Tuesday, January 24, 2012

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की तीन राज्यों में चुनाव लड़ने की तैयारी

सोशलिस्ट पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में 45 पंजाब में एक और गोवा में 5 उम्मीदवार चुनाव मैदान में खड़े किए हैं। उत्तराखंड में पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रहा है। वहां पार्टी सहमना संगठनों के उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है। उत्तर प्रदेश में पार्टी लोक राजनीति मंच समर्थित उम्मीदवारों के साथ नवउदारवादी नीतियों, सांप्रदायिकता, जातिवाद, वंशवाद विरोधी साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है। पार्टी का फैसला है कि इन चुनावों में उसका यूपीए और राजग (भाजपा-कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों) से पहले नंबर पर विरोध है। सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि ये दोनों पार्टियां और उनके नेतृत्व में चलने वाले गठबंधन देश में जन-विरोधी नवउदारवादी नीतियों के लिए पहले नंबर पर जिम्मेदार हैं। सोशलिस्ट पार्टी नवउदारवादी नीतियों का संपूर्णता में विरोध करती है। पार्टी का लक्ष्य देश में लोकतांत्रिक समाजवादी व्यवस्था कायम करना है।

चुनाव प्रचार के लिए केंद्रीय नेतृत्व से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भाई वैद्य, केंद्रीय पार्लियामेंटरी बोर्ड के अध्यक्ष पन्नालाल सुराणा, पार्टी के उपाध्यक्ष संदीप पांडे, महासचिव डॉ. प्रेम सिंह, नुरुल अमीन और ओंकार सिंह, जस्टिस राजेंद्र सच्चर, पूर्व सांसद एवं वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे। उत्तर प्रदेश में पार्टी का चुनाव घोषणापत्र पार्टी उपाध्यक्ष संदीप पांडे, महासचिव ओंकार सिंह और उत्तर प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष गिरीश पांडे 27 जनवरी को जारी करेंगे।

डॉ. प्रेम सिंह

महासचिव व प्रवक्ता

मोबाइल : 9873276726

Friday, September 30, 2011

सजप का सैद्धांतिक दिवालियापन


(यह टिप्पणी जनसत्ता में छपे एक लेख पर डॉ. अश्वनी कुमार, हिंदी विभाग, मोतीलाल नेहरू कॉलेज (सांध्य), दिल्ली यूनिवर्सिटी ने की है.)

