Thursday, December 6, 2012

ख़बरनवीसों की दुनिया की खलबली (04)

अथ श्री जिंदल-गोयल कथा (04)पत्रकारिता के रास्ते कुछ राजनीति में जाते हैं, कुछ कारोबारी दुनिया में और कुछ जेल। जेल जानेवाले वो लोग होते हैं जिनके लिए पत्रकारिता विशुद्ध दलाली का ज़रिया होती है। लेकिन सारे दलालों को जेल भी नहीं होती। कुछ बेहद क़िस्मत के मारों को ही होती है, या फिर अति-आत्मविश्वास के मारों को। समीर अहलूवालिया और सुधीर चौधरी ऊपर बताए गए दो तथ्यों के दो सबसे सटीक नज़ीर हैं। समीर अहलूवालिया लंबे वक़्त से ज़ी को अपनी सेवा दे रहे थे लेकिन अब तक बचे रहे। वक़्त ख़राब हुआ या यूं कहिए क़िस्मत की मार पड़ी तो जेल पहुंच गए। वहीं सुधीर चौधरी को हश्र होने के पीछे उनका अति आत्मविश्वास ही रहा।
दरअसल सुधीर चौधरी की गिनती  कांग्रेस दिग्गज नेता और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिन्दर सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेन्द्र हुड्डा के बेहद क़रीबियों में की जाती है। लाइव इंडिया से टिकट कटने के बाद बेकार हुए सुधीर को नौकरी की तलाश थी सो पहुंच गए दीपेन्द्रजी के ज़रिए माननीय मुख्यमंत्री हुड्डा के दरबार में। भूपिन्दर सिंह हुड्डा जी ने सुधीर को पहली पेशकश की श्री विनोद शर्माजी के (मनु शर्मा के पिताजी)इंडिया न्यूज़ के ग्रुप ऑफ चैनल्स के हेडशिप के लिए, जिसे सुधीर साहब ने छूटते ही नकार दिया (चलिए कहीं तो क़िस्मतवाले साबित हुए विनोद शर्माजी)। अब इसे क़िस्मत का फेर कहिए या संयोग सुधीर चौधरी को गोयल समूह और हुड्डाजी की नज़दीकियों की ख़बर थी सो उन्होंने ज़ी न्यूज़ में बतौर न्यूज़ और बिजनेस हेड बनकर जाने की पेशकश की। सूत्रों की मानें तो सुधीर ने ये भी दावा किया कि वो सुभाष गोयल के पिताजी को हिसार से विधायक बनवाने के लिए जी-जान लगा देंगे। यक़ीनन उन्होंने ऐसा किया भी।
लेकिन, इस पूरे घटनाक्रम में सुभाष चन्द्र गोयल ने एक ऐसे शख़्स को दांव पर लगा दिया, जिसने उनके चैनल को फर्श से लेकर अर्श पर पहुंचाया था। जी हां सतीश के सिंह ने अपना ख़ून-पसीना बहा कर ज़ी न्यूज़ को चैनलों की भीड़ से अलग एक ख़ास पहचान दिलवाई थी। सुभाष चन्द्र गोयल ने उस चीज़ को खर्चने की कोशिश की, जो उन्होंने कभी कमाई ही नहीं थी, जो उनकी कभी थी ही नहीं, जो सतीश के सिंह नाम के एक कर्मठ पत्रकार ने कमाई थी, सालों की मिहनत के बाद। जिसे तार-तार करने में ख़ुद गोयल साहब और सुधीर चौधरी ने मिनट भी नहीं लगाया।पूरे वाकये का सबसे मज़ेदार पहलू ये है कि श्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और नवीन जिंदल दोनों कांग्रेसी हैं। इसके बावज़ूद पूरे मामले में सुधीर चौधरी और ज़ी समूह को जल्द राहत मिलने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं।

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