Friday, August 30, 2013

प्रौद्योगिकी और आम आदमी

परिचय  साउदी अरब में रह रहे ईरानी गायक अली वर्दी, हिन्दी गाना गा कर, रातों-रात पूरी दुनिया में मशहूर हो जाते हैं। इंटरनेट के ज़रिए उनके गाने के प्रसार ने तमाम पुराने मिथक ध्वस्त कर दिए हैं। हुनरमंद लोगों के लिए आज पूरी दुनिया में बराबर मौक़े हैं। फिर चाहे वो किसी भी मुल्क़ का हो, किसी भी मज़हब को माननेवाला हो, किसी भी जाति या लिंग का हो। हर तरह की वर्जनाएं, प्रौद्योगिकी यानी तकनीक के फैलते जाल के सामने, टूटती जा रही हैं। तभी तो हर नामुमक़िन लगने वाली चीज़ मुमक़िन होने लगी है। आम आदमी की ज़िन्दगी हर गुज़रते दिन के साथ पहले से ज़्यादा सुविधाजनक होती जा रही है
अभी ज़्यादा वक़्त नहीं गुज़रा है, जब पूरी दुनिया में हमारे देश भारत की छवि एक ऐसे राष्ट्र की थी जो एक साथ कई-कई शताब्दियों में जीता था। लेकिन, प्रौद्योगिकी में हुए विकास ने एकबारगी भारत जैसे देश को भी विकसित देशों की तरह एक शताब्दी में जीने को बाध्य कर दिया है। और ये बाध्यता इतनी मौलिक और इतनी ग्राह्य है कि आज गांव में रहने वाला अनपढ़ इन्सान भी अपनी ज़िन्दगी बग़ैर मोबाइल फोन के अधूरा पाता है। हर गुज़रते दिन के साथ  विज्ञान और प्रौद्योगिकी में विकास हो रहा है और हर दिन प्रौद्योगिकी का दायरा आम आदमी के बीच बढ़ता जा रहा है। तकनीक में तेजी से हो रहे विकास के अपने फ़ायदे और नुक़सान हैं।  यह सही है कि तकनीकी विकास से देश का विकास हुआ हैदेश में शहरों की संख्या बढ़ी है, साथ ही बढ़ी है शहरी आबादी भी। लेकिन इन सबके बावज़ूद, यह भी एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि हमारे देश की आधी से ज़्यादा आबादी आज भी गांवों में रहती है। सही मायने में आम आदमी का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी ग्रामीण है। यहां ये बताना सबसे ज़रूरी है कि तकनीकी विकास ने सिर्फ शहरी आबादी को फायदा नहीं पहुंचाया है बल्कि ग्रामीणों को भी इसका सीधा फ़ायदा मिला है। हक़ीक़त तो ये है कि प्रौद्योगिकी के विकास का मानदंड ही हमारे देश में यह है कि जिससे ज़्यादा से ज़्यादा आबादी को फायदा हो। और इसी मानदंड के तहत देश की सबसे बड़ी आबादी यानी किसानों के हक़ में प्रौद्योगिकी का उपयोग अहम हो जाता है। साथ ही अहम हो जाता है प्रौद्योगिकी के ज़रिए खेती को और बेहतर बनाना।
किसानों के लिए उपयोगी प्रौद्योगिकी तमाम दूसरे क्षेत्रों की तरह आज कृषि क्षेत्र का विकास भी प्रौद्योगिकी आधारित हो चला है। जिस तरह तकनीकी क्रांति ने आम आदमी का जीवन बदल दिया है ठीक उसी तरह कृषि प्रधान देश भारत में भी प्रौद्योगिकी सूचना क्रांति ने कृषि के काम को न केवल आसान बना दिया है बल्कि देश को उन्नत कर दुनिया के चुनिन्दा देशों में शामिल करवा दिया है। इस सूचना क्रांति में अहम योगदान दे रहा है, कम्प्यूटर आधारित सूचना प्रौद्योगिकी पक्ष। हम सब जानते हैं शुरुआती दौर में