Friday, February 5, 2016

चिन्तन – ‘शहर’

शहर... शहर कहते ही हमारे दिमाग में न जाने कितनी तरह की तस्वीरें उभरती हैं... कुछ देखी-अनदेखी... कुछ जानी-पहचानी... कुछ ख़्वाहिशों के मानिन्द... कुछ चाहतों की तरह... कुछ कोशिशों-सी... कुछ कही-सुनी... कुछ अनकही-अनसुनी... कुछ दौड़ती... कुछ चलती ... कुछ रेंगती ...कुछ स्थिर... कहीं रौशनी से नहाई हुई... बेनज़ीर... कहीं अंधेरे में डूबी हुई... बेज़ार... कहीं उजाड़-सी... वीरान ... कहीं भीड़ की शक़्ल लिए... बेसबब... कहीं तन्हाई लपेटे हुए... बेचैन... कहीं गुफ़्तगू-दिल्लगी करते हुए... बेख़ुद... कभी शोर.. कभी सन्नाटा... कभी चीख... कभी चीत्कार... कभी हंसी.. कभी गुनगुनाहट-सी... पता है... ये तमाम तस्वीरें... यूं ही नहीं उभरती हैं हमारे ज़ेहन में... ये इसलिए उभरती है क्योंकि हम जिस शहर में रह रहे हैं... वो हक़ीक़त में एक बहुरूपिया है... एक ऐसा बहुरूपिया जो अपनी ज़रूरत... अपनी औक़ात... अपनी चाहत... अपने हौसले के हिसाब से अपना रंग-रूप बदल लेता है... अपने हर हिस्से को अपने ही तरह मुक़म्मल बनाते हुए... अपने अंदर कई-कई शहर बना लेता है.. और फिर हर शहर में नज़र आता है... एक-दूसरे का अक़्स।

 हमारे-आपके शहर का नाम भले ही अलग-अलग हो... भले ही उनका इतिहास और भूगोल भी जुदा हो... लेकिन यक़ीन जानिए... उन शहरों के धड़कने... सांस लेने.. और जीने का सलीका .. एक ही है। हर शहर ने अपने अंदर कई-कई शहर बसा रखे हैं... एक वो शहर है... जिसमें रहने वाले लोग बेहद नाज़ुक से... बेहद नज़ाकत वाले होंगे... जिनके बोलने...चलने... खाने... पीने.. उठने... बैठने.. यहां तक कि सांस लेने का भी एक सलीका होगा.. किसी परिन्दे की नज़र से देखने से... शहर बेहद व्यवस्थित नज़र आता होगा...  एक वो शहर जिसमें शहर रहने वाले बेहद रूखे... बेहद असभ्य... बेढब होंगे... और परिन्दे की नज़र में... शहर बेतरतीब – बिख़रा हुआ दिखता होगा... एक और शहर होगा ... जिसमें इन दोनों शहरों के कुछ-कुछ लोग रहते हैं... कुछ संवरे से... कुछ बिखरे से... और इन तीन शहरों के बीच पसरा होगा असंख्य शहरों का काफ़िला जो एक-दूसरे से गुत्थम-गुत्था होने के बावज़ूद... संवरने की कोशिश में जुटा होगा... आप जब शहर के ऊपर उड़ रहे... उस परिन्दे के कंधे पे सवार होकर शहर को (उसकी नज़र से) देखने की कोशिश करेंगे... तो यक़ीन मानिए... आपके ज़ेहन में जितने भी शहरों की तस्वीरें होंगी... बारी-बारी से.. या एकबारगी ही सही... उन सबकी झलक आपको ज़रूर मिलेगी।

एक शहर जो...अलसुबह जाग उठता है और शाम होते ही..सो भी जाता है... एक वो शहर है, जो शाम में ही जागता है और रात भर नहीं सोता... एक शहर जो दिन में जागता है... इस तरह रात और दिन के आठ-आठ पहर में जागने और सोने वाले शहरों की तादाद हर गुज़रते दिन के साथ बनती... बिगड़ती रहती है... लेकिन मिटती कभी नहीं है... और सबसे अहम ये बात कि ये तमाम शहर बसे होते हैं एक शहर के ही भीतर... एक नाम के अंदर... शहर के अंदर शहर... उसके अंदर शहर और फिर उसके अंदर भी शहर.... ऐसा लगता है मानों आमने-सामने रखे दो आईने के बीच में रख दिया गया हो...एक शहर को... यक़ीन जानिए... किसी एक वक़्त में एक शहर अपने भीतर मौज़ूद कई शहरों के साथ भले जी रहा हो... लेकिन उस ख़ास वक़्त में आप चाह कर भी एक से ज़्यादा शहर में अपनी मौज़ूदगी नहीं दर्ज़ करा सकते... आप बहुत संज़ीदा होंगे तो उनको महसूस कर पाएंगे... लेकिन आपके झांकने तक पर पाबन्दी होगी... यहीं से शुरू होता है... शहरों के बासिन्दों के लिए शर्त और शर्तों की लड़ी...

एक देश में रहने के लिए आपको वहां की नागरिकता चाहिए होती है... कुछ देशों में आप दोहरी नागरिकता भी रख सकते हैं... यानी एक वक़्त में आप उन दो देशों के नागरिक होंगे...लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि किसी एक वक़्त में आप, एक शहर के एक अंदर मौज़ूद असंख्य शहरों में से किसी एक ही में रह और जी सकते हैं... फिर आप चाहे कितने भी धनवान... कितने ही बलवान या कितने ही बुद्धिमान क्यों न हो.. शहर आपको किसी ख़ास वक़्त में किसी भी ख़ास वज़ह से एक से ज़्यादा शहर में जीने और रहने की आज़ादी नहीं दे सकता... आपकी हर ज़रूरत के लिए शर्त है.. यक़ीन नहीं आता तो कभी कोशिश करके देखिएगा... इसी तरह हर शहर अपना बासिन्दा बनाने के लिए... अलग-अलग लोगों के सामने अलग-अलग शर्तें रखता है... ये शर्तें सामान्य और असामान्य किसी भी तरह की हो सकती हैं... मुमक़िन ये भी है कि आपके लिए शर्त... कुछ और हो... और आपसे जुड़े किसी शख़्स के लिए कुछ और... आप इन शर्तों को जाने-अनजाने पूरा करते हैं... तभी बन पाते हैं... किसी ख़ास शहर के बासिन्दे... जिस शहर में आपका पैदा हुए.... पले-बढ़े... वहां की आबो-हवा को जज़्ब किए... हो सकता है वहां आपको शर्तों की कोई घुटन न महसूस हो... लेकिन थोड़े से संवेदनशील होते ही.. आप समझने लगेगें कि शहर में मुफ़्त... कुछ भी नहीं है... कुछ नहीं!

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