Thursday, November 18, 2010

संपादक की सोच और इत्तेफाक


लेख की शुरुआत एक खबर से। पटना से दिल्ली आ रहा था। मगध एक्सप्रेस से। रास्ते में टाइम पास करने के लिए एक अखबार खरीद लिया। प्रभात खबर खरीदा। सोचा हरिवंशजी का कुछ बेहतरीन पढ़ने को मिलेगा। मैं निराश नहीं हुआ। जापान के बारे में उन्होंने लिखा था। लेख में बताया गया था कि किस तरह एक जीर्ण-शीर्ण सा देश विकसित बना। प्रभात खबर के संपादक हरिवंशजी ने जापानियों की जीवटता का बेहतरीन जिक्र किया। एक किस्सा कुछ यूं था कि वहां ट्रेनें डॉट में चलती हैं मतलब सेकेंड्स पर. मसलन, 10 बजकर 20 मिनट 15 सेकेंड पर खुलेगी तो वह इसी टाइम पर खुलेगी। एक बार कुछ तकनीकी खराबी की वजह से एक ट्रेन 11 से 12 मिनट लेट हो गई। देशव्यापी मुद्दा बन गया। हमारे यहां भ्रष्टाचार भी देशव्यापी मुद्दा नहीं बन पाता। खैर, ट्रेन लेट होने की वजह की सफाई मंत्री समेत रेल बोर्ड के अधिकारियों को देना पड़ा। वह खुद राष्ट्रीय चैनल पर आए और इस देरी के लिए देश से माफी मांगी और जिम्मेदारी लेते हुए सभी ने इस्तीफा दे दिया। यह है जापानी जनता, नेता और अधिकारियों का अनुशासन। इसी अनुशासन ने जापान को जापान बनाया। अब बात खुद की यात्रा की। जब मैं घर से चला था तो मेरी गाड़ी 6 बजकर दस मिनट पर थी। बमुशि्कल से 10 मिनट पहले मैं स्टेशन पहुंचा। हालांकि, घर से तीन घंटा पहले चला था। मुझे काफी देर भी होती तो तकरीबन 5.30 तक पहुंच जाना चाहिए था। लेकिन नहीं। दरअसल, लालगंज से हाजीपुर और हाजीपुर से पटना के बीच उम्मीद से अधिक ट्रैफिक का सामना करना पड़ा। उस वक्त मैं घबरा तो बिल्कुल नहीं, रहा था कि गाड़ी छुट जाएगी। पर हां, यह जरूर सोच रहा था कि बिहार में वाकई काफी पैसा आया है। पिछले दिनों धनतेरस के मौके पर रिकॉर्ड गाड़ियों की खरीदारी हुई थी। तो ट्रैफिक तो बढ़ना ही था। खुशी इस बात से हुई कि अफरा-तफरी भरे ट्रैफिक को संभालने के लिए पुलिस लगी थी जो पहले नहीं होता था। पहले मंजर यह होता कि हर कोई अपनी मर्जी से चला जा रहा है। कोई किसी को रोकने वाला नहीं है। इससे बहुत बड़ा कोओस हो जाता था। नौबत तो मारपीट तक की आ जाती थी। पर, अब ऐसा नहीं है। इसके लिए आप बदलते बिहार को शुक्रिया कह सकते हैं, साथ में सीएम नीतीशजी को भी। हां तो काफी मशक्कत से पटना स्टेशन पहुंचा। जल्दबाजी में इधर-उधर भागता हुआ पहुंचा तो पता चला जिस ट्रेन से जाना है वह 10-15 मिनट नहीं, दो घंटे देर से खुलेगी। यह सोचकर काफी झुंझलाहट हो रही थी कि अब इतना वक्त मैं कैसे बिताऊंगा। तभी यह अखबार खरीदा-प्रभात खबर। उसमें हरिवंशजी ने एक देश के महान बनने की कहानी का उदाहरण भी ट्रेन के समय से दिया था। जहां एक तरफ ट्रेनों का लेट होना बेहद मामूली बात है तो दूसरी ओर इसकी वजह से मंत्री तक को इस्तीफा देना पड़ता है। यहां तो अरबों का घोटाला करने वाले मंत्री भी इस्तीफा देने से पहले सरकार गिराने की धमकी देते हैं और गठबंधन धर्म के नाम पर प्रधानमंत्री खामोश रहते हैं। यह है अंतर। बताता चलूं कि मेरी ट्रेन 4 घंटा 12 मिनट देर से खुली। और जिसे दिल्ली सुबह 11.30 तक पहुंचाना था तो वह शाम 6.30 सात घंटा देर से पहुंची। जय हिंद।

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