Wednesday, August 7, 2013

शहादत तो प्रोफेशनलिज़्म का हिस्सा है, उस पर मुआवज़ा तो बोनस है...यदि मिले तो...


5 अगस्त, 2013 को हुए हमले पर देश के सबसे जांबाज़ (परेड की सलामी लेते वक्त चक्कर खाकर गिरने वाले) रक्षा मंत्री ने संसद में अपने तमाम जांबाज़ साथियों के बीच बयान दिया कि सरहद पर हुए हमले में शामिल क़रीब 20 से ज़्यादा आतंकवादियों ने हमारे सबसे अज़ीज़ पड़ोसी मुल्क़ के सेना का लिबास पहनकर हमले को अंजाम दिया।  अगले दिन फिर अपनी जांबाज़ी का नमूना दिखाते हुए उन्होंने बयान दिया कि हम बातचीत के हिमायती हैं, अपने सबसे अज़ीज़ पड़ोसी के साथ दोस्ती का रिश्ता निभाने को कटिबद्ध हैं, इसलिए बातचीत ज़ारी रखेंगे संसद में दूसरी ओर बैठे जांबाज़ों को मौक़ा मिला, तो वो भला कैसे चूकते। उन्होंने तमाम तरीक़े से शोर-शराबा करना शुरू कर दिया। देश के सबसे बड़े जांबाज़ को सरेआम मुआफ़ी मांगने के लिए जोर-आज़माइश करने लगे। फिर क्या था सबसे बड़े जांबाज़ के एक जांबाज़ साथी (जो संयोग से विदेश मंत्री भी है) ने दूसरी ओर बैठे जांबाज़ो को नसीहत देते हुए कहा कि देश की सबसे बड़ी पंचायत में दूसरी ओर बैठे जांबाज़ लाशों पर राजनीति कर रहे हैं।
इन पंक्तियों का लेखक मंदबुद्धि है इसलिए दोनों जांबाज़ मंत्रियों के बयानों को समझने की कोशिश में उनके बयानों को मन-ही-मन दोहराता हुआ सो गया (तमाम न्यूज़ चैनल्स का शुक्रिया)। नींद आई ही थी कि ख़्वाब आने शुरू हो गए, चैनल्स पर दिखाए गए तमाम विजुअल्स (दृश्य नहीं) एक के बाद एक फिर से दिखने लगे। पहले जांबाज़ का पहले दिन का बयान दिखा, उसके बाद दूसरे दिन का बयान फिर दूसरे जांबाज़ का बयान और आख़िर में जो दिखा उसने तो नींद में ब्लास्ट करवा दिया। आख़िर में जो दिखा वो वाक़ई ख़्वाब ही था शायद। दिखता है कि जाबांज़ रक्षा मंत्री के एक और जांबाज़ साथी माननीय मानव संसाधन विकास और क़ानून मंत्री न्यूज़ चैनल्स के पत्रकारों को समझा रहें हैं देखिए सैनिक भी दूसरे प्रोफेशनल्स की तरह होते हैं... उन्हें मरने-मारने की ट्रेनिंग दी जाती है.. उन्हें सरकारी ख़र्चे पर इसकी ट्रेनिंग दी जाती है..उन्हें युद्ध के लिए ही तैयार किया जाता है... ऐसे में अगर उनकी मौत होती है तो ये एक नॉर्मल बात है.. उनकी शहादत प्रोफेशनलिज़्म का हिस्सा है... उस पर से हम उन्हें बोनस के तौर पर मुआवज़ा भी देते हैं... केन्द्र सरकार अलग देती है... राज्य सरकार अलग देती है... देती है कि नहीं...  आपको कई मुल्क ऐसे मिल जाएंगें जो अपने सैनिकों की शहादत की बात तक फाइलों में दबा देते हैं...  ... जांबाज़ क़ानून मंत्री जी का प्रवचन ज़ारी ही था... कि एकदम से शहीद हेमराज का चेहरा सामने आ जाता है... उसके घरवालों के विजुअल्स चलने लगते हैं... इन पंक्तियों का लेखक हड़बड़ा कर उठ बैठता है.....

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