Tuesday, February 8, 2011

सरकारी लोकपाल बिल: एक धोखा


एक मंत्री की वजह से देश की जनता को एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपये का चूना लग जाता है और वही जनता अगर उस भ्रष्ट मंत्री के ख़िला़फ आवाज़ उठाए तो बहुत संभव है कि उसे देशद्रोही बताकर सलाखों के पीछे कैद कर दिया जाए. यह भी संभव है कि उक्त भ्रष्ट मंत्री को अपने किए की कोई सज़ा भी न मिले. आज़ादी के बाद अब तक ऐसा कम ही सुनने को मिला कि किसी मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में सज़ा मिली हो. अब सवाल उठता है कि आख़िर हमारी व्यवस्था में ऐसी क्या खामियां हैं, जो एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद भी आरोपियों की गर्दन तक क़ानून के लंबे हाथ नहीं पहुंच पाते. दरअसल, सीबीआई और केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी संस्थाएं बनाई तो इसलिए गई थीं कि वे निष्पक्ष रूप से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर सकें, लेकिन समस्या यह है कि इन दोनों संस्थाओं को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर सरकारी नियंत्रण में काम करना पड़ता है. फिर सीवीसी के पास सिवाय अनुशंसा देने के और कोई अधिकार है भी नहीं. सीबीआई की हालत भी किसी से छुपी नहीं है. केंद्र की सरकारें पिछले 40 सालों से लोकपाल विधेयक पारित कराने में असफल रही हैं. राज्यों में लोकायुक्त तो हैं, लेकिन उनकी स्थिति भी सफेद हाथी बनकर रह गई है. दूसरी ओर लोकपाल विधेयक अब तक लोकसभा में आठ बार पेश करने के बाद भी पारित नहीं कराया जा सका है.

बहरहाल, यूपीए-2 ने अभी लोकपाल विधेयक का प्रारूप तैयार किया है, जिसे जल्द ही पारित कराने की बात कही जा रही है. इस विधेयक की एक प्रति चौथी दुनिया के पास भी उपलब्ध है. लेकिन समाज का एक बड़ा एवं प्रबुद्ध वर्ग इस विधेयक से ख़ुश नहीं है और भ्रष्टाचार के ख़िला़फ इस सरकारी कवायद को महज खानापूर्ति मान रहा है. ऐसा मानने के पीछे लोगों के पास कुछ ठोस वजहें भी हैं. उनका कहना है कि सरकार द्वारा तैयार किए गए विधेयक की जद में केवल राजनेता ही आ रहे हैं, अधिकारियों और न्यायाधीशों के ख़िला़फ जांच करने का अधिकार लोकपाल को नहीं दिया गया है. ज़ाहिर है, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े पोषक यानी अफसरों के लिए यह किसी राहत से कम नहीं है. इसके अलावा इस विधेयक के अनुसार लोकपाल किसी के ख़िला़फ मुक़दमा चलाने की सलाह तो सरकार को दे सकता है, लेकिन ख़ुद किसी भ्रष्ट नेता के ख़िला़फ मुक़दमा नहीं चला सकता. लोकपाल को महज एक सलाह देने वाली संस्था बनाने की कोशिश की जा रही है. सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल इस विधेयक की खामियों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस तरह का लोकपाल अगर 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में प्रधानमंत्री से कहता कि ए राजा के ख़िला़फ मुक़दमा चलाना चाहिए तो क्या प्रधानमंत्री ऐसा करते? अभी 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में जो कुछ भी हुआ, उसे देखते हुए तो ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता. केजरीवाल लोकपाल विधेयक को महज एक शोपीस मान रहे हैं.

यही वजह है कि सिविल सोसायटी की तऱफ से भी एक नया लोकपाल विधेयक तैयार किया गया है. स्वामी रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, किरण बेदी, अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, सुनीता गोधरा, देवेंद्र शर्मा, कमल जायसवाल, प्रदीप गुप्ता, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े एवं पूर्व सीवीसी प्रत्यूष सिन्हा जैसे लोगों के सामूहिक प्रयासों से यह नया विधेयक तैयार किया गया है. इस नए मसौदे को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेजा गया है. सिविल सोसायटी द्वारा तैयार यह विधेयक कई मायनों में सरकारी विधेयक से ज़्यादा सक्षम है. इसमें लोकपाल को पूर्ण रूप से सरकारी नियंत्रण से बाहर रखने की बात है. किसी मामले में अगर लोकपाल चाहे तो ख़ुद मुक़दमा चला सकता है. साथ ही सरकारी धन की लूट या नुक़सान को वसूलने का अधिकार भी लोकपाल को दिया गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ बुलंद करने वाले सच के सिपाहियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी लोकपाल को देने की बात कही गई है. दरअसल, भ्रष्टाचार का कैंसर इतना फैल चुका है कि उसे मौजूदा सरकारी लोकपाल विधेयक के सहारे ख़त्म नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा सीबीआई के पास अधिकार तो हैं, लेकिन वह स्वतंत्र नहीं है और सीवीसी कहने को तो स्वतंत्र है, पर उसके पास अधिकार नहीं हैं. कुछ यही हाल सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल विधेयक का भी हो सकता है. यही कारण है कि सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि चाहते हैं कि एक स्वतंत्र लोकपाल का गठन हो, साथ ही सीबीआई, एंटी करप्शन ब्यूरो और सीवीसी जैसी संस्थाओं का विलय भी इसके साथ कर दिया जाए. इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि लोकपाल संस्था में विलय के बाद सीबीआई, एंटी करप्शन ब्यूरो और सीवीसी जैसी संस्थाएं ज़्यादा कारगर, निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम कर पाएंगी.

बहरहाल, सरकार जनता के इन सुझावों को माने या न माने, लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आम आदमी चुपचाप नहीं बैठने वाला है. बाकायदा इंडिया अगेंस्ट करप्शन नाम से एक संस्था बनाकर इसकी शुरुआत हो चुकी है और 30 जनवरी को बापू के शहीद दिवस पर दिल्ली के रामलीला मैदान में हज़ारों लोग जमा हो रहे हैं. भ्रष्टाचार के ख़िला़फअपनी आवाज़ बुलंद करने, जानबूझ कर आंख-कान बंद किए बैठी सरकार को नींद से जगाने के लिए. व़क्त रहते केंद्र सरकार को जनता का इशारा समझ लेना चाहिए.

  • सरकारी लोकपाल विधेयक में स़िर्फ राजनेता शामिल
  • भ्रष्ट अफसरों-जजों के ख़िला़फ नहीं हो पाएगी कार्रवाई
  • सिविल सोसायटी नाख़ुश, दिए कुछ सुझाव
  • कहा, लोकपाल के दायरे में अफसर-जज भी हों शामिल
  • सीबीआई, एसीबी, सीवीसी का हो लोकपाल में विलय

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