Wednesday, December 8, 2010

उम्मीद की रोशनी


गरीब, उपर से विकलांग. जमीन के नाम पर सिर्फ उतना ही जिस पर झोपडीनुमा घर बना हुआ है. बेरोजगारी और मुफलिसी इनकी नियति थी. कल तक, कालू भाट और राधेश्याम की जिंदगी की कहानी कुछ ऐसी ही थी. लेकिन ये कल की कहानी है. आज कालू भाट और राधेश्याम की जिंदगी में रोशनी है. आंखों में चमक है. उम्मीद की किरण है. एक सपना है. बेहतर भविष्य का. और उनका यह सपना पूरा किया है मोरारका फाउंडेशन ने. इन दोनों विकलांग युवकों को सौर उर्जा से चलने वाले 25 लालटेन और एक सौर उर्जा पैनल मुहैया कराया गया है. आज घर बैठे कालू और राधेश्याम दो-तीन हजार रुपये महीने का कमा रहे है.

शेखावाटी के झुंझुनू जिले के के कटरथला गांव का रहने वाला कालू भाट अपने नौ भाई-बहन में सबसे बडा है. बचपन से ही विकलांग. अशिक्षित. जमीन के नाम पर उतना ही जिस पर एक झोपडीनुमा घर है. इसी तरह, दसवीं पास राधेश्याम बचपन में ही पोलियों के चपेट में आ कर अपने दोनों पैर गवां चुका था. पिता की पहले ही मौत हो चुकी थी. पांच बहनों और मां की जिम्मेवारी भी विकलांग राधेश्याम पर ही थी. फाउंडेशन की सौर लैंप योजना के तहत राधेश्याम को भी 25 सौर लालटेन और एक सौर उर्जा पैनल उपलब्ध कराया गया.

इससे, कालू और राधेश्याम को रोजगार तो मिला ही, कटरथला और आस-पास के गांवों के लोगों को भी अंधेरे से लडने का एक नया हथियार मिल गया. इलाके के ज्यादातर गांवों में बिजली आपूर्ति नियमित नहीं है. सो, छात्र से ले कर किसान तक कालू भाट और राधेश्याम से सौर उर्जा चालित लालटेन किराये पर ले जाते है. दुकानदार, शादी-समारोह के अवसर पर भी इन सौर लालटेन की मांग बढती जा रही है. बदले में कालू और राधेश्याम को प्रति लालटेन एक रात का 10 रुपये मिल जाता है. हां, छात्रों के लिए विशेष रियायत भी है. पढाई करने वाले छात्रों के लिए प्रति लालटेन एक रात का किराया सिर्फ 5 रुपया है. कालू भाट और राधेश्याम जैसे विकलांग युवकों के उत्साह को देख कर यह कहना गलत नहीं होगा कि कभी-कभी घुटनों के बल चलने वाले भी जंग जीत जाते है. खास कर जिंदगी की जंग.

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