Tuesday, August 20, 2013

प्याज, पब्लिक और पॉलिटिक्स

पूरे देश में प्याज आम आदमी को आठ-आठ आंसू रूला रहा है। लेकिन, देश की राजधानी में यही प्याज कुछ ख़ास लोगों के लिए मौक़ा है पैसे ख़र्चने का, कुछ को ख़ुश होने के लिए और कुछ के लिए मुद्दा है पॉलिटिक्स के लिए । हम बात करने जा रहे हैं तीसरे तरह के लोगों की जो इन दिनों प्याज पर जमकर कर रहे हैं पॉलिटिक्स क्योंकि कुछ को बदला लेना है और कुछ को अपने विश्वास को आजमाना है कि इतिहास दुहराता है।दिल्ली की कांग्रेस सरकार बाज़ार से कम क़ीमत पर प्याज बेचने के लिए पूरे सूबे में एक हज़ार से ज़्यादा स्टॉल लगवाया है। इन स्टॉल्स पर प्याज 45 रूपए प्रति किलोग्राम की दर से प्याज आम लोगों को मुहैया कराया जा रहा है। सरकार को लग रहा था कि वो आम लोगों के घाव पर मरहम लगा रही है और अपने इस क़दम से आत्म मुग्धता की शिकार होने ही वाली थी कि उसे पता लगता है कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता उनसे पांच रूपए सस्ती प्याज की स्टॉल्स लगा कर उनके किए-कराए का सत्यानाश करने को आतुर है।अब राजनीति के खेल में हार मानने की रवायत तो है नहीं तो मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की पीठ थपथपाने के लिए अजीबो-ग़रीब दलील दी। बक़ौल मुख्यमंत्री दिल्ली में प्याज 80 रूपए बिकने लगा तो लोगों ने आसमान सिर पर उठा लिया लेकिन 140 रूपए बिकने वाला सेव 40 से 50 रूपए प्रति किलोग्राम बिक रहा इसकी कोई चर्चा नहीं कर रहा है। माननीया मुख्यमंत्री जी के वक्तव्य को सुनकर झटका नहीं लगा बल्कि वो क़िस्सा याद आ गया जिसमें भूख से त्रस्त जनता से उनका नेता पूछता है कि रोटी नहीं है तो लोग केक खाकर गुज़ारा क्यों नहीं करते।
प्याज और सेव की कहानी की जड़ तक पहुंचने के बजाए मदारी बनकर लोगों को राजनीति का खेल दिखाने वालों से कोई ये तो पूछे कि कहां से आ रहा है इन तीन दलों के पास इतना महंगा प्याज? क्या वो पार्टी को चंदे में मिले पैसे से लोगों को प्याज दे रहे हैं? यदि हां तो फिर मुफ्त में ही क्यों नहीं दे रहे हैं? और अगर व्यापार कर रहे हैं, तो इन तीनों ही पार्टी को सप्लाई कहां से हो रही? इस बात का पता लगाना निहायत ही ज़रूरी है। क्योंकि जमाखोरी के खेल में सभी शामिल हैं, ये दिखने लगा है और जनता को ये जानने का हक़ है कि उनके निवाले से प्याज छिनने वालों में उनके नुमाइंदों की भूमिका कितनी है?

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