बेतार यंत्रमोर्सकोड और टेलीप्रिन्टर ही सूचना के अंग हुआ करते थे। जानकारी के लिए हम इन्हीं तकनीकों पर निर्भर थे। वहीं आज रेडियोट्रांजिस्टरटेलीफोनमोबाइल,वहीं आज रेडियो, ट्रांज़िस्टर, टेलीफोन, मोबाइल,  कम्प्यूटरटेलीविजनसेटेलाईटइन्टरनेटवीडियो फोनडिजिटल डायरी सभी सूचना क्रांति के उन्नत अंग हैं जिसने प्रौद्योगिकी को नया मायने दिया है। इन प्रौद्योगिकी के ज़रिए जानकारी के साथ सूचना संग्रहण का परिदृश्य ही बदल गया है। किसी भी तरह की जानकारी या ख़बर, इन यंत्रों के जरिए, कुछ मिनटों में ही गाँव-गाँव में किसान हो या मज़दूर तक पहुँच जाती है।
सही वक़्त पर सही जानकारी ने ही भारत में कृषि क्षेत्र को उन्नत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। चाहे वर्षा का पूर्वानुमान लगाना हो या कि फसल की उन्नत तकनीकी देखभाल हो कम्प्यूटर के युग में यह काम सरल सहज और आसान हो गया है। गाँव-गाँव में मोबाइल टॉवर कम्प्यूटर इन्टरनेट के सतत् जाल से उपयोगी सूचना का सम्प्रेषण आसान हो गया है। इसका जीता जागता उदाहरण भारत में हरित क्रांति का लहलहाता परचम है। हमारे कृषकों ने हरित क्रांति से अपने खेतों में जो सोना उगाया हैउसी के दम पर हम न केवल खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हैंबल्कि उनका निर्यात भी करने में सक्षम हैं। यह उत्तम दिशा निर्देशनयोजना क्रियान्वयन का उत्कृष्ट वैज्ञानिक परिणाम का नतीजा है कि अत्याधुनिक कम्प्यूटर देश में फैले विभिन्न विक्रय केन्द्रों के आँकड़े नतीजों के आधार पर सफल उत्पादन कर कृषि को व्यवसाय का दर्जा भी दिलवा रहे हैं।
खेत की उपज बढ़ाते प्रौद्योगिकी डाटा विश्लेषण जिसमें मौसम उपग्रह के अनुप्रयोग से न केवल मौसम की सटीक स्थिति पता चलती है
बल्कि खेती में उन्नत प्रौद्योगिकी के प्रयोग की भी मदद मिल जाती है। अधिक फसल कम लागत बहुत कम नुकसान इस सूचना क्रांति का ध्येय बन गया है। आधुनिक कृषि यंत्र न केवल कम्प्यूटर द्वारा संचालित होते हैं बल्कि खेती योग्य जमीनउर्वराजल सिंचन योजना और आर्थिक उपयोगिता के बारे में भी भली प्रकार से जानकारी प्रदान कर हमारी मदद करते हैं। जलवायु के साथ-साथ पूरे देश में बदलते मौसम के पूर्वानुमान के साथ मृदा प्रौद्योगिकी और संरक्षणफसल का चयनबीजारोपण की आधुनिकतम प्रौद्योगिकी की जानकारी भी देते हैं। मृदा में कीटनाशक का प्रयोग कितने प्रतिशत तक सही होगा इसकी जानकारी भी कम्प्यूटर डाटा कार्यक्रम से चंद मिनटों में मिल जाती है।
आज नए सूचना संचार साधनों के विकास के साथ-साथ कम्प्यूटर के उपयोग की माँग भी बढ़ती जा रही है। इससे न केवल समय की बचत होने लगी है बल्कि उत्पादकता में वृद्धि भी दृष्टिगोचर हो रही है। आजकल सरकार भी इस प्रौद्योगिकी को सरल बनाकर किसानों को उनके ही गाँव में न केवल प्रशिक्षित कर रही है बल्कि उनको जमीनखसरा रिकार्ड इत्यादि को देखने और उसकी प्रतिलिपि भी तत्काल घर बैठे उपलब्ध करवा रही है। घर