Thursday, November 18, 2010

ये लोकतंत्र के राजा है








चौथी दुनिया संवाददाता और आरटीआई कार्यकर्ता शशि शेखर ने जब उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर होने वाले ख़र्च का ब्योरा आरटीआई के ज़रिए जुटाया तो प्राप्त सूचना के विश्लेषण से पता चला कि कैसे आम आदमी की गाढ़ी कमाई इन राज्यों के मुख्यमंत्री आवासों पर बेहिसाब ख़र्च की जा रही है.


राजतंत्र नहीं रहा, उसकी जगह प्रजातंत्र आ गया. अब एक राजा की जगह कई राजा मिल कर आम आदमी का शोषण करते हैं. आरटीआई से मिली सूचना के मुताबिक़, इन राजाओं की प्यास बुझाने के लिए आम आदमी को अपनी करोड़ों की कमाई गंवानी पड़ रही है. अपना घर अंधेरे में रखकर राजाओं के आलीशान महलों (मुख्यमंत्री आवास) को रोशन कर रहा है आम आदमी. ख़ुद के सिर पर छत नहीं, लेकिन वह इन राजाओं के महलों की पेंटिंग पर ही लाखों रुपये ख़र्च कर रहा है.

राजनीति पेशा है या समाजसेवा का ज़रिया, इसका जवाब इस साल संसद के मानसून सत्र को देखकर पता लग जाता है. सत्र के दौरान सांसदों ने जिस तरीक़े से अपना वेतन और भत्ता बढ़ाने की मांग की, उससे यह साफ हो गया कि इन माननीयों के लिए राजनीति समाजसेवा का ज़रिया तो कतई नहीं हो सकती. उनके लिए राजनीति पेशे से भी एक क़दम आगे की चीज है. यानी भरपूर सुख-सुविधा भोगने का एक ज़रिया. चाहे इसके लिए जनता को कोई भी क़ीमत क्यों न चुकानी पड़े. लेकिन यह हाल स़िर्फ सांसदों का ही नहीं है, राज्य के मुख्यमंत्री भी जनता की जेब ढीली कर सुख-सुविधा भोगने में पीछे नहीं हैं. वह भी तब, जब दिल्ली जैसे शहर में 80 हज़ार से ज़्यादा लोगों के सिर पर छत नहीं है. विदर्भ में अब तक 2 लाख से ज़्यादा किसान असमय मौत को गले लगा चुके हैं. उत्तर प्रदेश में हर साल सैकड़ों बच्चे इंसेफ्लाइटिस की वजह से दम तोड़ देते हैं, लेकिन इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की जीवनशैली पर नज़र डालें तो एक अलग ही तस्वीर दिखाई देती है. चमक-दमक से भरपूर तस्वीर. बिल्कुल इंडिया शाइनिंग की तरह. जिस देश की एक बड़ी आबादी को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं, वहीं इन राज्यों में से एक के मुख्यमंत्री आवास का पानी का बिल 62 लाख रुपये आए तो इसे आप क्या कहेंगे? उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र के कितने गांवों तक बिजली पहुंची है. और अगर पहुंचती भी है तो कितने घंटों के लिए, यह रिसर्च का मामला हो सकता है, लेकिन इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री अपने आवास को रोशन करने के लिए महीने में 20 लाख रुपये से ज़्यादा बिजली पर ख़र्च कर देते हों तो इसे आप क्या कहेंगे? प्रधानमंत्री भले ही अपने मंत्रियों को विदेश दौरे न करने, सरकारी ख़र्च घटाने की सलाह देते रहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री अपने आवास की रंगाई-पुताई पर पांच सालों में 86 लाख रुपया पानी की तरह बहा देते हैं. उत्तर प्रदेश में मायावती की शाही आदत के मुताबिक़ ही उनके आवास के रखरखाव पर बेशुमार पैसा ख़र्च किया जा रहा है. और यह सब कुछ हो रहा है एक ऐसे देश में, जहां का हर तीसरा नागरिक ग़रीब है. 70 फीसदी आबादी की रोज की आय 20 रुपये से भी कम है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2009 के आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में भूखे एवं कुपोषित लोगों की संख्या पाकिस्तान, नेपाल, सूडान, पेरू, मालावी और मंगोलिया जैसे देशों से भी ज़्यादा है. लेकिन इस सबसे बेपरवाह हमारे माननीय मुख्यमंत्रीगण इसी धरती पर स्वर्ग का मज़ा ले रहे हैं.

1 comment:

H said...

Tabhi to mera bharat mahan ban raha he