Monday, June 4, 2012

मठाधीश मतलब आमिर ख़ान ?

मैं किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकता...लेकिन मुद्दे को सशक्त तरीके से उठा ज़रूर सकता हूं – अपने पहले टीवी शो की पहली कड़ी के बाद मिली प्रशंसा से अभिभूत आमिर का ये वक्तव्य एक साथ कई-कई संदेश दे रहा हैा। आमिर खान प्रोडक्शंस के बैनर तले बने इस सीरियल को एंटरटेनमेंट की दुनिया के सबसे कामयाब चैनल पर सबसे बिकाऊ वक्त दिया गया है। पहली कड़ी के प्रसारण के बाद इस कसौटी पर खरे उतरे आमिर खान ने ख़ुद को फिर से सिरमौर साबित कर दिया।
आमिर के साथ-साथ भारत में रूपर्ट मर्डोक के नुमाइंदे यानी स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर के लिए भी तमाम कसीदे गढ़े जा रहे हैं। उदय शंकर की तारीफ की वजह आलोचक ये बता रहे हैं कि मनोरंजक चैनल के प्राइम टाइम पर विशुद्ध पत्रकारिता से जुडा कार्यक्रम दिखाने का साहस उन्होंने दिखाया है। बतौर व्यापारी एक ज़ोखिम तो है ही, लेकिन, जहां तक उत्पाद को बिकाऊ बनाने की बात है, वहां तो उदय शंकर खिलाड़ी ही नज़र आ रहे हैं। फिर चाहे विषय का चयन हो या प्रस्तुति।
कार्यक्रम के विषय-वस्तु, उससे जुड़ा ज़ोखिम, प्रस्तुति और प्रस्तोता से कहीं ज़्यादा अहम है कि आख़िर एंटरटेनमेंट चैनल ही क्यों?  आमिर ने या फिर उदय शंकर साहब को मुद्दा उठाने से कहीं ज़्यादा बिजनेस उठाने से सरोकार है। आमिर को पता है औऱ उदय शंकरजी  को भी कि आमिर की छवि क्या है और उनकी मार्केट वैल्यु क्या है। सही भी है, इसमें कोई बुराई भी नहीं है, कम-से-कम किसी बहाने से ही सही जिन मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए उस पर ध्यान दिया जा तो रहा है।
ऐसा नहीं है कि आमिर जिन मुद्दों को अपने कार्यक्रम सत्यमेव जयते में उठा रहे हैं उसे न्यूज़ चैनल्स पर जगह नहीं मिली या मिलती। लेकिन, ये तो तय है कि जिस तरह को चीज़ों को आमिर ख़़ान प्रोडक्शंस के जरिए दिखाया जा रहा है, वो वाकई लाजवाब है। फिर चाहे रिसर्च की बात हो या कंटेंट की या फिर संजीदगी की। मुद्दे को मुद्दे की तरह दिखाया जाना और आमिर की सधी हुई प्रस्तुति ने दर्शकों को डेढ़ घंटे तक बंधे रहने को मजबूर कर रखा है इसमें कोई शक नहीं।
इस पूरे प्रकरण ने न्यूज़ चैनल्स के मठाधीशों की नींद गायब कर दी है। वजह ये कि जिन चीज़ों को न्यूज़ चैनल्स के जरिए दिखाया जाना था, वो एक एंटरटेनमेंट चैनल पर दिखाया जा रहा है। समाचार चैनल्स ने आमिर के द्वारा उठाए मुद्दे को हो सकता है, टुकड़ों (जब जैसे खबरें सामने आईं) में पहले दिखा चुके हों, लेकिन उनकी प्रस्तुति और ख़ासतौर पर मुद्दे पर किया गया या हो रहा शोध यानी रिसर्च यकीनन स्तरीय नहीं। इस तरह तो कंटेंट के लिहाज से भी न्यूज़ चैनल सोचने को बाध्य हुए हैं।
न्यूज़ चैनल्स के रिपोर्टर्स की सेहत पर शायद ही कोई फ़र्क पड़ता हो लेकिन समाचार संपादकों की सेहत पर इस तरह के कार्यक्रम का असर पड़ना चाहिए। लेकिन जैसे पहले क्राइम से जुड़़ीं ख़बरें एंटरटेनमेंट चैनलों के लिए कार्यक्रम बनाने का पसंदीदा विषय रहीं। और जिससे संपादक या रिपोर्टरों की सेहत पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा, वैसा कुछ इस बार नहीं होने वाला है।
इस बार माज़रा थोड़ा अलग है। अलग इसलिए क्योंकि आमिर ने मीडिया के तथाकथित मठाधीशों (ख़बरों की दुनिया से सरोकार रखनेवालों) के लिए एक आदर्श बनकर उभरें हैं। अब रिपोर्टरों ख़ासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक दुनिया के रिपोर्टरों में एक होड़ लगी है कि आमिर ने किनकी ख़बरों को कैसे मुहर लगाई, किस रिपोर्टर को अपने कार्यक्रम में शामिल होने का मौक़ा दिया और आनेवाले एपिसोड्स में किन मुद्दों को तरजीह देनेवाले हैं। रिपोर्टरों ने अपनी कमर कस ली है। बस आमिर की नज़र पड़ने भर की देर है। सोशल साइट्स पर हर एपिसोड्स के बाद उन रिपोर्टर्स के दावे देखते बन रहे हैं जिनकी कभी दिखाई गई ख़बर किसी न किसी तरह से आमिर के मुद्दों के आस-पास भी बैठती हों।
मनोरंजक जगत का आला/आका अब न्यूज़ वर्ल्ड का मठाधीश बन चुका है। कभी किसी संवाददाता ने किसी मुद्दे को शिद्दत से उठाने की कोशिश की हो या नहीं। लेकिन, जिस शिद्दत से पत्रकार ख़ासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के रिपोर्टर्स आमिर के उठाए मुद्दे से अपने कवर किए स्टोरी की समानता पेश करने की कोशिश में जुटे हैं, उससे लग रहा है, मानों उन्हें पत्रकारिता में उनके उत्कृष्ठ काम के लिए मैगसेसे या पुल्तिज़र मिलने जा रहा हो। बहरहाल हम ये ज़रूर कह सकते हैं मठाधीश मतलब आमिर ख़ान !
                                                                                                                                       अभिषेक पाटनी

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