बैठे किसान अपने मोबाइल की स्क्रीन पर जमीन का रकवाकृषि जोतबोई गई फसल का रिकार्डमध्यप्रदेश की भू-अभिलेख की साइट पर जाकर देख लेता है और बाकायदा समय-समय पर उसे सरकारी जानकारी भी मिलती है। इससे अच्छी पारदर्शिता पूर्ण जानकारी किसानों को वक़्त पर मिल जाती है। दक्षता के साथ संपूर्ण जानकारी सिर्फ सूचना क्रांति से ही संभव थी जिसने सरकार और किसान को भावनात्मकसूचनात्मकसंदेशात्मक तौरपर आपस में एक कर दिया।
उपज बढ़ाने में सहायक मौसम का पूर्वानुमान किसान डाटा सेंटर में स्वचलित मौसम केन्द्रस्वचलित वर्षा मापक यंत्र से भी किसान परिचित हो गए है। यह यंत्र सोलर बैटरियों की सहायता से कम्प्यूटर नेट के ज़रिए हर पल के मौसम का हाल पूना स्थित केन्द्र पर संगणित हो मौसम विभाग की वेबसाइट पर भी उपलब्ध रहती है। इसी प्रकार कृषि मौसम एकक सलाह हर राज्य में राज्य के मौसम केन्द्र से प्रत्येक मंगलवार और शुक्रवार को आनेवाले पाँच दिनों के लिए जारी की जाती है। इसमें राज्य की भौगोलिक संरचना तथा बोई जाने वाली फसलों के लिए मौसमीय तत्वकृषि कॉलेजों की सहायता से बीज चयन बचाव के तरीकेकीटनाशकों का छिड़काव एक संयुक्त समाचार प्रसारण के जरिए किसानों को उन्नत कृषि से सीधे जोड़ने का प्रयास करती है।
इसमें मौसम विज्ञान विभाग की वेबसाइट राज्य के प्रसारण केन्द्र क्रमशः आकाशवाणी और दूरदर्शन केन्द्रसमाचार पत्र जिला तहसील स्तर के कृषि अधिकारीई-मेलएस.एम.एस. की सहायता से संदेश और सूचना प्रदान कर देश के किसान भाइयों को प्रौद्योगिकी उन्नत बनाने में सरकार की मदद करते हैं। साथ ही किसानों द्वारा मौसम विभाग की टोल फ्री सेवा 18001801717 पर पूरे समय उपलब्ध जानकारी का फोन द्वारा लाभ उठाया जाता है। कुल मिलाकर यह देखा गया है कि आज मानव जीवन में जो जगह कम्प्यूटर की है वही जगह कृषि क्षेत्र में किसानों के लिए कम्प्यूटर के प्रयोग ने बना ली है और उन्नत किसान ने कृषि क्षेत्र में भारत को सूचना क्रांति के साथ दुनियाभर में अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया है जो कृषि क्षेत्र में सुखद भविष्य की ओर एक क़ामयाब क़दम है।  
प्रौद्योगिकी आधारित वित्तीय समावेशन के जरिए गांव का विकास  कृषि और उससे जुड़े व्वसाय देश की महत्ता और ज़रूरत को ही देखते हुए सरकार ने ग्रामीण भारत को सुदृढ़ करने के लिए वित्तीय समायोजन यानी फिनान्सियल इन्क्लूज़न योजना बनाई है। इस योजना के तहत गांव के हर घर में कम-से-कम एक व्यक्ति का बचत खाता बैंक में ज़रूर हो। साल 2008 से लागू हुए भारत सरकार के अहम योजना को साकार करने के दायित्व को सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंक बखूबी अंजाम दे रहे हैं। इस योजना के प्रथम चरण में सभी बैंकों को 73,000 गांवों के नागरिकों तक बैंकिंग सुविधा पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई है। इस योजना के तहत गांवों तक पहुंचने के लिए बैंकों को ब्रान्च खोलने की ज़रूरत नहीं है। एक महंगी ग्रामीण शाखा की स्थापना करने के बजाय कोई बैंक किसी ग्रामीण क्षेत्र में सिर्फ अपने एक 'बैंकिंग संवाददाता' को नियुक्त करता है। वह बैंकिंग संवाददाता कोई भी हो सकता है।