Sunday, May 12, 2013

बच्चों की कब्रगाह बनता पूर्वांचल : तो फिर एम्स जैसा अस्पताल रायबरेली में क्यों?

बच्चे यानी देश का भविष्य, लेकिन हर साल दम तोड़ते इन हज़ारों-लाखों 
बच्चों की चिंता किसी को भी नहीं है. न तो उत्तर प्रदेश सरकार को और 
न ही केंद्र सरकार को, क्योंकि अगर चिंता होती, तो एम्स की 
तर्ज पर प्रस्तावित अस्पताल गोरखपुर में स्थापित करने का निर्णय 
लिया जाता, न कि सोनिया गांधी के लोकसभा क्षेत्र 
रायबरेली में! आख़िर बच्चों की लाश पर अस्पताल की 
यह राजनीति क्यों?

वर्ष 1978 से बच्चों के मरने का सिलसिला आज भी जारी है. बच्चे हर साल मर रहे हैं. पहले तो 
डॉक्टरों को बीमारी का पता ही नहीं चला और जब पता चला, तो सी स्वास्थ्य सुविधाएं ही उपलब्ध 
नहीं थीं, जो इन बच्चों को बचा सकें. हर साल मां की गोद सूनी हो रही है, 
बीमारों एवं बीमारियों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है, लेकिन इसकी फिक्र न तो सूबे 
की सरकार को है और न ही केंद्र सरकार को. पूर्वांचल के बच्चे आज एक ऐसी बीमारी से लड़ रहे हैं, जो या तो 
उनकी जान ले लेती है या फिर उन्हें विकलांग बना देती है. इस बीमारी का नाम है, इंसेफेलाइटिस.
 सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक़, 1978 से अब तक 13 हज़ार बच्चे इस बीमारी की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं. 
क़रीब इतने ही शारीरिक एवं मानसिक रूप से अपंग हो चुके हैं. ग़ौरतलब है कि यह सरकारी रिकॉर्ड है, 
जबकि ज़मीनी सच्चाई इससे कहीं अलग है. यहां सवाल यह उठता है कि पिछले 
34 सालों से जब यह महामारी इस इला़के में हर साल फैल रही है, तो इससे बचने के लिए सरकार ने क्या किया? 
ज़ाहिर है, अगर सरकार ने कोई ठोस क़दम उठाए होते तो, हर साल इतनी मौतें न होतीं. 
बहरहाल, हाल ही में केंद्र सरकार ने देश के अलग-अलग हिस्सों में एम्स (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) की 
तर्ज पर छह जगहों पर अस्पताल स्थापित करने का निर्णय लिया. बाद में दो और जगहों पर भी ऐसे ही
अस्पताल खोलने की बात कही गई, जिनमें से एक जगह है रायबरेली. रायबरेली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का 
लोकसभा क्षेत्र है. सवाल यह है कि जब एम्स की तर्ज पर एक अस्पताल उत्तर प्रदेश के हिस्से में आना है, 
तो वह रायबरेली में ही क्यों, जबकि इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इला़के को है,
 क्योंकि वहां सही इलाज न होने के कारण हर साल हज़ारों की तादाद में बच्चे मौत की गोद में समा जाते हैं.
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