Wednesday, January 12, 2011

दिल्ली विश्वविद्यालय: शिकारियों के बीच घिरी एक लड़की



(डीयू में हुए यौन उत्पीडन मामले की सच्चाई बता रहे हैं दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉक्टर प्रेम सिंह. डॉक्टर सिंह समाजवादी जन परिषद से जुडे है और सामाजिक मुद्दों पर उनकी बेलाग टिप्पणी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं औरअखबारों में छपती रहती है. चाय दुकान पर उनके विचार से हम लगातार अवगत होते रहेंगे)

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा देश और दुनिया में है। राजधनी में स्थित होने के चलते आशा की जाती है कि वहां यौन उत्पीड़न का मामला होने पर समयबद्ध कार्रवाई होगी। अगर शिक्षकों द्वारा छात्रा के यौन उत्पीड़न का मामला हो तो विश्वविद्यालय प्रशासन जल्दी से जल्दी जांच और न्याय सुनिश्चित करेगा ताकि छात्रा की पढ़ाई और छवि पर असर न पड़े। आरोपियों को जांच पूरी होने तक सभी जिम्मेदारी के पदों से हटा दिया जाएगा ताकि वे अपनी हैसियत का दृरुपयोग करके जांच को प्रभावित न कर सकें। लेकिन अपफसोस की बात है कि हिंदी विभाग में दो साल पहले प्रकाश में आए तीन शिक्षकों द्वारा अपनी एक छात्रा के यौन-उत्पीड़न के मामले में छात्राा को अभी तक न्याय नहीं मिला है। विश्वविद्यालय प्रशासन से निराश होकर पीड़िता दिल्ली उच्च न्यायालय में न्याय पाने की आस में गई है। यह लेख लिखने का हमारा आशय उस मानसिकता को रेखांकित करना है जो आधुनिकता और प्रगतिशीलता के बावजूद हमें स्त्राी-विरोध्ी बनाए रखती है। यह सच्चाई स्वीकार करके ही हम स्त्राी-उत्पीड़न के मामलों में कुछ सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं। हम पहली बार इस मामले पर अपनी बात रख रहे हैं।

पीड़िता ने सितंबर 2008 को हिंदी विभाग के तीन शिक्षकों प्रोफेसर अजय तिवारी, प्रोफेसर सुधीश पचौरी और प्रोफेसर रमेश गौतम के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। वह विश्वविद्यालय प्रशासन का होस्टाइल रुख देख कर महिला आयोग और तत्कालीन मानव संसाधन मंत्राी अर्जुन सिंह के पास भी गई। विश्वविद्यालय की सर्वोच्च एपेक्स समिति से जांच कराने की लड़ाई लड़ी। धमकियों के बीच सुरक्षित वातावरण प्रदान करने और जांच पूरी होने तक तीनों आरोपियों को जिम्मेदारी के पदों से मुक्त रखने की बार-बार लिखित अपील कुलपति से की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। तब से करीब अढ़ाई साल बीत चुके हैं और पीड़िता कोर्ट की शरण में गई है। कोर्ट ने उसका मामला स्वीकार कर लिया है। इसके पहले वह पीएच.डी. के दाखिले में की गई अनियमितता के खिलाफ भी कोर्ट में जा चुकी है। वह मामला भी कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था और उस पर सुनवाई चल रही है।

इस लंबी अवधि का पूरा ब्यौरा यहां नहीं दिया जा सकता। जिस एक आरोपी प्रोफेसर अजय तिवारी को बर्खस्त करने का निर्णय कार्यकारिणी समिति ईसी ने डेढ़ साल पहले लिया था वह भी अभी तक लागू नहीं किया गया है। उल्टे इस साल मई में एपेक्स समिति ने पीड़िता पर असहयोग करने का अरोप लगा कर मामले को बंद कर दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन, उत्पीड़कों और उनके समर्थकों ने आरोपियों को बचाने और पीड़िता को ध्वस्त करने के वे सभी हथकंडे अपनाए जिनका ऊपर जिक्र किया गया है। तीनों आरोपियों में पहले दो के विभाग में आने से पहले न दोस्ताना संबंध थे न विचारधारात्मक। तीनों में परिपक्व आयु में दांतकाटी रोटी होने का सबब स्वार्थ और भ्रष्टाचार था। उनमें किसका क्या स्वार्थ था और कौन यौन उत्पीड़क और कौन आर्थिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचारी, इससे इस सच्चाई पर फर्क नहीं पड़ता कि तीनों एकजुट होकर सब कर रहे थे। दिल्ली विश्वविद्यालय के पिछले कुलपति अपराधी दिमाग के शख्स हैं। बतौर कुलपति नियुक्ति से लेकर कोबाल्ट मामले तक कितने ही ऐसे प्रकरण हैं जो उनकी आपराधिक वृत्ति का पता देते हैं। उस ब्यौरे में हम यहां नहीं जाएंगे। वह प्रैस में आ चुका है, यूनिवर्सिटी टुडे और चौथी दुनिया में विशेष स्टोरी भी आई हैं। हमने भी हिंदी विभाग में पीएच.डी. के दाखिलों में की गई अनियमितताओं के मामले में विभागाध्यक्ष के रूप में प्रोफेसर रमेश गौतम और प्रोफेसर सुध्ीश पचौरी को बचाने के कुलपति के कारनामों का खुलासा प्रैस के सामने किया