उदाहरण के लिए आप किसी किराना स्टोर के मालिक को ही ले लीजिए जिसे किसी बैंक ने एक बैंकिंग संवाददाता के रूप में नियुक्त किया है। वह बैंकिंग संवाददाता 20,000 रुपये की लागत वाले 'नियर फील्ड कम्युनिकेशंस' फोन, एक स्कैनर, एक थर्मल प्रिंटर की मदद से ग्राहकों को बैंक संबंधी सूचनाओं का विवरण मुहैया कराता है। उस फोन में वायरलेस कनेक्शन होता है जो वास्तव में बैंक के सर्वर से जुड़ा होता है। इसके जरिए ग्राहकों से जुड़े सभी विवरणों को भेजा जाता है। लिहाजा, किसी ग्रामीण शाखा की स्थापना में 3 से 4 लाख रुपये या उससे ज्यादा खर्च करने के बजाय बैंक महज 20,000 रुपये की नाममात्र की राशि पर ही वित्तीय समावेशन के काम को अंजाम दे रहे हैं। तुलानात्मक रूप से बड़ी आबादी वाले गांवों के लिए एटीएम जैसी मशीनों (कियॉस्क) का भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके लिए गांव के पढ़े-लिखे लोगों भी मदद कर रहे हैं। इस तरह हर गांव के सभी परिवारों को बैंक के जरिए जोड़ा जा रहा है।
बढ़ती जागरूकता और भागीदारी   सूचना क्रांति के इस दौर में सूचनाएं और ख़बरें तेज़ी से एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंच रही हैं और तकनीकी विकास ने ये मिथक भी तोड़ दिया है कि जो पढ़े-लिखे हैं जानकारी उनतक ही पहुंचेगी। रेडियो और टेलीविजन के माध्यम से एक अनपढ़ व्यक्ति भी जानकारी हासिल कर पाने में कामयाब है। मोबाइल फोन के बढ़ते इस्तेमाल ने तो सूचना के आदान-प्रदान को निहायत ही आसान कर दिया है। छोटी-मोटी हर ज़रूरतों के लिए अपनाए जा रहे पारंपरिक तरीके ख़त्म होने लगे हैं। फिर चाहे ट्रेन में टिकट बुकिंग की बात हो या बैंक से पैसे निकालना  या जमा कराना। हर कुछ इंटरनेट और मोबाइल फोन के ज़रिए पहले से कहीं आसान तरीके से मुमक़िन है।
 तकनीकी उन्नयन और उपलब्धता के नुक़सान
तकनीक के ज़रिए बढ़ता अपराध – तकनीक के विकास का जितना फ़ायदा आम आदमी को हुआ है, उससे कहीं ज़्यादा फ़ायदा अपराधी उठा रहे हैं। ख़ास तौर पर इंटरनेट के ज़रिए होने वाले अपराधों की तादाद में ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ है। भोले-भाले लोगों को करोड़ों का ख़्वाब दिखा कर उनके एकाउंट से रक़म उड़ालेने की ख़बर हर दिन अख़बार में देखने को मिलते हैं। इंटरनेट और मोबाइल फोन के इस्तेमाल करने वाले हर शख़्स को इस तरह के मेल या कॉल आते हैं। इतना ही नहीं हैकिंग के ज़रिए बढ़ते अपराध का निशाना आम आदमी ही ज़्यादा हो रहे हैं। ये बात और है कि तकनीकी दक्षता में कमी के साथ-साथ सतर्कता में कमी और लालच इस तरह के शिकार लोगों की असली वजह है। बढ़ता आलस – हाल ही में एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने