Wednesday, May 29, 2013

सट्टेबाज़ नहीं... देशद्रोही हैं.. देशद्रोही


बेटिंग यानी सट्टा को क़ानूनी मान्यता दिलवाने की मुहिम शुरू हो गई है। सट्टा से जुड़े लोगों के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। चलिए होना भी चाहिए ताकि अपराधियों की संख्या में इज़ाफ़ा न हो। अरे भाई, अपने यहां इतनी जेलें कहां है? और तो और अब देश की कमान अंग्रेजों या पुर्तगालों के हाथों में कहां है जो देश की जेलों को भरने के बाद गिरफ़्तार लोगों को मॉरिसस या मकाऊ भेजा जा सके? इसलिए सट्टेबाज़ी को क़ानूनी मान्यता की वक़ालत तमाम जुआरी टाईप नेता इस दलील के साथ करने लगे हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन समेत तमाम विकसित देश में इसे मान्यता प्राप्त है।
सट्टेबाज़ी की सिफारिश करनेवाले नेताजी को देश की ज़मीनी हक़ीक़त इसलिए भी नहीं पता है क्योंकि उनकी महफ़िलें प्रायोजित होती हैं वो भी फाइव-स्टार्स और सेवेन स्टार्स होटलों में जिन्हें लोकल ट्रेनों में तो क्या मेट्रों रेल में भी सफ़र नहीं करनी पड़ती। उन्हें क्या पता कि सट्टेबाज़ी का प्रसंस्कृत स्वरूप लॉटरी को कई राज्यों ने सिर्फ इसलिए बंद कर दिया कि ग़रीब क़र्ज़ ले-लेकर लॉटरी लगाते थे और अंततः अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते थे। और सट्टेबाज़ी को एक बार क़ानूनी मान्यता मिल गई तो रक़म उगाही करने वालों को रोक पाना भारत जैसे देश में दुष्कर काम होगा। ख़ैर, ये तमाम उलझाऊ चीज़े नीति-निर्णायक लोग जानें।
जिन लोगों को भी अभी सट्टेबाज़ी या स्पॉट फिक्सिंग या मैच फिक्सिंग में धरा गया है, उनमें से ज़्यादातर के तार दुबई और दाउद से जुड़े होने की बात सामने आ रही है। यहां लाख़ टके का सवाल तो ये है कि क्या गिरफ़्तार हुए लोगों पर केवल ग़ैर-क़ानूनी सट्टेबाज़ी से जुड़े क़ानून के तहत कार्यवायी होगी? और क्या जब सट्टेबाज़ी को देश में क़ानूनी मान्यता मिल जाएगी तो उन्हें बरी कर दिया जाएगा?
सबसे अहम सवाल ये है कि पूरा मामला क्या महज़ सट्टेबाज़ी तक सिमटा है? हक़ीक़त तो ये है कि स्पॉट फिक्सिंग और मैच फिक्सिंग के तार डी-कंपनी से जुड़े होने की वज़ह से ये मामला देशद्रोह का बनता है और इस नाते गिरफ़्तार तमाम लोगों पर देशद्रोह का मुक़दमा दायर कर कार्यवायी होनी चाहिए। इस पूरे मामले में कोई हील-हवाई नहीं होनी देनी चाहिए ताक़ि आनेवाली नस्ल लालच और हवस से दूर ही रहने में अपनी भलाई समझे। यदि अभिनेता संजय दत्त को महज़ हथियार रखने का दोषी पाए जाने पर पांच साल क़ैद-ए-बामुशक़्क़त की सज़ा दी जाती है तो इस मामले में गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी ही चाहिए। यक़ीन मानिए न्यायपालिका के इस क़दम से समाज में सुरक्षा की भावना मज़बूत होगी। 

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