Wednesday, February 17, 2016

चिन्तन – आत्महत्या (01)

दिनांक – 16 फरवरी, 2016, दिन - मंगलवार, देर रात दिल्ली हवाई अड्डे के सुरक्षा विंग में तैनात सीआईएसएफ के एक ऑफिसर ने अपने सर्विस रिवाल्वर से कथित रूप से खुदकुशी कर ली. अधिकारियों ने बताया कि यह घटना उस वक्त हुई जब अट्ठावन साल के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर राज सिंह को करीब रात 8 बजे सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स कैंप में उसका सर्विस रिवाल्वर जारी किया गया।
आत्महत्या या ख़ुदकुशी, सुनकर कैसा लगता है?  शर्तिया तौर पर कहा जा सकता है कि अगर आपने अपने आसपास कोई वाकया नहीं देखा है, तो आप इसे महज़ एक शब्द मानते हुए, उदासीनता से आगे बढ़ जाएंगे. यहां आपकी समझ या संवेदनशीलता पर सवाल नहीं उठाया जा रहा है, बस ये बताने की कोशिश की जा रही है कि आत्महत्या यानी ख़ुद की हत्या भले ही संविधान के मुताबिक़ एक अपराध हो, लेकिन इसे अंजाम देने वाले शख़्स की मानसिक तक़लीफ का स्तर हमारे-आपके समझ से परे होती है. ज़रा कल्पना कीजिए उसके अंदर के दर्द को, डर को कि बिना किसी रिश्ते-नाते की चिन्ता किए एक शख़्स कैसे ख़ुद को फंदे से लटका कर या जला कर या ज़हर पीकर या गोली मारकर या ऊंची इमारत से कूद कर या फिर किसी और नायाब तरीक़े से मार देता होगा.
आत्महत्या या ख़ुदकुशी कोई भी करे, ये है ग़लत. लेकिन इस ग़लती पर अंकुश नहीं लग पा रहा है. वज़ह अनगिनत हैं. सबसे अहम तो ये है कि ख़ुदकुशी की करने वाले अलग-अलग लिंग, आयु, धर्म, जाति, समाज और वर्ग से होते हैं, इस वज़ह से किसी एक पैटर्न को ध्यान में रखकर नियम या सावधानी नहीं बरती जा सकती है, जिससे इसमें कमी आ सके. फिर भी हालिया ख़बरों पर नज़र डाले तो ऐसा ज़रूर लगता है कि कुछ ख़ास वर्गों में थोड़ी कोशिश से आत्महत्या की प्रवृति को कम किया जा सकता है। अगर मोटे तौर वर्गीकरण किया जाए तो वर्दीधारी सिपाही या सैनिक, किसान, छात्र, नवयुवक-युवतियां जैसे कुछ वर्गों में ख़ुदकुशी करनेवालों की तादाद ज़्यादा है. 
सैनिको और सिपाहियों में कई सकारात्मक पहलू होते हैं, मसलन उनका जूझारूपन, कर्मठता, विषम परिस्थितियों में रहने की आदत, मानसिक मज़बूती आदि, फिर आख़िर ऐसी कौन-सी बात है जो हमें हर दूसरे दिन किसी सैनिक और सिपाही की आत्महत्या और ख़ुदकुशी की ख़बरें पढ़ने को मिलती है. दरअसल पिछले कुछ सालों में सेना, पारा मिलिट्री फोर्सेज़ और पुलिस की नौकरी में आत्महत्या की घटनाएं बेहद आम होती जा रही हैं. और वज़ूहात किसी से छिपे नहीं हैं. इस तरह की घटनाओं के पीछे सर्वविदित कारण हैं काम का अत्यधिक दबाव, काम के वक़्त का तय नहीं होना, छुट्टी नहीं मिलना या कम मिलना, मिहनत के हिसाब से सुविधाओं में कमी, पारिवारिक और सामाजिक ज़िम्मेदारियां इत्यादि. लेकिन हक़ीक़त ये भी है कि इनमें से ज़्यादातर वज़हों को दुरूस्त किया जा सकता है.
देश हो या राज्य, हर जगह ख़र्चे को कम रखने की कोशिश में पर्याप्त तादाद में सैनिक और सिपाही की बहाली नहीं की जाती नतीजतन सैनिक और सिपाही के काम करने के घंटे तय नहीं हो पाते या उनसे ज़रूरत से लंबी ड्यूटी करवाई जाती है. अगर पर्याप्त तादाद में सैनिक और सिपाही हो और किसी को भी आठ घंटे से ऊपर की ड्यूटी न दी जाए तो उनकी आत्महत्या की प्रवृति में आश्चर्यजनक गिरावट देखी जा सकती है. इसी तरह अनिवार्य छुट्टी के नियम को सख़्ती से लागू करके और उनकी सुविधाओं में गुणात्मक सुधार लाकर वर्दीधारी सैनिकों में आत्महत्या की प्रवृति को कम किया जा सकता है. इन सबके अलावा रेगुलर काउंसलिंग को भी उनके जॉब का अपरिहार्य हिस्सा बनाना ज़रूरी है.

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