सर्वेक्षण में पाया कि पहले की तुलना में इंसानों की कर्मठता में कमी आई है। और संस्था ने इसके लिए ज़िम्मेदार तत्वों की पहचान भी की है जिनमें सबसे अहम बताया गया है प्रौद्योगिकी में हुए उन्नयन को। जी हां, ये बात सौ फीसदी सही है कि प्रौद्योगिकी में आई गुणात्मक सुधार ने हमारे मेहनत करने के जज़्बे पर ख़ासा असर डाला है। हमारी क्षमता-दक्षता भी इससे प्रभावित हुई है। इतना ही नहीं हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में लगातार हो रही गिरावट की भी एक वज़ह यही है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि प्रौद्योगिकी का फ़ायदा हम अपने आप की शर्त पर ही उठा रहे हैं। कमज़ोर होती पीढ़ी – कैलकुलेटर, कंप्यूटर, इंटरनेट, आई-पैड, मोबाईल फोन, इन तमाम चीजों ने निःसंदेह पूरी दुनिया को एक गांव में बदल कर रख दिया है। लेकिन सूचना क्रान्ति के इन तमाम अवयवों पर हमारी नई पीढ़ी ज़रूरत से ज़्यादा निर्भर होती जा रही है। नतीज़तन उनकी लिखने-पढ़ने की आदत कम से कमतर होती जा रही है साथ ही साधारण जोड़-घटाव करने में भी वो ख़ुद को असहज पा रहे हैं। मोबाइल फोन और आई-पैड की टच स्क्रीन सुविधा ने तो हाथ कि लिखावट तक बुरी तरह प्रभावित किया है। वहीं इंटरनेट से बढ़ती नज़दीकी ने युवाओं को कमरे में बंद होने को मजबूर कर दिया है। नतीज़तन उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग – रेफ्रिजरेटर, एयर-कंडीशनर, कूलिंग प्लांट, थर्मल पॉवर प्लांट, न्यूक्लियर पॉवर प्लांट इन तकनीकी शब्दों को पढ़ने में जितनी तकलीफ़ हमारी जीभ को होती है, उससे कहीं ज़्यादा तकलीफ़देह है इनकी मौज़ूदगी। ऊपर बताए गए तमाम नाम धरती के वातावरण को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुंचा रहे हैं। जिसका सीधा असर हम पर पड़ रहा है या आनेवाले दिनों में पड़ेगा फिर चाहे बड़े-बड़े ग्लेशियर का पिघलना हो या ओजोन परत में छिद्र का बढ़ता जाना इन सबकी वज़ह सिर्फ और सिर्फ एक है, वो है ग्लोबल वार्मिंग।  रेडिएशन और इलेक्ट्रॉनिक कचरा – माइक्रोवेव ओवन में रेडिएशन के ज़रिए खाना पकाया जाता है। निःसंदेह समय की बचत तो होती है, लेकिन स्वास्थ्य के लिहाज़ से खाना कितना बेहतर होता है इसकी पड़ताल शायद ही कोई करता है। ठीक इसी तरह मोबाइल फोन से निकलने वाले ध्वनि और दूसरी तरंगे स्वास्थ्य को कितना प्रभावित कर रही हैं बग़ैर इस बात की परवाह किए मोबाइल फोन को इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी तरह पारंपरिक टंग्सटन बल्ब की जगह सीएफएल ने ले ली है और अब एलईडी, सीएफएल की जगह ले रहा है। फ्यूज़ होने के बाद सीएफएल का क्या होगा? ये न तो इसका इस्तेमाल करनेवाले जानते हैं, न इसे बनानेवाले। कमोबेश यही हाल तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का है। हर क्षेत्र में तेज़ी से हो रहे तकनीकी विकास की वजह से इलेक्ट्रॉनिक कचरे की समस्या विकराल होती जा रही है। जिसका सबसे ज़्यादा नुक़सान वातावरण को हो रहा है। वजह है, ख़राब हो रहे तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सही निष्पादन न हो पाना।
