Wednesday, January 12, 2011

बदल दीजिए सरकार क्योंकि राहुल के मुताबिक महंगाई के लिए गठबंधन है जिम्मेदार



इसे महज इत्तेफाक़ ही कहिए...कि जब-जब राहुल गांधी यूनिवर्सिटीज के दौरे पर होते हैं...केन्द्र की यूपीए सरकार के सामने एक नई समस्या सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी रहती है...और इस बार तो कहर ढा रही है...महंगाई डायन...चलिए राहुल बाबा ऐसे परिवार और क्षेत्र (करियर के लिहाज से) से ताल्लुक रखते हैं कि उन्हें किसी डायन का कोई ख़तरा नहीं....लेकिन इस बार कॉलेज दौरों के दौरान उनसे पूछे जाने वाले सवालों में सबसे ज्यादा....इसी डायन से जुड़े रहे...राहुल बिल्कुल नहीं डरे...डरे भी काहे...कोई डायन दिख थोड़े रही है...अरे भाई डायन से जुड़ा सवाल ही है...सो हांक दिए...एक और बयान...राहुल बाबा ने खुले लफ़्जो में गठबंधन को महंगाई का जिम्मेदार बताते हुए...कांग्रेस की छवि को उज्ज्वल बनाए रखने की पूरी कोशिश की....ठीक वैसे ही जैसे कभी कवि हृदय अटल बिहारी वाजपेयी साहब हर नाकामयाबी का ठीकरा गठबंधन पर फोड़ा करते थे...

क्या राहुल राजनीति की ये अहम सीख कांग्रेस की धुर विरोधी पार्टी के एकमात्र प्रधानमंत्री से सीखी है...लेकिन बयान देने से पहले राहुल और उनकी टीम को थोड़ा बहुत तो तथ्यों को परखना ही चाहिए था...मसलन...देश के वित्त मंत्रालय की कमान किसके हाथ में है...प्रणब मुखर्जी साहब से पहले...पी. चिदंबरम भी कांग्रेस के ही थे...और मनमोहन सरकार वाली ये गठबंधन कोई पहली बार देश नहीं संभाल रही है...गत 22 मई को यूपीए की इस सरकार को देश ने इसके परफॉर्मेंस के आधार पर ही दोबारा कमान सौंपी है...पूरे मामले का सबसे अहम पहलू तो ये है कि देश की आज़ादी के बाद से अब तक आर्थिक नीतियों पर सबसे ज्यादा पकड़ किसी पार्टी की रही...है तो वो कांग्रेस ही है....और इस वक्त देश के प्रधानमंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे मनमोहन सिंह...एक प्रशासक बाद में हैं...एक अर्थशास्त्री पहले हैं...इतने के बावजूद महंगाई के लिए राहुल बाबा गठबंधन को जिम्मेदार बता रहे हैं...तो यकीनन वो ये बताना चाह रहे हैं कि...देश की जनता ने 2010 के आम चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन को जनादेश देकर गलती की है...

पिछले कुछ महीनों से महंगाई ने जिस तरह पूरे देश का ज़ायका बिगाड़ रखा है...उससे निपटने का राहुल का ये तरीका...कितना सही है...इसका फैसला तो जनता करेगी ही...लेकिन राहुल बाबा को बढ़ती महंगाई के पीछे गठबंधन की भूमिका के बारे में जनता को क्या बताएंगे...कि गठबंधन का कितना और क्या दोष है...अगर वाकई गठबंधन में खामियां हैं...तो यूपीए की पहली सरकार के दौरान ऐसा कुछ क्यों नहीं हुआ...राहुल के बयान से लगता है कि उन्हें एब्सोल्युट पॉवर की ख्वाहिश कहीं ज्यादा परेशान कर रही है...तभी वो तकनीकी पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर...देशवासियों को भरमाने में जुटे हैं... लेकिन भईया राहुल...बिहार जैसे बीमारू राज्य कहे जानेवाले सूबे की जनता जब...होशियारी भरा फैसला सुनाते हुए...विकास के नाम पर नीतीश कुमार की सरकार को जनादेश दे सकती है...तो यकीन मानिए...समूचे भारत की जनता का बौद्धिक स्तर बिहार की जनता से कहीं बेहतर है...और वो राहुल बाबा के बयानों पर आंख बंद कर भरोसा करे...इसमें शक है....आगे तो हम यही कहेंगे कि....राहुल बाबा तो राहुल बाबा हैं...उनको कौन समझाए...वो जिस पर चाहे इल्जाम लगाएं...

चाय दुकान से एक आम भारतीय

ABHISHEK PATNI

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