Wednesday, August 21, 2013

देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भूमिका

आर्थिक आज़ादी के बग़ैर स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं है” – महात्मा गांधी

भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्ति दिलाने वाले बापू के सपनों को साकार कर रहे हैं देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था, वहीं आज सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक गरीबी को भारत से उखाड़ फेंकने के मुहिम में जुटे हैं। देश के आखिरी आदमी तक पहुंच बनाने के राष्ट्रपिता के सपने को सही मायने अमलीजामा पहना रहे हैं।

सरकार का सहयोगी आज़ादी मिलने के 64 सालों बाद हमारा देश भारत विकासशील देश की श्रेणी से कहीं आगे बढ़ चुका है। और बहुत तेजी से विकसित देश कहलाने की ओर बढ़ा जा रहा है। पूरी दुनिया में भारत की पहचान एक तेजी से बढ़ती हुई आर्थिक शक्ति के तौर हो रही है। यकीनन इस कामयाबी के पीछे तमाम संगठनों का योगदान है। लेकिन, देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भूमिका कहीं ज्यादा और कहीं बड़ी है।

आय का अहम साधन देश में कुल 27 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक है जिनमें तकरीबन सात लाख कर्मचारी काम करते हैं। देश में मौजूद तमाम बैंकों की सालाना आमदनी लगभग 250 अरब रुपए है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का हिस्सा सबसे ज्यादा है। जी हां, बैंकों की कुल आमदनी का तकरीबन 73 फीसदी हिस्सा पब्लिक सेक्टर बैंक यानी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ही आता है।

बात चाहे देश की आमदनी का हो या फिर रोज़गार की या फिर आम आदमी के हक़ में महंगाई को काबू करने की, सभी तरह के परेशानी में सरकार के सहयोगी की भूमिका सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बखूबी निभा रहे हैं। देश की आर्थिक विकास में गांवों की भूमिका अहम होती है इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अब तक गांव और ग्रामीणों की भूमिका अप्रत्य़क्ष रही है। लेकिन अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के जरिए देश के आर्थिक विकास में ग्राम और ग्रामीण की भूमिका को प्रत्यक्ष किया जा रहा है।

वित्तीय समावेशन के जरिए गांव का विकास भारत की साठ फीसदी से ज्यादा आबादी आज भी गांवों में ही रहती है। कृषि और उससे जुड़े व्वसाय देश की महत्ता और ज़रूरत को देखते हुए भारत सरकार ने ग्रामीण भारत को सुदृढ़ करने की योजना बनाई है। साल 2008 से लागू हुए भारत सरकार के महत्वकांक्षी योजना को साकार करने के अहम दायित्व को सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंक बखूबी अंजाम दे रहे हैं। वित्तीय समावेशन नाम की इस अहम योजना के प्रथम चरण में सभी बैंकों को 73,000 गांवों के नागरिकों तक बैंकिंग सुविधा पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई है। सार्वजनिक क्षेत्र पूरी तन्मयता से इस योजना को अंजाम दे रहे हैं। देश के विकास में आम आदमी की हिस्सेदारी-भागीदारी सुनिश्चित करने की अहम योजना के तहत आने वाले दिनों में सभी 6 लाख गांव लाभान्वित होंगे। और गांवों के समुचित विकास के साथ देश का आर्थिक विकास अपने लक्ष्य को सही मायने पूरा हो सकेगा।

महंगाई को काबू करने में सहायक  देश की आर्थिक प्रगति के फलस्वरूप देश के लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है। उनकी जीवन प्रत्याशा ही नहीं बढ़ी है जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है। और ये सबकुछ मुमकिन हो सका है देश की आर्थिक उन्नति की बदौलत। आर्थिक प्रगति का ही नतीजा है कि देश के प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है साथ ही हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रही है उनकी खरीद-क्षमता (परचेजिंग कपेसिटी)। खरीद क्षमता बाज़ार की वजह से मांग (डिमांड) में जबर्दस्त तेज़ी आई है। और उत्पादन बढ़ने के बावजूद मांग पूरी नहीं हो पा रही है। इस पूरे उपक्रम में महंगाई का  बढ़ना तय माना जाता है, ये अर्थशास्त्र का बेहद साधारण नियम है। लेकिन आम आदमी खुशहाली बने रहे सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है। और यही वजह है कि बैंकों का नियामक रिज़र्व बैंक आम आदमी के हित में महंगाई को काबू करने के लिए कटिबद्ध है। हाल के दिनों में महंगाई को काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक ने ताबड़-तोड़ ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोतरी से बैंकों को होने वाली आमदनी पर बुरा असर पड़ने के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक देशहित में रिजर्व बैंक के फैसले के साथ डटे हुए हैं। और मौजूदा हालात से उबरने में सरकार की मदद में जुटे हैं।

रोज़गार बढ़ाते सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

फिर चाहे बात रोज़गार देने की हो या रोज़गार बढ़ाने की या क़ाबिल लोगों को स्वरोज़गार के लिए तैयार करने की। हर कहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अहम भूमिका निभा रहे हैं। आंकड़ों की नज़र से देखें तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक तकरीबन 7 लाख लोगों को सीधे तौर पर रोज़गार मुहैया करा रही है। वहीं अतिसूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यम का पोषण कर सार्वजनिक बैंक इस क्षेत्र में लगे करीब 6 करोड़ लोगों को रोज़गारोन्मुख बनाया है। इसके अलावा देश के तमाम दूसरे अहम सरकारी-ग़ैर सरकारी संगठनों के लिए सुदृढ़ आधार की भूमिका निभा रहे हैं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक।

देश के चहुंमुखी विकास में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

ग्यारहवें पंचवर्षीय योजना साल 2012 में समाप्त होने को है। इस योजना को पूरा करने में भी सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने अहम भूमिका निभाई है। ग्यारहवें पंचवर्षीय योजना के तहत सरकार ने आधारभूत परियोजनाओं की अहम शुरूआत की है। इस योजना के तहत देश में  कुल 25 हजार किलोमीटर सड़क बनाने के लक्ष्य के साथ-साथ 10,300 किलोमीटर लंबी नई रेल पटरियां बिछाने का लक्ष्य रखा गया है। इतना ही नहीं उर्जा के क्षेत्र में 70,000 मेगावॉट अतिरिक्त विद्युत उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इतना ही नहीं बंदरगाहों और हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण और नव निर्माण की बृहद योजना को भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की मदद से अमलीजामा पहनाया जा रहा है। इसी तरह दूर-संचार, पेयजल, सिंचाई, खाद्यान्न भंडारण को बढ़ावा देने के लिए शुरु किए गए तमाम योजनाओं के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों खुले दिल से सरकार का साथ दे रहे हैं।



1 comment:

जसवंत लोधी said...

शुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in