परिचय – निःसंदेह ‘निरीक्षण, पुनर्निरीक्षण और प्रति-निरीक्षण’ (Check, Re-check & Cross Check) सतर्कता के लिए बेहद ज़रूरी है, ठीक वैसे ही और उतना ही, जैसे और जितना कुशल प्रंबधन के लिए स्वयं सतर्कता ज़रूरी है। लेकिन मौजूदा परिवेश में ध्यान देनेवाली बात ये है कि प्रबंधन में सतर्कता कहीं से थोपी हुई न लगे। और सबसे अहम ये कि सतर्कता का असर संस्था के विकास पर सकारात्मक हो, नकारात्मक नहीं। इतना ही नहीं सतर्कता की वजह से संस्था की वृद्धि तय वक़्त पर निर्धारित मानदंडों के मुताबिक़ संपूर्णता के साथ हो। इन सबके लिए ज़रूरी है कि प्रबंधन द्वारा अपनाए जा रहे सतर्कता के तमाम उपाय भी सकारात्मक हों।
Tuesday, December 18, 2012
सकारात्मक सतर्कता दृष्टिकोण
परिचय – निःसंदेह ‘निरीक्षण, पुनर्निरीक्षण और प्रति-निरीक्षण’ (Check, Re-check & Cross Check) सतर्कता के लिए बेहद ज़रूरी है, ठीक वैसे ही और उतना ही, जैसे और जितना कुशल प्रंबधन के लिए स्वयं सतर्कता ज़रूरी है। लेकिन मौजूदा परिवेश में ध्यान देनेवाली बात ये है कि प्रबंधन में सतर्कता कहीं से थोपी हुई न लगे। और सबसे अहम ये कि सतर्कता का असर संस्था के विकास पर सकारात्मक हो, नकारात्मक नहीं। इतना ही नहीं सतर्कता की वजह से संस्था की वृद्धि तय वक़्त पर निर्धारित मानदंडों के मुताबिक़ संपूर्णता के साथ हो। इन सबके लिए ज़रूरी है कि प्रबंधन द्वारा अपनाए जा रहे सतर्कता के तमाम उपाय भी सकारात्मक हों।
कैसे हो सकारात्मक सतर्कता ? सकारात्मक सतर्कता का तात्पर्य ये है कि भ्रष्टाचार मुक्त माहौल बनाने के क्रम में सतर्कता ऐसी बरती जाए कि जिससे संस्था के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। इसके लिए प्रबंधन को तीन स्तरीय नीति लागू करनी होगी। पहले स्तर पर तमाम कर्मचारियों को जागरूक करने का अभियान चलाना होगा। दूसरे स्तर पर रोधात्मकता की नीति अपनानी होगी ताकि किसी तरह की गड़बड़ी को महज निरीक्षण के ज़रिए रोका जा सके। और तीसरे स्तर पर दंड का प्रावधान करना चाहिए। इस त्रिस्तरीय नीति से सतर्कता को बेहद सकारात्मक तरीके से संस्था के अंदर बनाए रखा और लागू किया जा सकता है।
पहला कदम - जागरूकता अभियान सतर्कता के लिए जागरूक करना उतना ही ज़रूरी है जितना कि नियम बनाकर लागू करने से पहले उससे जुड़ी सुविधाएं मुहैया कराना। अब तक हुए भ्रष्टाचार के कई मामलों में पाया गया है कि सतर्कता के लिए अपनाए जाने वाले क़दमों की जानकारी की कमी की वजह से ही ज़्यादातर कर्मचारी दोषी साबित हुए। ऐसे में जागरूकता अभियान को लागू कर सकारात्मक सतर्कता को परवान चढ़ाया जा सकता है। लेकिन, जागरूकता के इस पहले क़दम के लिए भी कई क़दम लिए जाने की ज़रूरत है।
i) कार्यक्रम का आयोजन - भ्रष्टाचार का कोई नियमित कोटा नहीं होता, न ही किसी एक ख़ास पैटर्न के ज़रिए किसी भ्रष्ट काम को अंजाम दिया जाता है। ऐसे में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ सतर्कता अभियान के लिए सेमिनार, कार्यशाला (वर्कशॉप), व्याख्यान तथा वाद-विवाद जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। संस्था के बौद्धिक पूंजी आधार में सुधार लाने की दृष्टि से सतर्कता सेमिनार आयोजित किए जाएं। और ऐसे कार्यक्रमों में अधिकारियों को देश के सुप्रसिद्ध सतर्कता अधिकारियों के विचारों से अवगत कराया जाना चाहिए।
ii) नियमों का पालन – भ्रष्टाचार पर अंकुश रखने के लिए केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग के रूप में संपूर्ण संस्था का ही निर्माण कर रखा है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने देश के अंदर चल रहे तमाम संस्थाओं और कंपनियों के लिए नियम-कायदे बना रखे हैं जिसमें समय-समय पर ज़रूरी बदलाव भी होते रहते हैं। उन तमाम नियमों की अनदेखी न हो इस बात की गारंटी तय कर किसी भी संस्था के प्रबंधन को सकारात्मक तरीके से भ्रष्टाचार मुक्त रखा जा सकता है।