निष्कर्ष तकनीक की मदद से भोजन की उपज और उपलब्धता तो ज़रूर बढ़ी लेकिन खाद्य भंडारण व सुरक्षा और पीने का पानी समस्या बन चुकी है। शिक्षा की क्षेत्र में तरक्की ज़रूर हुई लेकिन, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हम पिछड़ते जा रहे हैं। यातायात की सुविधा के लिए मेट्रो रेल जैसी उत्कृष्ठ सेवा हासिल होने के बावजूद घंटों सड़क जाम में फंसे रहने का दंश आम आदमी ही झेलने को मजबूर है। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी पर भले ही जीत मिल गई हो लेकिन, बर्ड-फ्लू, हेपाटाइटिस, डेंगी जैसी बीमारियां स्वास्थ्य सेवा के लिए चुनौती पेश कर रही हैं। मनोरंजन के साधन बढ़े ज़रूर लेकिन नैतिकता की शर्त पर । इतना ही नहीं सुरक्षा के क्षेत्र में तकनीकी विकास के बावजूद घर-बाहर हर कहीं, हर वक़्त आम आदमी ख़ुद को असुरक्षित महूसस करता है।
असुरक्षा की ये भावना आम आदमी के मन में गहरे पैठ चुकी है। फिर चाहे दायरा छोटा हो या बड़ा यानी बात गांव-मोहल्ले-क़स्बे-शहर के स्तर की  हो या राज्य के स्तर की या फिर देश के स्तर की ही क्यों न हो?  तकनीकी विकास की वजह से आम आदमी जितना खुशहाल हुआ है उतना ही असुरक्षित भी। लिहाजा अब तक हुए तकनीक के विकास को एक अहम पड़ाव हासिल करना बाक़ी है। वो अहम पड़ाव है, तकनीकी तौर पर पूर्ण रूप से सुरक्षित समाज की। अब देखना होगा कि तकनीक के विकास के उस दहलीज पर हम कब पहुंचते हैं और पहुंचते हैं भी या नहीं?
निःसंदेह प्रौद्योगिकी ने आम आदमी के जीवन को एक ओर, पहले की तुलना में जहां ज़्यादा आरामदेह और सुविधाजनक बना दिया है, तो वहीं, ज़िन्दगी के लिए ज़रूरतों के मायने बदल दिए हैं। अब देखना रोचक होगा कि दिनों-दिन विकसित होते प्रौद्योगिकी आनेवाले दिनों में किस हद तक आम आदमी के रहन-सहन और संस्कृति में बदलाव लाता है। और इससे कहीं ज़्यादा रोचक ये देखना होगा कि तकनीकी तौर पर समृद्ध होते भारतीय मानसिक तौर पर कितने परिपक्व और स्वस्थ्य होकर उभरते हैं।

2 comments:

Anonymous said...

अच्छी पढ़ाई, अच्छी नौकरी, अच्छे अवसर...इनके लिए ज़रूरी है अच्छा प्रशासन...
Nearly 70% of the country's populationlives in rural areaswhere, for the first time since Independence, the overall growth rate of population has sharply declined, according to the latest Census.
Of the 121 crore Indians, 83.3 crore live in rural areas while 37.7 crore stay in urban areas, said the Census of India's 2011 Provisional Population Totals of Rural-Urban Distribution in the country, released by Union Home Secretary RK Singh.
निशांत कुमार

Anonymous said...

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