यह देश अनोखा है. यहां, भगवान के नाम पर जमीन लिखवाई जाती है. केस मुकदमे भी लडे जाते है. मंदिर में आए चढावे के बंटवारे के लिए अजीबो-गरीब तर्कों के साथ अदालत का सहारा लिया जाता है. बकायदा, इस पूरी प्रक्रिया में भगवान को याचिकाकर्ता भी बना दिया जाता है. अयोध्या मामले में भी रामलला खुद ही
- पुष्कर में ब्रह्मा-सावित्रि मंदिर विवाद
- शंकर जी के नाम पर जमीन रजिस्ट्री
- जमीन हथियाने के लिए सिद्धीविनायक पर आतंकी हमले का खतरा बताया
- अयोध्या मामले में रामलला खुद याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता थे. एक दिलचस्प कहानी पुष्कर में ब्रह्मा-सावित्रि मंदिर विवाद है. सावित्रि देवी मंदिर के पुरोहित बेनीगोपाल मिश्रा 2001 में इसलिए अदालत का दरवाजा खटखटाते है कि सावित्रि देवी मंदिर का चढावा ब्रह्मा जी के मंदिर के साथ न बांटा जाए और ब्रह्मा मंदिर के चढावे को सावित्री मंदिर के साथ बांटा जाए. इसके समर्थन में उनका तर्क था कि सावित्रि और ब्रह्मा दोनों अलग-अलग हो गए थे और इसलिए ब्रह्मा को अपनी विरक्त पत्नी को अपने चढावे में से एक हिस्सा देना चाहिए. सावित्री देवी मंदिर के वकीलों का कहना था कि चूंकि सावित्री मंदिर एक उंची पहाडी पर है जहां कम ही तीर्थ यात्री पहुंच पाते है जबकि ब्रह्मा मंदिर की आमदनी ज्यादा है और ब्रह्मा ने सावित्री के रहते दूसरी शादी की थी इसलिए सावित्री देवी को यह अधिकार है कि उन्हें निर्वाह व्यय मिले.दरअसल, एक पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार ब्रह्मा यज्ञ करने पुष्कर पहुंचे. उनकी पत्नी सावित्री समय रहते यज्ञ स्थल तक नहीं पहुंच सकी. मुहुर्त निकलता देख ब्रह्मा ने दूसरी शादी कर ली और अपनी नई पत्नी के साथ यज्ञ शुरु कर दिया. इसी बीच वहां सावित्री पहुंच गई. अपनी जगह दूसरी औरत को देख कर सावित्री देवी ने ब्रह्मा को शाप दिया कि पुष्कर के अलावा इस दुनिया में कहीं और तुम्हारी पूजा नहीं होगी. इसके बाद सावित्री, ब्रह्मा से अलग हो गई. कालांतर में पुष्कर में ही एक उंची पहाडी पर सावित्री देवी का मंदिर बना. अब यह घटना कब की है और इसकी सत्यता क्या है यह तो खुद ब्रह्मा जी ही बता सकते है लेकिन इन मंदिरों के पुरोहितों के लिए उक्त विवाद कमाने का एक जरिया जरूर बन गया. मजेदार तथ्य यह है कि उक्त घटना का इस्तेमाल कानूनी दांवपेंच के लिए भी किया गया.
भगवान के नाम पर जमीन रजिस्ट्री करा कर कैसे पुरोहित जी अपने आने वाली पीढियों को तृप्त कर जाते है इसकी एक मिसाल बिहार के गोपालगंज जिले के भोरे थाना की है. यह कहानी भोरे थाना के अंतर्गत शिवाला कल्याणपुर गांव की है. गांव के नाम के पहले ही शिवाला इसलिए लगा है क्योंकि इस गांव में शिव जी का एक बडा और प्राचीन मंदिर है. करीब 25-30 साल पहले मंदिर के पुरोहित जी ने मंदिर में स्थापित शंकर जी के नाम पर करीब 2 बीघे जमीन की रजिस्ट्री करवा ली. तब से आज तक, जो भी इस मंदिर का पुरोहित बनता है वही उस जमीन का मालिक होता है. कोई भी पुरोहित उस जमीन को बेच नहीं सकता. इसकी एक वजह भी है. अब शंकर जी बिक्री के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने तो आएंंगे नहीं.
इस देश में जमीन हथियाने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाए जाते है, यह सबको पता है. लेकिन सिद्धीविनायक मंदिर प्रबंधन ने जमीन हथियाने के लिए जो किया उसे तो मुंबई उच्च न्यायालय ने भी सिरे से खारिज कर दिया. दरअसल, संभावित आत्मघाती हमले का खतरा दिखा कर प्रबंधन ने मंदिर के चारों ओर एक चारदिवारी खडी कर दिया. स्थानीय लोग इस दीवार को हतवाने के लिए अदालत में चले गए. चूंकि इस दीवार की वजह से उस इलाके के ट्रैफिक व्यवस्था पर असर पड रहा था. जज ने अपने फैसले में कहा कि हम यह मानते है कि भगवान इंसान की रक्षा करते है न कि हम भगवान की रक्षा करते है. इसलिए अगर भगवान को खतर है तो क्यों न मंदिर को दूसरे जगह स्थानांतरित कर दिया जाए बजाए दीवार घेर कर ट्रैफिक व्यवस्था को बदहाल बनाने के. क्या अब भी आप नहीं मानेंगे कि भारत एक अनोखा देश है?