जनसत्ता, 27 सितंबर 2011 में छपी न्यूज स्टोरी समाजवादी जन परिषद करेगी सिद्धांत आधारित राजनीति का शीर्षक पढ़ कर जहां खुशी हुई वहीं पूरा समाचार पढ़ कर भारी धक्का लगा। अगले महीने बिहार के सासाराम में होने जा रहे समाजवादी जन परिषद(सजप) के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्‌घाटन अन्ना हजारे करेंगे, यह समाचार किसी भी तरह नहीं पच पा रहा है। इसीलिए यह टिप्पणी लिख रहा हूं। सजप का गठन नवउदारवादी व्यवस्था की जगह समाजवादी व्यवस्था कायम करने के लिए हुआ था। उसने एक नई राजनीतिक संस्कृति के निर्माण की बात की थी। लेकिन किशन जी की मृत्यु के कुछ समय पहले से ही सजप में अजीब तरह की स्थिति बनने लगी थी। कुछ लोग विदेशी धन लेने एनजीओ के साथ काम करने, कांग्रेस का साथ देने आदि की वकालत पार्टी मंच से करने लगे थे। जनसत्ता का समाचार पढ़ कर लगता है वे लोग कामयाब हो गए हैं। मेरे जैसे साधारण कार्यकर्ता की समझ से यह बाहर है कि जिन अन्ना हजारे का बड़े उद्योगपतियों के सभी संगठन, कारपोरेट लॉबी, अमरीकी सरकार, आरएसएस और एनजीओ समर्थन कर रहे हैं, उन्हें सजप के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्‌घाटन करने के लिए किस समाजवादी सिद्धांत के तहत बुलाया जा रहा है. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के निर्माताओं और सदस्यों में तरह-तरह के सांप्रदायिक, जातिवादी आरक्षण विरोधी और धर्म का व्यापार करने वाले लोग शामिल हैं। गांधीवादी अन्ना हजारे भ्रष्टाचारियों को बात-बात पर फांसी पर लटकाने और उनका मांस गिद्धों और कुत्तों को खिलाने का आह्नान करते रहते हैं। अप्रैल में जंतर-मंतर पर मिली कामयाबी के बाद उन्होंने सबसे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की प्रशंसा की थी। वे महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों को पीटने वाले ठाकरे बंधुओं और बाबरी मस्जिद ढहाने वाले कारसेवकों के भी प्रशंसक हैं। उनकी टीम में सबसे प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने खुलेआम आरक्षण के विरुद्ध यूथ फॉर इक्वेलिटी संस्था, जो रातों-रात बन गई थी, को धन सहित सभी तरह की मदद की थी। समाचार में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की कड़ी आलोचना की गई है। लेकिन नितीश अन्ना हजारे के प्रिय मुख्यमंत्री हैं। अगर सजप के मंच से वे नितीश कुमार की प्रशंसा करेंगे तो सजप की आलोचना का क्या होगा. समाचार में सम्मेलन में योगेंद्र यादव के शामिल होने की सूचना खास तौर पर दी गई है। योगेंद्र यादव लंबे समय से राहुल गांधी और सोनिया गांधी के सलाहकार हैं और कांग्रेस के लिए काम करते हैं। सजप की बैठकों में मैंने अनेक बार उनके फोर्ड फाउंडेशन जैसी बदनाम संस्थाओं से संबद्ध होने की चर्चा सुनी है। डॉ. प्रेम सिंह ने तीन लेखों -भ्रष्टाचार : विभ्रम और यथार्थ, नवउदारवाद की प्रयोगशाला में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार के घाट पर,- में यह अच्छी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि अन्ना हजारे का आंदोलन नवउदारवाद को मजबूत करने के लिए हुआ है। मैं उनके विचार से पूरी तरह से सहमत हूं। दलित विमर्श और दलित अस्मिता की राजनीति के दौर में एक दलित कार्यकर्ता के लिए दलित संगठन से अलग संगठन में सामाजिक या राजनीतिक काम करना आसान नहीं होता है। जो दलित कांग्रेस और भाजपा में शामिल होते हैं वे अपने स्वार्थ को आगे रखते हैं। उनका स्वार्थ वहां पूरा भी होता है। मैं सजप में रहा तो कुछ मूल्यों के चलते रहा। मैं किशन पटनायक, सच्चिदानंद सिन्हा और अपने गुरु डॉ. प्रेम सिंह के विचारों से प्रेरणा पाकर समाजवादी आंदोलन और सजप में शामिल हुआ था। सुनील भाई के सादगीपूर्ण जीवन और शमीम मोदी के जुझारू व्यक्तित्व का भी मेरे ऊपर काफी प्रभाव पड़ा।अब सजप नवउदारवादी सिद्धांत की राजनीति करने जा रही है। सजप को नवउदारवाद के सिद्धांत से जोड़ने वाले लोग सोचते होंगे कि अन्ना हजारे के सहारे वे कोई पद-प्रतिष्ठा पा लेंगे। एक-दो लोगों के लिए यह संभव हो भी सकता है। लेकिन साधारण समाजवादी कार्यकर्ताओं के साथ यह एक और छल होगा।

