Monday, November 29, 2010

ये कैसा देशबंधु है?


मेरा एक दोस्त देशबंधु नाम के अखबार में काम कर रहा है. सब एडिटर है. उसने मुझे बताया कि वो पिछले दो महीने से अपने रूम पर नहीं जा रहा है. वजह, मकान मालिक किराये के लिए पूछता है. और मेरे पास फूटी कौडी नहीं है. उसने बताया कि उसे पिछले 4 महीने से वेतन नहीं मिल रहा है.

दिल्ली एनसीआर से पिछले 2008 से निकलने वाले अखबार देशबंधु कई बार मीडिया की सुर्खियों में रहा. अपने गुणवत्ता की वजह से नहीं. अपने कर्मचारियों को पिछले चार महीनों से वेतन नहीं देने की वजह से. उक्त अखबार के एक कर्मचारी ने अपने नाम न छापने की शर्त पर चाय दुकान को बताया कि पिछले 2 महीने से अपने घर पर नहीं गया है. (दिल्ली में अपने कमरे पर) कभी किसी दोस्त के घर में तो कभी अपने परिचितों के पास रुका हुआ है. यह कहां का न्याय है? आप कर्मचारियों से अच्छा काम और आउटपुट की उम्मीद कर रहे हैं तो उनकी आधारभूत जरूरतों को भी पूरा करना जरूरी है. हद तो तब हुआ जब एक कर्मचारी की मां ने अखबार के मालिक को फोन कर डांट दिया. मगर अबखार का मालिक एक अनजान आदमी की तरह बैठा हुआ है. मीडिया में इतना भयंकर शोषण बाहरी लोगों को क्या पता. लोग मीडिया को इतना ग्लेमर की नजर से देखते हैं. युवा पीढी को तो मीडिया में नौकरी करने का क्रेज है. देशबंधु के एक कर्मचारी की बहन की शादी पर जाने के लिए पैसा मांगा तो कुछ महीनों के कुछ पैसे दिए गए. दो-तीन महीने का पैसा तो सबका लटका हुआ रहता है. इस अखबार के रायपुर हेडक्वार्टर में भी कई बार वेतन को लेकर कहासुनी हो चुकी हैं. इतना होने के बावजूद मालिक के उपर कोई असर नहीं हो रहा है. अखबार के संपादक खुद को इस शोषण से मुक्त करके निकल गए. बाकी लागों का क्या होगा, पता नहीं. वैसे अधिकतर कर्मचारी नौकरी छोडने का मन बना चुके है. इससे अच्छा तो अपने गांव वापस जाकर चाय की दुकान खोलना ज्यादा ठीक रहेगा.

2 comments:

priyambada said...

really its very shocking .

shashi shekhar said...

no...its not shocking......its very shamefull