iii) केस स्टडीज़ – भ्रष्टाचार से जुड़ा हर मामला अपने आप में अनोखा और ख़ास होता है। किसी ख़ास या विशेष तरीके से अंजाम दिए गए मामले का अध्ययन हर किसी के लिए ज़रूरी होता है ताकि भविष्य में उसकी पुनरावृति न हो सके। इसके लिए हर तरह के केस स्टडी यानी विशेष मामलों की अध्ययन रिपोर्ट को संस्था के कर्मचारियों के ध्यान में लाना नितांत आवश्यक है।
iv) विशेष पत्रिका – केस स्टडीज़ नियमित अंतराल पर कर्मचारियों तक पहुंचाने के साथ-साथ सतर्कता जागरूकता के लिए इससे जुड़े नियम-क़ानून और क़ायदे की जानकारी भी संस्था के हर विभाग तक पहुंचना ज़रूरी है। इसके साथ ही कर्मचारियों को कार्यालय के दैनिक कार्यों में होने वाली परेशानियों के लिए मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है। इन सब के लिए सतर्कता विषय पर इन-हाउस विशेष पत्रिका जारी करना भी संस्था के लिए फायदेमंद साबित होगा।
दूसरा क़दम – रोधात्मक सतर्कता संस्था को भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन प्रदान करने के लिए प्रो-एक्टिव दृष्टिकोण अपनाया जाना ज़रूरी है। ऐसे में रोधात्मक सतर्कता ईमानदारी का वातावरण विकसित करने में सहायक है। इसके ज़रिए कार्यप्रणाली में पारदर्शिता तथा जवाबदेही बढ़ाने के लिए नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। आमजनता को उनकी शिकायतें, यदि कोई हैं दूर करने के लिए संबंधित अधिकारियों से सम्पर्क करने का अधिकार देने की दिशा में कई क़दम उठाए जाने चाहिए।
i) नियमों और प्रक्रियाओं का सरलीकरण – किसी भी संस्था में सबसे ज़्यादा गड़बड़ी नियमों और प्रक्रियाओं की जटिलता और दुरूहता की वज़ह से होती है। ऐसे में नियमों और प्रक्रियाओं के सरलीकरण के ज़रिए कोई भी संस्था सकारात्मक तरीके से सतर्कता नियमों का पालन कर और करवा सकती है। नियम जितने ज़्यादा सरल होंगे तथा इस्तेमाल में आसान होंगे भ्रष्टाचार की गुंजाइश उतनी ही कम होगी।
ii) स्वनिर्णय के दुरूपयोग के क्षेत्र को कम करना – सतर्कता में सबसे बड़ी बाधा है जब निर्णय का अधिकार किसी व्यक्ति विशेष के हाथ में होता है। ऐसे में निर्णय के दुरूपयोग की संभावना कई गुनी ज़्यादा बढ़ जाती है। ऐसे तमाम अवसरों में कमी लाकर स्वनिर्णय के दुरूपयोग को कम किया जा सकता है। एक व्यक्ति की जगह पांच से दस सदस्यों की कमिटी बनाकर सामूहिक निर्णय लेने की परंपरा न सिर्फ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पाने में सक्षम होगी वरन् पारदर्शिता बनाए रखने में भी सफल सिद्ध होगी।
iii) प्रणाली/प्रक्रिया की खामियों का निरीक्षण - भ्रष्टाचार के बिन्दुओं को घटाने के लिए प्रणाली/प्रक्रिया की खामियों का पता लगाना बेहद ज़रूरी होता है। वज़ह ये कि कोई भी प्रणाली या प्रक्रिया पूरी तरह से दोष रहित नहीं हो सकती। अब जांच का मुद्दा ये हो कि दोष कितना है और इससे पारदर्शिता कितनी प्रभावित हो रही है। साथ ही प्रक्रिया या प्रणाली में खामी की वज़ह से भ्रष्टाचार की गुंजाइश कितनी रह जा रही है। इन तमाम पहलुओं का समय-समय पर निरीक्षण होना बेहद ज़रूरी है।
iv) कार्यप्रणाली में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ाना – संस्था की कार्य प्रणाली शून्य दोष रहित (ज़ीरो एरर) करने का एकमात्र तरीक़ा है कार्यप्रणाली को पहले से ज़्यादा पारदर्शी बनाया जाए और उच्च पदों पर आसीन लोगों की जवाबदेही का दायरा बढ़ाया जाए। जिस प्रकार अधिकार के साथ कर्तव्य का ज्ञान ज़रूरी है ठीक उसी तरह पद के साथ पद की गरिमा और जवाबदेही का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। इससे संस्था की साख मज़बूत होती है। इसे सकारात्मक सतर्कता के लिए सबसे प्रभावी क़दम कहा जा सकता है।