Thursday, September 8, 2011

टीम अन्‍नाः मिलिए पर्दे के पीछे के नायकों से


अगस्त 2011 का यानी अन्ना की क्रांति का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, तब शायद ही इस क्रांति के उन गुमनाम नायकों का उसमें ज़िक्र होगा, जिन्होंने दिन-रात एक करके अन्ना हजारे के लिए इस महाक्रांति की ज़मीन तैयार की. ये परदे के पीछे के वे नायक हैं, जो पिछले एक साल से इस आंदोलन की ज़मीन और जनमत तैयार कर रहे हैं. मीडिया की नज़रों में ये भले न आएं, लेकिन आज जिस महाक्रांति को जनता देख रही है, उसमें इनका सबसे बड़ा योगदान है. चौथी दुनिया ने टीम अन्ना के कुछ ऐसे सहयोगियों और उनके योगदान को आपके सामने लाने की कोशिश की है.....पूरी खबर के लिए इस लिँक पर क्लिल करेँ..... http://www.chauthiduniya.com/2011/09/team-anna-meet-the-heroes-behind-the-scenes.html

Thursday, June 23, 2011

लोकपाल: अन्ना टीम की दस गलतियां


आखिर क्या वजह रही कि अन्ना हजारे और उनकी टीम लोकपाल के मुद्दे पर अपनी बात सरकार से मनवा पाने में असफल रही. क्यों सरकार जनलोकपाल के महत्वपूर्ण प्रावधानों से सहमत नहीं हुई? अन्ना टीम की किस गलती ने महीनों की मेहनत पर पानी फेर दिया?

गलती नंबर 1.

ज्वायंट ड्राफट कमेटी की मांग बेवकूफी. सरकार को मिला जनता को बरगलाने का समय

गलती नंबर 2.

सिविलसोसायटी के सदस्यों के चयन में पारदर्शिता नहीं, नहीं लिया जनता का मत.

गलती नंबर 3.

भूषण पिता-पुत्र को कमेटी में लाना. नतीजतन, विवाद पैदा करने का मिला मौका.

गलती नंबर 4.

ज्वायंट कमेटी में नहीं शामिल किया विपक्ष के किसी नेता को

गलती नंबर 5.

पहले नेताओं से मांगा समर्थन, फिर मंच पर आने से किया मना, किया नेताओं से दुर्व्यवहार

गलती नंबर 6.

कमेटी की बैठक में सरकार लगातार इनकी मांग ठुकराती रही, फिर भी ये बैठक में जाते रहे

गलती नंबर 7.

संगठन को मजबूत नहीं बनाया. महज कुछ शहरों में कुछ स्थानीय कार्यकर्ता जुडे.

गलती नंबर 8.

छोटे शहर और ग्रामीण भारत को इस आंदोलन से जोड पाने की नही हुई कोशिश

गलती नंबर 9.

सडक से ज्यादा इंटरनेट, फेसबुक और एसएमएस पर ज्यादा छाया रहा यह आंदोलन

गलती नंबर 10.

