Monday, November 22, 2010

अब येदियुरप्पा की बारी....


येदियुरप्पा हटें या नहीं, कर्नाटक में भाजपा की सरकार जाए या बचे, लेकिन अच्छी बात यह है कि लंबे समय बाद सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्‌दा बन कर उभरा है. पिछले कुछ समय से ऐसा लगने लगा था जैसे भ्रष्टाचार को हम अपनी नियति मान चुके हैं. घोटालों और रिश्तखोरी की खबरें आती थीं और फिर गायब हो जाती थीं. लेकिन ताजा घटनाक्रमों ने यह बता दिया है कि यह मुद्‌दा अभी मरा नहीं है और आम लोग अभी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का दम रखते हैं.


पहले शशि थरूर, फिर अशोक चव्हाण और सुरेश कलमाडी और इसके बाद ए राजा. क्या अगला नंबर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा का है? लग तो यही रहा है कि जमीन घोटालों के आरोपों से घिरे येदियुरप्पा को भी जाना ही होगा. हालांकि, उन्होंने बगावती तेवर अपना लिए हैं और भाजपा उन्हें हटाने के मामले में किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहती, लेकिन मुख्य विपक्षी पार्टी जिस तरह भ्रष्टाचार के मामलों पर केंद्र की यूपीए सरकार पर एक के बाद एक हमले कर रही है, येदियुरप्पा के सामने बचाव के रास्ते कम ही बचे हैं. भाजपा के साथ समस्या यह है कि उसके पास कर्नाटक में उनका कोई विकल्प नहीं है. मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में जिन नेताओं के नाम आ रहे हैं, वे या तो पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं या फिर उन्हें पार्टी विधायकों का समर्थन हासिल नहीं है. येदियुरप्पा यदि अपनी बात पर अड़े रहे तो भाजपा को दक्षिण भारतीय राज्यों में अपनी पहली सरकार की बलि भी देनी पड़ सकती है. पार्टी ऐसा होने नहीं देना चाहती और इसीलिए कोई भी फैसला लेने से पहले पूरी तरह संतुष्ट हो जाना चाहती है, लेकिन मौजूदा हालात में इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. यदि येदियुरप्पा नहीं हटे तो भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा की मुहिम एक ढकोसला बन कर रह जाएगा.

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