Friday, December 21, 2012

लोक प्रापण में सूचना प्रौद्योगिकी का सदुपयोग

परिचय - व्यवस्था का प्राथमिक जुड़ाव आमजन से होता है। आमलोगों को दी जा रही सुविधाओं में अनियमितता और भ्रष्टाचार की शिक़ायतें सबसे ज़्यादा हैं। इस वजह से लोगों में व्यवस्था के ख़िलाफ़ असंतुष्टि का भाव ज़्यादा है, जो देश के समुचित विकास में सबसे बड़ी बाधा है। ख़ासकर तब जबकि सूचना-क्रांति के इस दौर में, ख़बरें दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक बमुश्किल कुछ मिनट में पहुंच जाती हों; जहां, एक देश में हो रहे कारोबार से लेकर सामाजिक सरोकार से जुड़े हलचल तक का असर दुनिया के तमाम देशों पर होने में महज कुछ मिनट का वक़्त लग रहा हो; ऐसे में, देश के अंदर हो रही गतिविधियों को पारदर्शी बनाया जाना निहायत ज़रूरी हो जाता है। सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर सामाजिक सरोकार से जुड़ी तमाम गतिविधियों को न सिर्फ दुरूस्त किया जा सकता है बल्कि भ्रष्टाचार को पूरी तरह से मिटाया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो सूचना प्रौद्योगिकी का समुचित सदुपयोग कर के व्यवस्था को पूरी तरह से पारदर्शी और स्वस्थ्य बनाया जा सकता है।
पंजीकरण प्रणाली – बात चाहे जन्म-मृत्यु के पंजीकरण की हो या भूमि-भवन-वाहन या किसी और आम उपयोग की वस्तु के पंजीकरण की। आम आदमी की नज़र में पंजीकरण एक ऐसे कार्यालयी काम का एहसास कराता है, जो दुरूह होने के साथ-साथ बेवजह ख़र्चे का कारण भी है। आम आदमी को सबसे ज़्यादा मुसीबतों का सामना ऊपर उल्लेखित विषयों के पंजीकरण में करना पड़ता है। यदि पंजीकरण के सभी कार्यालयों का डिजिटलाइज़ेशन कर दिया जाए अर्थात् इस तरह के कार्यालय की ज़रूरतों के मुताबिक़ कंप्यूटर सॉफ्टवेयर तैयार कर हर तरह के पंजीकरण के काम को ऑनलाइन कर दिया जाए तो इससे न सिर्फ आम आदमी के वक़्त और संसाधन की बचत होगी बल्कि व्यवस्था पारदर्शी भी बन पाएगी। इन तमाम तरह के पंजीकरण के लिए लगनेवाली फीस की अदाएगी की सुविधा भी अगर ऑनलाइन क्रेडिट या डेबिट कार्ड के ज़रिए मुहैया करा दी जाए तो इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता है।

इतना ही नहीं, रोज़गार के लिए ज़रूरी पंजीकरण और तमाम तरह की रोज़गार योजनाओं के तहत भी भ्रष्टाचार से जुड़ी शिक़ायतों को कंप्यूटराइज़्ड करके या ऑनलाइन सुविधा के ज़रिए कम किया जा सकता है। जिन्हें कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है या तकनीकी रूप से अक्षम लोगों के लिए कार्यालय के अंदर इस तरह की सुविधा दी जा सकती है।  इस तरह की सुविधा से लोगों में व्यवस्था के प्रति सम्मान का भाव जगेगा और व्यवस्था पारदर्शी होगी। अच्छी बात ये है कि कई बड़े राज्यों और शहरों में ई-गवर्नेन्स के तहत इस तरह की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन इसे पूर्णरूपेण लागू करना इस वक़्त की सबसे बड़ी चुनौती है।

सार्वजनिक जनवितरण प्रणाली – तमाम राज्यों के लिए दूसरा बड़ा सिरदर्द है सार्वजनिक वितरण प्रणाली फिर चाहे वो राशन के लिए वितरण प्रणाली हो या फिर रसोई और वाहन के ईंधन से जुड़ी वितरण प्रणाली है। यदि इन तमाम सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कंप्यूटराईज़्ड तरीके निष्पादित किया जाए तो यक़ीनन भ्रष्टाचार से जुड़ी ज़्यादातर शिक़ायतों का निपटारा ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगा। फिर वो चाहे वितरण के तहत आने वाली सामग्री की गुणवत्ता का मामला हो या फिर नाप-तौल में हेरा-फेरी या फिर वितरण से जुड़ी धांधली का मामला हो। उपभोक्ता से जुड़ी सारी जानकारी को एक जगह मुहैया कराकर, उसे मिले कार्ड या कोटे की रसीद के मुताबिक़, उसकी आंखों के सामने इलेक्ट्रानिक उपकरणों के ज़रिए माप कर हाथ-के-हाथ वितरण से, लंबी क़तारों से छुटकारा मिलने के साथ ही ऊपर बताए गए तमाम शिक़ायतों से एकबारगी निज़ात मिल सकती है। इसे लागू करवाने के लिए शुरुआती दौर में उपभोक्ता की जानकारी जुटाकर उससे डाटा बैंक तैयार करना एक दुष्कर कार्य लग सकता है। लेकिन, आधार योजना के तहत इकट्ठा की गई जानकारी को साझा करके इस काम को भी आसान किया जा सकता है।

