Wednesday, August 21, 2013

शीला के सस्ते ‘सेब’ की सच्चाई

दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के सस्ते सेब की सच्चाई सपनीली नहीं, पनीली है। दिल्ली में जो सेब 40 से 50 रूपए किलोग्राम बिक रहे हैं, क्या शीलाजी भी वही सेब खा रही हैं? इसकी चर्चा हम बाद में करेंगे। सबसे पहले तो चर्चा सबसे अहम तथ्य की कि दिल्ली में प्याज से सस्ता सेब कैसे बिक रहा है? और अगर सस्ते सेब बिकने का श्रेय माननीया मुख्यमंत्रीजी ले रही हैं, तो क्या जिन वज़हों से दिल्ली में सेब सस्ते मिल रहे हैं, उन वज़हों को भी शीलाजी उसी शिद्दत से अपनाएंगी?चलिए पहले चर्चा करते हैं कि दिल्ली में आख़िर प्याज से सस्ता सेब हुआ कैसे? दिल्ली में सेब के सस्ते होने की तीन अहम वज़ूहात हैं। वैसे तो सारी वज़ूहात अहम हैं लेकिन प्राकृतिक आपदा फिर भी सबसे अहम वज़ह है। खंड-खंड हुए उत्तराखंड और हिमाचल के लोग प्राकृतिक त्रासदी झेलने को मजबूर हैं। ख़ुद की ज़िन्दगी पहले बचाएं या कारोबार करें? आपदा की इस घड़ी में फलों के बाग-बगीचों की देख-रेख किसे सूझ रहा है? ऐसे में बिचौलियों के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में फसल बेच कर पैसे का इंतज़ार करने से ज़्यादा बेहतर किसानों को घरेलू बाज़ार में फसल खपाना लगा क्योंकि नक़द कम ज़रूर मिलता है लेकिन इसके तुरंत मिलने की संभावना यहां ज़्यादा रहती है।दूसरी वज़ह मौसम की मार रही जिसके असर से सेब के फसल भी अछूता नहीं रहा। फसल तो अच्छी हुई लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा बारिश की वज़ह से उसकी गुणवत्ता बुरी तरह से प्रभावित हुई। ज़्यादातर फलों पर बारिश के दाग़ या फिर चोट के दाग लग गए, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में खपत उतनी नहीं हुई, जितनी होनी चाहिए थी।  इस साल इसी वज़ह से घरेलू बाज़ार में सेब की खपत ज़्यादा हुई।
तीसरी वज़ह रूपए के मुक़ाबले डॉलर का मज़बूत होना रहा। रूपए के लगातार गिरने का असर सेब के निर्यात पर भी सीधा पड़ा है। चूंकि मुक्त व्यापार ने ग्लोबल विलेज में सबके लिए बराबर के मौक़े दे रखे हैं। और सेब के अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी भारतीय सेब के प्रतियोगियों में ख़ासा इज़ाफा हो मैक्सिको, फिजी और लैतिन अमीरिकी देशों के सेबों की मांग पिछले कुछ सालों में ख़ासी बढ़ी है। आलम तो ये है कि भारतीय बाज़ार भी इन देशों से आए सेबों से पटे पड़े हैं। ऐसे में रही सही कसर पूरी कर दी मुंह के बल गिरे रूपए ने। बंपर पैदावार के बावज़ूद व्यापारी को मुनाफा उतना नहीं हो रहा था जितना होना चाहिए था। नतीज़ा सबके सामने है।
ख़ैर, एक बार फिर रुख़ करते हैं शीलाजी के उस बयान की ओर जिसमें उन्होंने कहा कि प्याज की बढ़ी क़ीमत पर तो सभी चिल्ला रहे हैं, लेकिन सेब की घटी क़ीमत पर कोई कुछ नहीं बोल रहा। अब शीलाजी आप इन पंक्तियों के लेखक को ये बताने का कष्ट करेंगी कि सेब की कम क़ीमत में आपका योगदान क्या और कितना है? इन पंक्तियों का लेखक तो ये दावा कर सकता है कि प्याज की बढ़ी क़ीमत के पीछे सरकार की नाक़ामी है। क्योंकि प्याज की जमाखोरी होती रही है और हो रही है। सेब का किसान या बिचौलिया सेब की जमाखोरी चाहकर भी नहीं कर सकता इस बात से तो आप भी इत्तेफ़ाक़ रखती होंगी। और माननीया मुख्यमंत्री जी के लिए सबसे अहम सवाल ये कि क्या वो पहाड़ों में आई तबाही और डॉलर के मुक़ाबले रूपए में हो रहे गिरावट की ज़िम्मेदारी भी उसी शिद्दत से लेने को तैयार हैं, जिस शिद्दत से सेब की कम क़ीमत का श्रेय लेने की कोशिश कर रहीं थी? और शीलाजी इन पंक्तियों का लेखक अपने पाठकों को बताना चाहता है कि जो सेब दिल्ली की मुख्यमंत्रीजी ख़ुद खाती हैं वो आज भी मार्केट (बाज़ार नहीं) में 150 से 250 रूपए किलो ही बिक रहा है। 

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