राजनीति को गंदा बताया, लेकिन उसका कोई विकल्प प्रस्तुत कर पाने में असफल रहे

Monday, April 11, 2011

अन्ना भूखे थे, शाहरूख नाच रहा था


अन्‍ना, अनुपम और एक भांड. लोकपाल बिल के समर्थन में अन्ना हजारे हजारे के आमरण अनशन ने कम से कम इतना तो तय कर ही दिया कि अगर एक बुजुर्ग चंद दिनों भूखा रहकर सरकार पर भारी पड सकता है तो युवा चाहें तो क्‍या नहीं कर सकता. अन्‍ना की इस लडाई में अनुपम खेर, शबाना आजमी और पीयूष मिश्रा, यहां तक कि उर्मिला और दिया मिर्जा जैसे सितारे भी साथ देते दिखाई दिए. जब अनुपम खेर अन्‍ना के समर्थन में अपने विचार रख रहे थे तब उन्‍होंने अपनी जीवन की शुरूआती और क्‍लासिक फिल्‍म सारांश के एक दृश्‍य का जिक्र किया, जिसमें एक हताश बुजुर्ग अन्‍ना की तरह ए‍क मंत्री के सामने भ्रष्‍टाचार की बात कर रहा होता है. अनुपम ने इस मुहिम में अमिताभ बच्‍चन और शाहरुख खान को शामिल होने का निवेदन किया. अमिताभ ने तो समर्थन में अपना बयान जारी कर दिया लेकिन आपको पता है उस वक्‍त शाहरुख खान क्‍या कर रहा था. तब शाहरुख चेन्नई में आईपीएल 4 के ओपनिंग इवेंट की डांस रिहर्सल कर रहा था. जाहिर है जब भी शाहरुख को कहीं से मोटी रकम का ऑफर मिलता है, वह दुनियादारी छोडकर पैसा कमाने कि लिए निकल जाते हैं. फिर चाहे किसी की शादी में भांड बनाना हो या फिर किसी की मातमपुर्सी के माहौल को हाईक्‍लास बनाना हो. लेकिन जनहित से जुडी किसी भी मुहिम में यह स्‍टार हमेशा गायब रहता है. ऐसा नहीं है कि शाहरुख के आ जाने से अन्‍ना को कोई विशेष सहयोग मिल जाता या फिर अनुपम उन्‍हें कोई समाज सुधारक समझते हैं. अन्‍ना ने अपना अनशन सफल कर ही दिया, लेकिन अनुपम ने उन्‍हें तो इसलिए आने के लिए कहा गया था कि जब इस जन आंदोनन में आमिर समेत कई सितारे अपना मुनाफा छोडकर कुछ वक्‍त निकालकर जनता के बीच आ सकते हैं तो फिर जनता के पैसे से रोटी खाने वाला यह सितारा क्‍यों नहीं. यह बात सिर्फ शाहरुख के लिए ही नहीं है बल्कि ही उस स्‍टार के लिए है जो इस मुहिम में शामिल नहीं हुआ है. जैसे अक्षय अपनी फिल्‍म के प्रोमोशन में बिजी थे. शाहरुख अगर आईपीएल का तमाशा और अक्षय प्रोमोशन छोडकर इस मुहिम में शामिल होते तो उनका कद और बढता, लेकिन शाहरुख समेत कई अभिनेताओं को उस जनता की कोई फिक्र नहीं है जिसके पैसे और प्‍यार से वह आज स्‍टारडम का रुतबे के साथ ऐशो आराम की जिंदगी बसर कर रहे हैं. इस बात से इतना तो अंदाजा लग ही जाता है कि जो प्‍यार और जनता से इन सितारों को मिलता है, उसकी कीमत इन सितारों के लिए क्‍या है.

Wednesday, April 6, 2011

सरकारी लोकपाल विधेयकः भ्रष्‍टाचार के खिलाफ कमजोर सरकारी हथियार

http://www.chauthiduniya.com/2011/01/lockpal-vidheyak-bharastachar-ke-khilaf-kamjor-sarkari-hathiyar.html

एक मंत्री की वजह से देश की जनता को एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपये का चूना लग जाता है और वही जनता अगर उस भ्रष्ट मंत्री के ख़िला़फ आवाज़ उठाए तो बहुत संभव है कि उसे देशद्रोही बताकर सलाखों के पीछे कैद कर दिया जाए. यह भी संभव है कि उक्त भ्रष्ट मंत्री को अपने किए की कोई सज़ा भी न मिले. आज़ादी के बाद अब तक ऐसा कम ही सुनने को मिला कि किसी मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में सज़ा मिली हो.

