑफ़ द टैलेंट से काम चलाना होगा ये तय है...
नेताजी गंभीर हो गए (लेकिन, ये भाव एक
राजनीतिक चेहरे के लिए बेहद आम भाव था)।
2 comments:
अच्छे सवाल अगर अाने वाले समयं का चिंतन
किसी के पास न तो जवाब है और न कोई रास्ता या हल
अच्छे सवाल अाने वाले समयं का चिंतन
किसी के पास न तो जवाब है और न कोई रास्ता या हल
Post a Comment