पिछले दिनों स्त्राी-विरोध्ी साक्षात्कार देने के चलते चर्चा में आए महात्मा गांध्ी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति से अजय तिवारी को रिलीव करने को कहा ताकि वे उन्हें अपने यहां रख सकें। सुना है वे स्वयं चलकर आए थे। लेकिन तब तक सुध्ीश पचौरी और रमेश गौतम से कुलपति का सौदा हो चुका था। दोनों को पूरा बचाने के लिए अजय तिवारी को पूरा पफंसाना जरूरी था। यहां बता दें, मामला प्रकाश में आने पर तीनों आरोपियों ने मिल कर बचाव की रणनीति बनाई थी। पिफर अजय तिवारी को अकेला छोड़ दिया गया। अब रमेश गौतम की बारी है। पचौरी अपने गले में पफंदा कसते देख उन्हें अकेला छोड़ देंगे। उत्तर-आध्ुनिक न्याय का यही तकाजा है!

21 तारीख को कुलपति द्वारा यौन शोषण के आरोपी सुधीश पचौरी को डीन ऑफ कॉलेजेज बनाने के विरोध में हुए हिंदी विभाग में यौन उतपीड़न के खिलाफ संघर्ष समिति के प्रतिरोध मार्च के दौरान बांटे गए पर्चे में लिखा है कि एपेक्स समिति को यौन शोषण के मामले में स्त्राी पक्ष के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। लेकिन समिति समाज से बाहर नहीं है। जो समाज इस कदर संवेदनहीन और स्वार्थी हो, उसमें कड़े से कड़े कानूनों के बावजूद यौन उत्पीड़न की शिकार स्त्रिायों को पूरा न्याय मिल पाना असंभव है। पीड़िता ने कुछ दिन पहले हमें कहा, सर मुझे तो लगता है यहां ज्यादातर शिक्षक नहीं, शिकारी हैं। एपेक्स समिति, कुलपति, महिला आयोग, मंत्राी, विजीटर सब मिल जाते हैं। मैं शिकारियों के बीच फंस गई हूं। वाकई, इन ऊंचे खेलों में एक अदना पीड़िता क्या खाकर टिकेगी? थोड़े-से आदर्शवादी और निडर नवयुवतियों और नवयुवकों, जिनमें ज्यादातर छोटे वामपंथी समूहों से हैं, ने हिंदी विभाग में यौन उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष समिति बना कर उसका साथ न दिया होता तो वह कब की हार चुकी होती!

भला हो प्रशांत भूषण का। पीड़िता की गुहार उन तक पहुंची तो उन्होंने पीड़िता से बिना मिले, बिना उसकी जाति, इलाका, आर्थिक हैसियत जाने उसके द्वारा कोर्ट में दायर पीएच.डी. के प्रवेश में हुई अनियमितताओं का मामला देखना स्वीकार कर लिया है। यह प्रशांत भूषण ही कर सकते थे। अब विश्वविद्यालय प्रशासन और पूर्व विभागाध्यक्ष व वर्तमान डीन प्रोफेसर सुधीश पचौरी के कान खड़े हैं कि कैसे बचा जाए। अगर प्रशांत भूषण ने छात्राा के यौन उत्पीड़न के मामले को देखना भी स्वीकार कर लिया तो संभावना है पीड़िता को लंबे संघर्ष के बाद न्याय और उत्पीड़िकों को दंड मिल जाए

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