Wednesday, December 1, 2010

हमको लिख्यो है कहा ...


(भारत-ओबामा संबंध की पड़ताल कर रहे हैं दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉक्टर प्रेम सिंह. डॉक्ट सिंह समाजवादी जन परिषद से जुडे है और सामाजिक मुद्दों पर उनकी बेलाग टिप्पणी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं औरअखबारों में छपती रहती है. चाय दुकान पर इस लेख को प्रकाशित करने की अनुमति देनेके लिए प्रेम सर को बहुत-बहुत धन्यवाद. चाय दुकान पर उनके विचार से हम लगातार अवगत होते रहेंगे.)

जगन्नाथदास रत्नाकर की रचना उद्धव शतक में उद्धव कृष्ण की पाती लेकर गोकुल में आते हैं तो कृष्ण के विरह में तड़पती गोपियों उन्हें घेर लेती हैं। सभी एक साथ जानना चाहती हैं कि उद्धव उनके लिए मथुरा से क्या संदेश लेकर आए हैं। गोपियों की उत्कंठा की एक बानगी देखिए. उझकि उझकि पद कंजन के पंजन पै, पेखि पेखि पाती छाती छोहन छबै लगी। हमको लिख्यो है कहा हमको लिख्यो है कहा, हमको लिख्यो है कहा कहन सबै लगी। एशिया के दौरे पर निकले ओबामा के पहले भारत आने के समाचार से शासक वर्ग उद्धव की गोपियों से भी ज्यादा बेहाल हो उठा। आखिर, दूत नहीं, साक्षात कृष्ण चले आए! चारों तरफ ओबामा-ओबामा की पुकार मच गई। सभी पूछने लगे, ओबामा की झोली में हमारे लिए क्या है, हमारे लिए क्या है?

जनता की नजर से यह सच्चाई छिपा ली गई कि ओबामा झोली भरने आए हैं। यह सच्चाई केवल इसलिए नहीं छिपाई गई कि ओबामा जो झोली भर कर जाएंगे उसमें से यहां के शासक वर्ग को हिस्सा-पत्ती लेना है, बल्कि इसलिए भी कि जनता को यह न पता चल जाए कि अपने देश के नागरिकों को मंदी और बेरोजगारी से उबारने के लिए वहां का राष्ट्रपति किस कदर दुनिया में भागा घूम रहा है। अगर उसने नागरिकों की समस्याएं दूर नहीं की तो सत्ता से उसका पत्ता साफ हो जाएगा।

पुराने जमानों में किसी चक्रवर्ती राजा की ऐसी धक और ध्वज नहीं होती होगी जैसी अमेरिका के राष्ट्रपति की होती है। ओबामा की कुछ ज्यादा ही रही। अमेरिका में उनकी यात्राा पर खर्च को लेकर विवाद उठ गया। यह आरोप लगा कि ओबामा की यात्रा पर 200 मिलियन डॉलर का भारी-भरकम खर्च किया गया है। व्हाइट हाउस ने इस आंकड़े को अशियोक्तिपूर्ण बताया। जो भी हो, दुनिया का धन-संसाधन खींचना है और रौब-दाब कायम रखना है तो काफिला भारी-भरकम और शानो-शौकत वाला होना चाहिए। ओबामा की खूबी यह रही कि इस सबके साथ गांधी-प्रशंसा का राग भी निभा ले गए।

भारत का शासक वर्ग ओबामा के प्रति संपूर्ण समर्पित हो गया। जो मंत्राी-मुख्यमंत्राी नागरिक जीवन में शासन का आतंक फैलाते हुए नागरिक जीवन को रौंदते चले जाते हैं, उन्हें समर्पण से पूर्व ओबामा के अमलों को अपना पहचान-पत्रा दिखाना पड़ा। कमी बस पाकिस्तान को खरी-खोटी नहीं सुनाने की महसूस की गई। वह ओबामा ने सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट दिए जाने की वकालत करके पूरी कर दी। सारा शासक वर्ग जैसे नशे में झूमने लगा। हालांकि विकीलीक्स के खुलासे से पता चला कि अमेरिका की विदेश सचिव हिलेरी क्लिटंन कहती हैं कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने का स्वनियुक्त दाावेदार है। बहरहाल, इस बार सांसदों ने ओबामा से हाथ मिलाने के लिए बिल क्लिटंन के वक्त जैसी आपा-धापी नहीं मचाई। इसमें शायद रंग का कुछ भेद रहा हो!

