Thursday, December 2, 2010

भोपाल.26 साल.इन्होनें भी दिए जख्म


दिसंबर 1984 की काली रात. हजारों बेगुनाहों को मिक गैस ने अपना शिकार बनाया. आज 26 साल पूरे हो गए इस घटना को. लेकिन आज बात एंडरसन की नहीं. अपने लोगों की. उन जख्मों की जो भोपाल पीडितों को अपनों ने दिए. मुकेश अंबानी से ले कर रतन टाटा, पृथ्वीराज चौहान, चिदंबरम, कमलनाथ, रोनेन सेन, जयराम रमेश तक. लंबी फेहरिश्त. बात इनके लिखे पत्रों की. जिसके एक-एक शब्द डाओ के समर्थन और भोपाल पीडितों के खिलाफ हैं. आरटीआई के जरिए निकाले गए ये सारे पत्र इन महानुभावों की पोल खोल रही हैं.

पृथ्वी राज चौहान

भोपाल गैस पीडित पीएमओ में ईमेल भेज कर प्रधानमंत्री से मुलाकात का वक्त मांगा. 14 मार्च 2006 को पीएमओ में राज्य मंत्री पृथ्वी राज चौहान एक पत्र लिख इस मामले पर अपनी राय देते है. वो लिखते है कि मैं इनमें से कुछ लोगों से मिल चुका हूं. मुझे नहीं लगता कि इस वक्त प्रधानमंत्री को इन लोगों से मिलना चाहिए.

रोनेन सेन

30 सितंबर 2005. अमेरिका से भारतीय राजदूत सेन पीएम के प्रधान सचिव को पत्र लिखते है. बताते है कि उनकी मुलाकात डाओ के सीईओ एंड्रयू लिवेरिस मेरे पास एक प्रस्ताव ले कर आए. इसके मुताबिक, डाओ भारत के पेट्रोकेमिकल्स क्षेत्र में भारी निवेश करना चाहता है. साथ ही डाओ के खिलाफ कानूनी पचडे हटाने की भी बात है. सेन लिखते है कि मैं सोचता हूं कि यह एक उत्कृष्ट प्रस्ताव है. इससे भारत में एफडीआई को बढावा मिलेगा. आप संबंधित मंत्रालय के अलावा रतन टाटा और मुकेश अंबानी के विचार भी इस मसले पर ले सकते है. तब एंड्रयू लिवेरिस इंडिया-यूएस सीईओ फोरम के सदस्य थे.

रतन टाटा

2006. प्रधानमंत्री और चिदंबरम को पत्र भेजते है. लिखते है कि भोपाल गैस कांड से प्रभावित स्थल के साफ-सफाई के लिए 100 करोड रूपयें का एक फंड या ट्रस्ट टाटा कंपनी और अन्य भारतीय उद्‌ध्योगपती मिल-जुल कर तैयार कर सकते है. टाटा का तर्क, डाओ केमिकल्स एक बहुत बडी कंपनी है और वह भारत में बहुत बडे पैमाने पर निवेश करना चाहती है इसलिए डाओ को 100 करोड रूपये जमा कराने की जवाबदेयता से मुक्त किया जाए. गौरतलब है कि तब रतन टाटा इंडो-यूएस सीईओ फोरम के को चेयर मैन भी थे.

पी. चिदंबरम

दिसंबर 2006. प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर बताते है कि हमलोगों को रतन टाटा का वह प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए जिसमें उन्होनें 100 करोड रूप्पये का एक फंड बनाने की बात कही है और साइट रेमेडिएशन ट्रस्ट रतन टाटा की अध्यक्षता में गठित करना चाहिए.

कमलनाथ

फरवरी 2007. वाणिज्य मंत्री पीएम को लिखते है. डाओं भारत में एक बडा निवेश कर रहा है इसलिए मैं आग्रह करना चाहूंगा कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समूह का गठन किया जाए जो इस मामले को समग्र रूप से वैसे ही देखे जैसे एनरॅान और डाभोल पावर कॅार्पोरेशन के मामले को देखा गया था.

मुकेश अंबानी

अंबानी और डाओ के बीच पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में तकनीकी सहयोग से जुडा एक समझौता भी हो चुका है. लेकिन 100 करोड रुपयें का मामला डाओ की भारत यात्रा में रूकावट बनी हुई है. सवाल उठता है कि यह सब कुछ जानते हुए भी अंबानी को डाओ से व्यापारिक समझौता करने की ऐसी जल्दी क्या थी?

जयराम रमेश

पर्यावरण मंत्री भोपाल यात्रा के दौरान यूनियन कारबाईड के परिसर पहुंचे, वहां फैले कचरे को अपने हाथ से छू कर मीडिया को दिखाया. शायद वह संदेश दे रहे थे कि भोपाल के लोग झूठ बोलते है कि यहां का कचरा जहरीला है. मैने तो छू लिया, मुझे तो कुछ नहीं हुआ.

2 comments:

Ritu Saxena said...

sir its right ye sab bade log sirf chichlebaji karte h, i request to u k kuch aise hi khulase bale latter or dale taki hume bhi pata chal sake k akhir kya ho raha h

shashi shekhar said...

bilkul....ham aisa hi karenge....keep coming to chay dukan