Tuesday, March 8, 2011

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Friday, February 18, 2011

मोदी-ठाकुर आमने-सामने

भाजपा के बागियों या मुख्यमंत्री की मुखालफत करनेवालों पर कार्रवाई के मुद्दे पर उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ सीपी ठाकुर आमने-सामने हो गये हैं. मोदी बागियों पर कार्रवाई करने की बात कर रहे हैं, तो डॉ ठाकुर उन्हें मुक्त करने की बात कर रहे हैं. गुरुवार सुबह सहयोग कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत में मोदी ने साफ-साफ़ कहा कि भाजपा या सीएम विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों पर कार्रवाई तय है. बशर्ते कि उन पर मामला साबित हो जाये. पत्रकारों के लगातार सवाल किये जाने पर उन्होंने कहा कि इस मामले में अंतिम फै सला अनुशासन समिति ही लेगी. बताते चलें कि दो दिन पहले डॉ ठाकुर ने कहा था कि चुनाव में मिली रिकॉर्ड जीत को देखते हुए बागियों पर कार्रवाई नहीं होगी: (साभार: प्रभात खबर)

अब ज़रा इस लिंक को भी पढ़े...नवम्बर में बिहार चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद चाय दूकान पर प्रकाशित हुआ था:

http://chaydukan.blogspot.com/2010/11/blog-post_26.html

Tuesday, February 8, 2011

सरकारी लोकपाल बिल: एक धोखा


एक मंत्री की वजह से देश की जनता को एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपये का चूना लग जाता है और वही जनता अगर उस भ्रष्ट मंत्री के ख़िला़फ आवाज़ उठाए तो बहुत संभव है कि उसे देशद्रोही बताकर सलाखों के पीछे कैद कर दिया जाए. यह भी संभव है कि उक्त भ्रष्ट मंत्री को अपने किए की कोई सज़ा भी न मिले. आज़ादी के बाद अब तक ऐसा कम ही सुनने को मिला कि किसी मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में सज़ा मिली हो. अब सवाल उठता है कि आख़िर हमारी व्यवस्था में ऐसी क्या खामियां हैं, जो एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद भी आरोपियों की गर्दन तक क़ानून के लंबे हाथ नहीं पहुंच पाते. दरअसल, सीबीआई और केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी संस्थाएं बनाई तो इसलिए गई थीं कि वे निष्पक्ष रूप से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर सकें, लेकिन समस्या यह है कि इन दोनों संस्थाओं को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर सरकारी नियंत्रण में काम करना पड़ता है. फिर सीवीसी के पास सिवाय अनुशंसा देने के और कोई अधिकार है भी नहीं. सीबीआई की हालत भी किसी से छुपी नहीं है. केंद्र की सरकारें पिछले 40 सालों से लोकपाल विधेयक पारित कराने में असफल रही हैं. राज्यों में लोकायुक्त तो हैं, लेकिन उनकी स्थिति भी सफेद हाथी बनकर रह गई है. दूसरी ओर लोकपाल विधेयक अब तक लोकसभा में आठ बार पेश करने के बाद भी पारित नहीं कराया जा सका है.

बहरहाल, यूपीए-2 ने अभी लोकपाल विधेयक का प्रारूप तैयार किया है, जिसे जल्द ही पारित कराने की बात कही जा रही है. इस विधेयक की एक प्रति चौथी दुनिया के पास भी उपलब्ध है. लेकिन समाज का एक बड़ा एवं प्रबुद्ध वर्ग इस विधेयक से ख़ुश नहीं है और भ्रष्टाचार के ख़िला़फ इस सरकारी कवायद को महज खानापूर्ति मान रहा है. ऐसा मानने के पीछे लोगों के पास कुछ ठोस वजहें भी हैं. उनका कहना है कि सरकार द्वारा तैयार किए गए विधेयक की जद में केवल राजनेता ही आ रहे हैं, अधिकारियों और न्यायाधीशों के ख़िला़फ जांच करने का अधिकार लोकपाल को नहीं दिया गया है. ज़ाहिर है, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े पोषक यानी अफसरों के लिए यह किसी राहत से कम नहीं है. इसके अलावा इस विधेयक के अनुसार लोकपाल किसी के ख़िला़फ मुक़दमा चलाने की सलाह तो सरकार को दे सकता है, लेकिन ख़ुद किसी भ्रष्ट नेता के ख़िला़फ मुक़दमा नहीं चला सकता. लोकपाल को महज एक सलाह देने वाली संस्था बनाने की कोशिश की जा रही है. सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल इस विधेयक की खामियों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस तरह का लोकपाल अगर 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में प्रधानमंत्री से कहता कि ए राजा के ख़िला़फ मुक़दमा चलाना चाहिए तो क्या प्रधानमंत्री ऐसा करते? अभी 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में जो कुछ भी हुआ, उसे देखते हुए तो ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता. केजरीवाल लोकपाल विधेयक को महज एक शोपीस मान रहे हैं.