पूरे सत्ता प्रतिष्ठान ने एकमुश्त एक संदेश दिया : जो करेगा अमेरिका करेगा। और अमेरिका सब भला करेगा। अमेरिका हमेशा भला करता है। किसी को अमेरिका का किया कहीं कुछ बुरा लगता है तो उसे जानना चाहिए कि वह बुरा भले के लिए ही होता है। भारत का भला न जाने कब का हो जाता, अगर वह रूस के चक्कर में नहीं पड़ता। कोई बात नहीं। अमेरिका बड़ा कृपानिधान है। देर से आने का बुरा नहीं मानता। परिस्थितियां पूरी तरह पक चुकी हैं। भला भी पूरा होगा।

इस परिदृश्य का समाजशास्त्रीय विवेचन करें तो कह सकते हैं कि शासक वर्ग में जो अगड़ा सवर्ण है वह पूरा गुलाम बन चुका है और शूद्र पूरा पिछलग्गू। दलित दोनों को पीछे छोड़ने की दौड़ लगा रहा है। ऐसे माहौल में नवउदारवादी संपादक-पत्राकार, बुद्धिजीवी, कलाकार,खिलाड़ी कोई पीछे नहीं रहना चाहते। अमेरिका का नाम आते ही नवउदारवादी पत्राकार पूरे रंग में आ जाते हैं। यहां तो साक्षात अमेरिका आया हुआ था। इंडियन एक्सप्रैस ने ओबामा के गांधी-प्रेम को सबसे ज्यादा विज्ञापित किया। ऐसा नहीं है कि अखबार की टीम को गांधी से कोई प्रेम है। उसके एक लेखक भानुप्रताप मेहता दो साल पहले तीस जनवरी के अंक में लिख चुके हैं कि गांधी चुक चुका था, लिहाजा उनकी हत्या नहीं होती तो छिछालेदर होती। अखबार में ओबामा के गांधी-प्रेम का विज्ञापन समाजवाद की निंदा के लिए किया गया। अखबार का संपादक, जो एक ब्रोकर भी है, मुखपृष्ठ पर निकल आता है और बताता है, अमेरिका के साथ बराबर का सौदा हुआ है। गुलाम दिमाग बराबर हो जाता है! जो सौदे और दावतें हुईं, कोई कह सकता है यह उसी गांधी का देश है, ओबामा ने जिनके गुणगान की झड़ी लगाए रखी?हमें स्कूल के बच्चों के साथ ओबामा का वह वार्तालाप याद आ रहा था जिसमें ओबामा ने गांधी के साथ खाना खाने की इच्छा व्यक्त की थी। का चुनाव बताने के बाद उन्होंने बच्चों से हंस कर कहा, भोजन सचमुच में थोड़ा-सा होगा, वे ढेर सारा नहीं खाते थे। कोई कह सकता है इस देश के संविधन की प्रस्तावना में समाजवादी शब्द लिखा हुआ है और सरकारों के लिए कुछ नीति-निर्देशक तत्व हैं? सौदों, दावतों और मौजमस्ती को देख कर कोई कह सकता है इस देश की अस्सी प्रतिशत गरीब जनता बीस रुपया रोज पर गुजारा करती है? लोकतंत्रा का गुणगान और उस पर विमर्श करने वाले नहीं पूछते तो गरीब क्या पूछ पाएगा कि यह कौन-सी नीति है और कैसा लोकतंत्र ? लेकिन वे तो ज्यादातर विमर्श-विनोद में मगन हैं

1 comment:

ram said...

उझकि उझकि पद कंजन के पंजन पै, पेखि पेखि पाती छाती छोहन छबै लगी। हमको लिख्यो है कहा हमको लिख्यो है कहा, हमको लिख्यो है कहा कहन सबै लगी।

Dear Chai vale shashi bahi
ratnakar ka uddhaw prsang utaha kar tumne 10th class ki yaad dila di....bahut accha likha hain