v) शिक़ायतों को त्वरित गति से निपटाने के लिए प्रभावी तंत्र लागू करना - आमतौर पर देखा गया है कि जनशिक़ायतों पर किसी भी संस्था में कोई ख़ास ध्यान नहीं बरता जाता है। जबकि इन शिक़ायतों के ज़रिए हमें कार्य प्रणाली या प्रक्रियाओं से रू-ब-रू होने का मौक़े मिलते हैं। इतने के बावज़ूद शिक़ायतों को दबाने-छिपाने की कोशिश ज़्यादा की जाती है। कई मौक़े पर तो कर्मचारी शिक़ायत पुस्तिका के मांगने पर भी भड़क जाते हैं। और तो और कई बार मार-पीट पर उतर जाने के भी ख़बर मिलते हैं। ऐसी घटना कार्य प्रणाली और प्रक्रिया की पारदर्शिता पर तो सवाल उठाते ही हैं संस्था की साख पर भी दाग़ लगाने का काम करते हैं। बेहतर तो ये है कि शिक़ायतों को तरजीह देकर उन्हें तेजी से निपटाया जाए और इसके लिए बेहद चुस्त सिस्टम बनाया जाए।
vi) नियमित तथा औचक निरीक्षण करना – हर स्तर पर निरीक्षण जहां संस्था के पारदर्शिता को बनाए रखने में कारगर सिद्ध होता है। वहीं औचक निरीक्षण से सामयिक खामियों को दूर किया जा सकता है। इस तरह के अभ्यास से सतर्कता के सर्वोच्च शिखर को छूना आसान हो जाता है। नियमित और औचक निरीक्षण किसी भी संस्था के स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद साबित होता है। इस तरीके से संस्था की उन छोटी-मोटी ग़लतियों और ख़ामियों का भी सफाया हो जाता है जिन्हें आमतौर पर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। लेकिन इस तरह की नज़रअंदाज़ी के ख़ामयाज़े बेहद भयावह होते हैं। इसलिए बेहतर है कि संस्था के आला अधिकारी समय-समय पर सभी स्तर पर औचक निरीक्षण करते-करवाते रहें।
vii) मॉनीटरिंग व रिव्यु - भ्रष्टाचार के तरीकों का पता लगाने के लिए संगठन में निपटाए जाने वाले मामलों की मॉनीटरिंग करना निहायत ही ज़रूरी है। इस क़दम से भ्रष्टाचार की आशंका तक का जड़ से नाश किया जा सकता है। किसी भी संस्था में भ्रष्टाचार का पता लगाने के लिए संगठन के भीतर निपटाए जानेवाले मामलों पर कड़ी नज़र रखकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके साथ ही संस्था ने निदेशक मंडल द्वारा सतर्कता कार्य-कलापों की छमाही समीक्षा कर कार्य प्रणाली और प्रक्रिया को चुस्त-दुरूस्त बनाया जा सकता है ।
viii) जन-सम्पर्क बिन्दुओं की प्रभावी निगरानी करना – सूचना क्रांति के इस दौर में सूचना का प्रचार-प्रसार बड़ी तेज़ी से हो रहा है। ऐसे में संस्था से जुड़ी तमाम ख़बरों पर नज़र रखते हुए। इस पहलू की भी निगरानी की जानी चाहिए कि संस्था से जुड़ी किसी ग़लत सूचना का तो प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा है। जहां एक ओर संस्था के लिए सकारात्मक प्रचार-प्रसार की सुविधा का इस्तेमाल करना ज़रूरी होता है वहीं इस बात की गारंटी भी तय की जानी ज़रूरी है कि जन-सम्पर्क के ज़रिए किसी तरह नुक़सान संस्था को नहीं हो रहा हो।
i) सतर्कता मामलों और अनुशासनात्मक जांच-पड़ताल का तेजी से निपटान – वैसे तो संस्था से जुड़े तमाम विषयों का निपटारा तेज़ी से होना चाहिए उसमें भी सतर्कता और अनुशासन से जुड़े मामलों की जांच-पड़ताल तेज़ी से होनी चाहिए और जांच के बाद नतीज़ों के मुताबिक़ कार्यवायी भी। इस क़दम से सतर्कता में ख़ुद-ब-ख़ुद सकारात्मकता पनपेगी।
ii) सकारात्मक अनुशासन बनाए रखने के लिए क़दम उठाना – अनुशासन का अर्थ यूं तो नियमों का पालन करना होता है लेकिन स्व-अनुशासन के ज़रिए सतर्कता के मानक का ग्राफ ऊंचा रखा जा सकता है। सकारात्मक सतर्कता के लिए कर्मचारियों को सकारात्मक अनुशासन बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाना ज़रूरी है।
iii) दूसरे एजेंसियों के साथ सामंजस्य बनाना - सतर्कता मामलों में तीव्र कार्रवाई करने के लिए अन्य एजेंसियों के साथ सामंजस्य बनाना ज़रूरी है। इससे संस्था की साख बनी रहती है। साथ ही स्व-अनुशासन और पारदर्शिता का लक्ष्य भी आसानी से पाया जा सकता है।
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