यही वजह है कि सिविल सोसायटी की तऱफ से भी एक नया लोकपाल विधेयक तैयार किया गया है. स्वामी रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, किरण बेदी, अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, सुनीता गोधरा, देवेंद्र शर्मा, कमल जायसवाल, प्रदीप गुप्ता, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े एवं पूर्व सीवीसी प्रत्यूष सिन्हा जैसे लोगों के सामूहिक प्रयासों से यह नया विधेयक तैयार किया गया है. इस नए मसौदे को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेजा गया है. सिविल सोसायटी द्वारा तैयार यह विधेयक कई मायनों में सरकारी विधेयक से ज़्यादा सक्षम है. इसमें लोकपाल को पूर्ण रूप से सरकारी नियंत्रण से बाहर रखने की बात है. किसी मामले में अगर लोकपाल चाहे तो ख़ुद मुक़दमा चला सकता है. साथ ही सरकारी धन की लूट या नुक़सान को वसूलने का अधिकार भी लोकपाल को दिया गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ बुलंद करने वाले सच के सिपाहियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी लोकपाल को देने की बात कही गई है. दरअसल, भ्रष्टाचार का कैंसर इतना फैल चुका है कि उसे मौजूदा सरकारी लोकपाल विधेयक के सहारे ख़त्म नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा सीबीआई के पास अधिकार तो हैं, लेकिन वह स्वतंत्र नहीं है और सीवीसी कहने को तो स्वतंत्र है, पर उसके पास अधिकार नहीं हैं. कुछ यही हाल सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल विधेयक का भी हो सकता है. यही कारण है कि सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि चाहते हैं कि एक स्वतंत्र लोकपाल का गठन हो, साथ ही सीबीआई, एंटी करप्शन ब्यूरो और सीवीसी जैसी संस्थाओं का विलय भी इसके साथ कर दिया जाए. इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि लोकपाल संस्था में विलय के बाद सीबीआई, एंटी करप्शन ब्यूरो और सीवीसी जैसी संस्थाएं ज़्यादा कारगर, निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम कर पाएंगी.

बहरहाल, सरकार जनता के इन सुझावों को माने या न माने, लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आम आदमी चुपचाप नहीं बैठने वाला है. बाकायदा इंडिया अगेंस्ट करप्शन नाम से एक संस्था बनाकर इसकी शुरुआत हो चुकी है और 30 जनवरी को बापू के शहीद दिवस पर दिल्ली के रामलीला मैदान में हज़ारों लोग जमा हो रहे हैं. भ्रष्टाचार के ख़िला़फअपनी आवाज़ बुलंद करने, जानबूझ कर आंख-कान बंद किए बैठी सरकार को नींद से जगाने के लिए. व़क्त रहते केंद्र सरकार को जनता का इशारा समझ लेना चाहिए.

  • सरकारी लोकपाल विधेयक में स़िर्फ राजनेता शामिल
  • भ्रष्ट अफसरों-जजों के ख़िला़फ नहीं हो पाएगी कार्रवाई
  • सिविल सोसायटी नाख़ुश, दिए कुछ सुझाव
  • कहा, लोकपाल के दायरे में अफसर-जज भी हों शामिल
  • सीबीआई, एसीबी, सीवीसी का हो लोकपाल में विलय