पुलिस – नागरिक सुरक्षा यूं तो बेहद अलहदा मामला होता है। लेकिन यहां भी अपराधी और आपराधिक रिकॉर्ड्स की जानकारी को डिजिटलाईज़्ड करके उन्हें ऑनलाइन तमाम राज्यों के पुलिस और दूसरी सुरक्षा एजेंसियों को मुहैया कर अपराध के ग्राफ को कम किया जा सकता है। सबसे बड़ी सुविधा तो ये होगी कि शिक़ायतों का वर्गीकरण और उनके निपटारे पर नज़र रखना आसान हो सकेगा और रिकॉर्ड की जानकारी ज़रूरत के मुताबिक़ उपयोग में लाई जा सकेगी। इतना ही नहीं सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के ज़रिए ख़ास तरह के अपराध के लिए ख़ास तरह के उपाय भी किए जा सकते हैं। इस बात की जानकारी जुटाना आसान किया  जा सकता है कि किस तरह के अपराध किन इलाकों में सबसे ज़्यादा या कम हैं और उस हिसाब से उसका निष्पादन और लोगों को सुरक्षा मुहैया कराई जा सकती है।
बैंकिंग आयकर-बीमा और पेंशन प्रणाली – आपको जानकर खुशी होगी कि हमारा देश उन चुनिन्दा देशों में शुमार है जहां कि बैंकिंग प्रणाली पूर्णरूपेण डिजिटलाइज़्ड है और देश के तमाम बैंक से जुड़े खाते सीधे सेटेलाइट के ज़रिए ऑपरेट किए जा सकते हैं। रूपए-पैसे का लेन-देन आज जितना सरल-सहज पहले कभी नहीं था। सबसे अहम ये कि अब किसी तरह के गबन-ग़लती-घपले की गुंजाइश न्यूनतम हो गई है। आपके एटीएम से रूपए की निकास की सूचना आपको पलक झपकते ही मोबाइल और ई-मेल के ज़रिए आपतक पहुंच जाती है। आम लोगों की रूपए-पैसे से जुड़ी दूसरी सुविधाएं मसलन आयकर, बीमा और पेंशन तक की सुविधा के लिए ऑनलाइन व्यवस्था मौजूद है। इस तरह की सुविधा से जहां, लेन-देन आसान हुआ है वहीं, धोखाधड़ी और दूसरे आपराधिक मामलों में गिरावट आई है। नेटबैंकिंग के ज़रिए तो भ्रष्टाचार पर सबसे बड़ा अंकुश लगा है। इस प्रणाली के ज़रिए हर तरह के लेन-देन पर नज़र रख पाना पहले से कहीं ज़्यादा आसान हो गया है। और तो और तमाम सरकारी विभाग किसी तरह के विभागीय ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए नक़द लेन-देन को नियम के तहत लगभग बंद कर चुके हैं। यानी रूपए-पैसे के कारोबार में चाहे बैंकिंग-बीमा हो या आयकर-पेंशन पारदर्शिता का ख़्याल सबसे ज़्यादा रखा जा रहा है।
निविदाओं का ईलेक्ट्रॉनिफिकेशन – तमाम सरकारी विभाग में ख़रीद-फ़रोख्त के लिए पहले तो निविदाओं को ज़रूरी करना होगा। इन तमाम निविदाओं को उस विभाग के वेबसाइट पर मुहैया कराने के साथ ही इससे जुड़ी तमाम प्रक्रिया को ऑनलाइन संपन्न कराना ज़रूरी है। ई-निविदा की इस प्रणाली के ज़रिए लोक प्रापण को पूरी तरह से पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त किया जा सकता है। कम-से-कम धांधली के आरोपों को तो शून्य के स्तर ला पाना बेहद मुमकिन है। ऑनलाइन निविदा में जहां ज़रूरी चीज़ों की फेहरिस्त के साथ-साथ गुणवत्ता, सप्लाई और क़ीमत समेत तमाम तरह की जानकारी दी जाए जिससे निविदा पानेवाली कंपनी या व्यक्ति को आंका जा सके। इसके साथ ही निविदा पाने वाली संस्था या व्यक्ति को निविदा किस आधार को मद्देनज़र रखकर दी जा रही है इसका विवरण भी वेबसाइट उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही तमाम तरह नक़द लेन-देन को ख़त्म कर ऊपर बताए गए तरीके के मुताबिक़ नेटबैंकिंग के ज़रिए किया जाना चाहिए। इन तमाम क़दमों से न सिर्फ भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा। बल्कि एक स्वस्थ्य और पारदर्शी व्यवस्था आकार ले सकेगी।
निष्कर्ष – लोक प्रापण में सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके एक चुस्त-दुरूस्त व्यवस्था  का निर्माण मुमकिन है।  इस तरह की व्यवस्था में त्रुटियों की गुंजाइश कम-से-कम होती हैं। वहीं काग़ज़ी कार्यवायी और लालफीताशाही से मुक्ति मिलेगी। इतना ही नहीं स्वस्थ्य प्रतियोगिता को बढ़ावा मिलेगा। लोगों का क़ीमती वक़्त बचेगा। और सबसे अहम आम लोगों में व्यवस्था के प्रति आस्था बढ़ेगी।


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