Monday, December 3, 2012

रूला दिया ‘सेकेंड ओपिनियन’ ने...और याद आई ‘विकास’ की

दिन रविवार, सुबह के नौ बजे मनोरंजन की चाह में बेतहाशा चैनल स्कैन किए जा रहा था। अचानक एबीपी न्यूज़ स्क्रीन पर उभरा एक बेहद पंसदीदा चेहरा, जो यक़ीनन पहली बार एक नए कार्यक्रम की प्रस्तुति कर रहा था। कई दिनों से लगातार प्रोमोज़ देखने की वज़ह से एक उत्सुकता तो थी ही, सो चैनल स्कैनिंग को वहीं विराम लगा कर, टिक गया एबीपी न्यूज़ के उस कार्यक्रम के साथ। कार्यक्रम का नाम था – सेकेंड ओपिनियनस्टार से अलग होकर एबीपी न्यूज़ भले ही पहचान पुख़्ता करने की कोशिश में जुटा हो लेकिन उसके नए प्रोग्राम सेकेंड ओपिनियन, स्टार के बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम सत्यमेव जयते का ही परिष्कृत संस्करण सरीखा लग रहा है। मराठी अदाकार अतुल कुलकर्णी के जानदार प्रस्तुति ने तो रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। पहले ही एपिसोड दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ने में क़ामयाब रहा  है, इसमें कोई शक नहीं। अगर अब तक आपने इस प्रोग्राम को नहीं देखा है तो गुज़ारिश है कि ज़रूर देखें। मेडिकल नेगलिजेंस पर इससे बेहतर कार्यक्रम इतने सलीके से नहीं बनाई जा सकती है।हैदराबाद में रहने वाले श्री शेषाद्री के बेहद प्रतिभाशाली बेटे की दर्दनाक कहानी देख कर आंखों से आंसू निकल आए। और याद आ गयी अपने एक बेहद प्यारे स्टूडेंट की मौत। हालांकि सेकेंड ओपिनियन तो मेडिकल नेगलिजेंस को केन्द्र में रख कर बनाया गया बेहद संज़ीदा कार्यक्रम है, लेकिन विकास की मौत अलग थी। एक ऐसी मौत, जहां जवाबदेही न तो किसी डॉक्टर की रही और न ही किसी घरवाले की, जहां जवाबदेही थी अपने मालिक के लिए पैसे बनानेवाले एक दलाल की, जो संयोग से उस हॉस्टल का वार्डन था, जिसमें विकास रहता था।
यकीन मानिए मैं सेकेंड ओपिनियन बिना अपनी पलकें झपकाए देख रहा था, लेकिन पूरे कार्यक्रम के दौरान विकास कुमार सिंह नाम के उस स्टूडेंट का चेहरा मेरी नज़रों के सामने घूमता रहा, घूमता रहा। बड़ी-बड़ी काली घनी बरौनियों वाली आंखें और बेहद शालीन मुस्कान माता-पिता के इकलौती संतान विकास के लाड-प्यार से पाले जाने की तस्दीक करती थी। अप्रैल के महीने में वो अपने घर पूर्णिया से अपने स्कूल के हॉस्टल लौटा था फाइनल एक्ज़ाम की वजह से। जबकि उसी महीने घर में बड़ी बहन की शादी भी तय थी। लेकिन पढ़ाई को तरजीह देने वाले उस बच्चे ने फाइनल एक्ज़ाम में बेहतर करने के इरादे से हॉस्टल जाने का फैसला किया था। उसका ये फैसला उसकी ज़िन्दगी पर इस क़दर भारी पड़ेगा किसी को इसका अंदाजा              नहीं था।दरअसल पूर्णिया से सड़क के रास्ते पटना आने के दौरान विकास को लू लग गई। शाम तक जब वह अपने स्कूल के हॉस्टल पहुंचा तब तक उसे हल्का बुखार था। जिसके लिए हॉस्टल वॉर्डन ने उसे पास के केमिस्ट दवा मंगा कर खिला दी। देर रात जब उसकी तबीयत बिगड़ने लगी तो उसे नज़दीकी डॉक्टर के पास ले जाया गया। डॉक्टर के मुताबिक उसे डिहाइड्रेशन था जिसके लिए उसे एक इंजेक्शन लगना था, लेकिन उससे पहले उसे पानी चढ़ाना ज़रूरी था । इसे दुर्योग कहिए या संयोग इन पंक्ति का लेखक वहीं मौज़ूद था और उसने हॉस्टल वॉर्डन कम स्कूल एडमिनिस्ट्रेटर को इस बात की गंभीरता भी बताई लेकिन आत्म-मुग्धता का शिकार वो शख़्स तमाम हिदायतों को दरकिनार करते हुए दो दिनों से खाली पेट लू के बुखार से जूझ रहे उस 12 साल के बच्चे को बग़ैर पानी चढ़वाए इंजेक्शन लगवा दिया। नतीजतन बच्चे का पूरा शरीर नीला पड़ गया और उसने महज कुछ मिनटों में ही उसकी मौत हो गई। विकास की मौत महज बारह साल की उम्र में मेडिकल नेगलिजेंस की वज़ह से तो नहीं हुई बल्कि हॉस्टल वार्डन की लापरवाही की वज़ह से हुई। मैं उस पूरे वाकये का चश्मदीद रहा था, इसलिए भी ये बात दावे से कह सकता हूं कि इस तरह की लापरवाही की वज़ह से उसकी मौत, मौत न होकर एक हत्या थी।


6 comments:

Anonymous said...

Sir u made him alive...

Anonymous said...

I still remember the incident..hs b'day was in march...and i just the 1st day of new session(5th std)
..suddenly in the previous evening i come to know abt dis incident.

Anonymous said...

Where wr u dat time sir.....??
This is not done sir....u r too late now?????u could have raised ur voice earlier!!!!!!!!!!

अभिषेक पाटनी said...

mr anonymous plz give ur intro 1st ...

अभिषेक पाटनी said...

yeah i was very much thr... bt Vikas's family was also thr... n it was easily accessable tht time by going through doctor's prescription.. how am i resposible... they had do all d exercises... they didnt do it... they were knowing how thr son was killed by a wimp...

Rahul said...

Sir 1 st and 2nd comment to maine kiya h...bt 3rd one i dot know...
Rahul Prakash 06 batch